Hastakshep.com-देश-Movie Review-movie-review-Piku - Movie Review-piku-movie-review-Piku-piku-पीकू - फिल्म समीक्षा-piikuu-philm-smiikssaa-पीकू-piikuu

अगर मैं कोई फिल्म पहले दिन नहीं देखता तो खुद को उस पर समीक्षा लिखने का अधिकारी नहीं समझता हूं, किंतु पीकू इस मामले में अपवाद है। इस पर मैंने इसलिए लिखना चाहा क्योंकि पीकू में दीपिका पादुकोण और अमिताभ बच्चन के अच्छे अभिनय और पटकथा के बारे में विस्तार से बताती समीक्षाओं के अलावा मैंने कोई ऐसी समीक्षा नहीं पढ़ी जो दृश्यों के बीच की अंतर्कथा को इंगित करती हो। किसी शायर का शेर है

बाहर जो देखते हैं, वे समझेंगे किस तरह

कितने गमों की भीड़ है इस आदमी के साथ

‘पीकू’ केवल एक पुराने सनकी विधुर बुड्ढे रईस भास्कर

पीकू एक प्रेम कथा भी है। जिस तरह से उर्दू के प्रसिद्ध शायर मुनव्वर राना कहते हैं कि क्या जरूरी है कि महबूब कोई युवती ही हो, उनकी महबूब उनकी माँ भी हो सकती है और उन पर भी शे’र कहे जा सकते हैं, उसी तरह फिल्म की नायिका का महबूब उसका विधुर पिता है जिसकी खुशी के लिए वह अपने जीवन की सारी कुर्बानियां कर रही है और आगे

भी करने के लिए तैयार है। नारी पुरुष के अधिकारों की समानता के इस युग में पिता की जिम्मेवारी का भार केवल लड़कों पर ही क्यों हो! उसका पिता अपनी लड़की की शादी के खिलाफ है। उसका मानना है कि शादी करके किसी व्यक्ति की जीवन भर की गुलामी क्यों करना, अगर सेक्स एक शारीरिक जरूरत है तो उसकी पूर्ति अस्थायी रूप से किसी पुरुष मित्र से की जा सकती है, जिसकी अनुमति उसने अपनी बेटी को दी हुयी है। इतना ही नहीं अगर कोई शादी का प्रस्ताव भी लड़की के लिए आता है तो वह उससे कह देता है कि लड़की वर्जिन

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