गाजियाबाद, 06 जुलाई 2020. यशोदा सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल कौशाम्बी ने कोविड-19 के संक्रमित को बचाने के लिए प्लाज्मा थेरेपी का इस्तेमाल (Plasma therapy used to protect infected COVID-19) अब शरू कर दिया है । हालांकि आईसीएमआर ने भी इसे स्टैंडर्ड केयर ऑफ ट्रीटमेंट (-Standard care of treatment - गारंटी का इलाज) नहीं माना है, और इसे ऑफ-लेबल प्लाज्मा थेरेपी का नाम दिया है, परन्तु कुछ सूचनाओं के आधार पर कुछ मरीजों की जान इससे बची है।
आज यहां जारी एक विज्ञप्ति में - यशोदा सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल के विपणन और कॉर्पोरेट संबंध प्रमुख गौरव पांडे (Gaurav Pande, Head Marketing & Corporate Relations - YASHODA SUPER SPECIALITY HOSPITAL ) ने बताया कि प्लाज्मा थेरेपी काफी पुरानी तकनीक है। पिछली सदी में जब स्पैनिश फ्लू फैला था तब इसका इस्तेमाल काफी कारगर साबित हुआ था। इस थेरेपी के तहत ठीक हो चुके मरीजों के खून से प्लाज्मा लेकर बीमार लोगों को चढ़ाया जाता है। ठीक हो चुके मरीजों के एंटीबॉडी से बीमार लोगों को रिकवरी में मदद मिलती है। इससे मरीज के शरीर में वायरस कमजोर पड़ने लगता है।
केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा 27 जून को अद्यतन किए गए ‘नैदानिक प्रबंधन प्रोटोकॉल’ के संबंध में ‘इन्फॉर्मेशन ऑन कॉन्वलसेंट प्लाज्मा इन कोविड-19’ शीर्षक से जारी किए नोटिस में कहा, ‘‘ यह भारत सरकार द्वारा जारी ‘नैदानिक प्रबंधन प्रोटोकॉल’ के संबंध में है, जिसमें स्वास्थ्य मंत्रालय ने कुछ थैरेपी का जिक्र अनुसंधानात्मक थैरेपी के तौर पर किया है, जिसमें प्लास्माफेरेसिस द्वारा कॉन्वलसेंट प्लाज्मा (Convalescent Plasma by Plasmapheresis,) को कोविड-19 में ‘ऑफ-लेबल’ के रूप में इंगित किया गया है।’ ‘ऑफ-लेबल’ से यहां तात्पर्य, आधिकारिक रूप से सिद्ध ना होने पर भी किसी दवा या किसी थैरेपी का इस्तेमाल
श्री पांडे ने बताया कि प्लाज्मा थेरेपी को प्रयोग में तब लाया जाता है जब स्टीरॉयड्स के प्रयोग का असर न दिखाई पड़े और कोविड -19 के इलाज का जब कोई भी उपाय न बचा हो तब प्लाज्मा थेरेपी को मरीज की अनुमति लेकर अपनाया जा सकता है। कोरोना से ठीक हो चुके एक व्यक्ति के शरीर से निकाले गए खून से कोरोना पीड़ित चार अन्य लोगों का इलाज किया जा सकता है.
जब कोई वायरस किसी व्यक्ति पर हमला करता है तो उसके शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता संक्रमण से लड़ने के लिए एंटीबॉडीज कहे जाने वाले प्रोटीन विकसित करती है. अगर वायरस से संक्रमित किसी व्यक्ति के ब्लड में पर्याप्त मात्रा में एंटीबॉडीज विकसित होता है तो वह वायरस की वजह से होने वाली बीमारियों से ठीक हो सकता है. कान्वलेसन्ट प्लाज्मा थेरेपी के पीछे आइडिया यह है कि इस तरह की रोग प्रतिरोधक क्षमता ब्लड प्लाज्मा थेरेपी के जरिए एक स्वस्थ व्यक्ति से बीमार व्यक्ति के शरीर में ट्रांसफर की जा सकती है. कान्वलेसन्ट प्लाज्मा का मतलब कोविड-19 संक्रमण से ठीक हो चुके व्यक्ति से लिए गए ब्लड के एक अवयव से है. प्लाज्मा थेरेपी में बीमारी से ठीक हो चुके लोगों के एंटीबॉडीज से युक्त ब्लड का इस्तेमाल बीमार लोगों को ठीक करने में किया जाता है.
इसमें प्लाज़्मा दाता को कोविड-19 से पूरी तरह से रिकवर (ठीक हो जाना) होना जरूरी है, सामन्यतः 14 दिनों के बाद प्लाज़्मादाता में जब कोई लक्षण न रह गया हो और लगातार 2 परीक्षणों द्वारा कोविड-19 टेस्ट का नकारात्मक परिणाम आ जाये, ऐसे में COVID 19 से ग्रसित रह चुके रोगियों से प्लाज्मा लेकर उनका उपयोग बीमार रोगी में इन्फ्यूजन के लिए किया जा सकता है, ताकि बीमार रोगी को जीवन के लिए खतरनाक आपात स्थितियों से बचाया जा सके। श्री पांडे ने बताया कि इसके लिए ब्लड बैंक में प्लाज्मा एफेरेसिस मशीन का होना जरूरी है तथा उसके लिए जरूरी अनुमति एवं लाइसेंस भी आवश्यक है, यशोदा हॉस्पिटल कौशाम्बी के ब्लड बैंक के पास ये सुविधा एवं लाइसेंस दोनों ही मौजूद हैं।