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मोदी-ममता-जमात के नए समीकरण सॆ बढ़ा खतरा
"संघ जमात भाई भाई/दुइयेर एक दड़िते फांसी चाई" (जमात संघी भाई-भाई, एक ही रस्सी पर दोनों की फांसी चाहिए)
नई दिल्ली। विवादास्पद उपन्यास लज्जा की लेखिका तस्लीमा नसरीन को अपनी जान बचाने के लिए भारत छोड़ना पड़ा है। इस बार उन्होंने अपनी मंजिल के तौर पर अमेरिका को चुना है।
बांग्लादेशी मूल की इस विवादास्पद लेखिका को इस्लामी कट्टरपंथियों से खतरा है। अपने ही देश में फरवरी से तीन धर्मनिरपेक्ष ब्लागरों की पीट-पीटकर हत्या किए जाने के बाद तस्लीमा ने यह कदम उठाया है। इस्लामी कट्टरपंथियों से जान पर खतरे के कारण 52 वर्षीया लेखिका 1994 से ही बांग्लादेश से निर्वासित हैं। उन्हें अब स्वीडन की नागरिकता मिल चुकी है। वर्ष 2004 से तस्लीमा को लगातार भारतीय वीजा मिल रहा है। कई मौकों पर वह भारत, खासतौर से कोलकाता में रहने की इच्छा जता चुकी हैं।
हफिंगटन पोस्ट में प्रकाशित एक खबर के मुताबिक न्यूयार्क के सेंटर फॉर इंक्वायरी ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा है कि इस्लामी कट्टरपंथी कथित रूप से अल कायदा से जुड़े हैं। इस आतंकी गिरोह ने हाल ही में मारे गए स्वतंत्र विचार वाले लेखकों अविजित राय, वशीकुर रहमान और अनंत बिजय दास की हत्या का जिम्मा लिया है और तस्लीमा नसरीन को भी हत्या की धमकी दी है। सेंटर फॉर इंक्वायरी के सीईओ और अध्यक्ष रोनॉल्ड ए लिंडसे ने कहा कि जान पर वास्तविक खतरा होने के कारण तस्लीमा ने भारत में रहने का फैसला लिया था। जान आफत में होने के कारण लेखिका ने अमेरिका में रुकने का फैसला लिया है और इस देश में अभी उनके लिए न तो कोई काम है और न ही कोई घर है। उन्होंने आगे साफ किया कि उनकी जान बचाने के लिए जो भी किया जा सकता है वह हम करेंगे।
पं. बंगाल में ममता बनर्जीके नेतृत्व वाली तृणमूल

कांग्रेस की सरकार बनने के बाद तस्लीमा का भारत में रहना और मुश्किलों भरा हो गया था। बांग्लादेशी कट्टरपंथी इस्लामिक समूहों से तृणमूल कांग्रेस के संबंधों के आरोप लगते रहे हैं। इधर बांग्लादेश में सेक्युलर ताकतों को शिकस्त देने के इरादे से भारत के दक्षिणपंथी कट्टरपंथी हिंदुत्ववादियों के बांग्लादेशी कट्टरपंथी इस्लामिक समूहों से बढ़ती नजदीकियों की खबरों के बाद तस्लीमा के लिए भारत में खतरा बढ़ गया था। भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बांग्लादेश यात्रा का बांग्लादेश के कट्टरपंथी आतंकी संगठनों ने स्वागत किया है। जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश ने बाकायदा प्रेस वक्तव्य जारी करके मोदी का स्वागत किया है। मोदी के साथ ममता बनर्जी के भी बांग्लादेश जाने की खबरों को भारतीय उपमहाद्वीप में दक्षिणपंथी-कट्टरपंथी ताकतों के नए समीकरण के तौर पर देखा जा रहा है।
बांग्लादेश में शहबाग आंदोलन के साथ-साथ पं. बंगाल में होककलरव आंदोलन के दौरान जादवपुर में भी नारा लगा था -"संघ जमात भाई भाई/दुइयेर एक दड़िते फांसी चाई" (जमात संघी भाई-भाई, एक ही रस्सी पर दोनों की फांसी चाहिए)

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