सुनील दत्ता
आनंद ने सिखाया कि मौत तो आनी है लेकिन हम जीना नहीं छोड़ सकते। ज़िन्दगी लम्बी नहीं बड़ी होनी चाहिए। इस दुनिया में ज़िन्दगी का एक नया फलसफा गढ़ने वाला ''बाबू मोशाय, हम सब तो रंगमंच की कठपुतलियां हैं, जिसकी डोर उपर वाले के हाथ में है, कौन कब कहां उठेगा, कोई नहीं जानता।'' इस फलसफा को देने वाला आनंद अब चिर विलीन हो गया एक अदृश्य दुनिया में।
भारतीय सिनेमा जगत में पहली बार स्टारडम लाने वाले राजेश खन्ना ही थे। इन्होंने ही बताया कि सुपर स्टार होता क्या है ? 29 दिसम्बर 1942 को अमृतसर में पैदा हुए राजेश खन्ना को स्कूल और कालेजों से ही अभिनय का शौक था। उन्होंने रंगमंच पर भी कार्य किया। नए चेहरों की तलाश में सन 1965 में यूनाटेड प्रोड्यूसर्स और फिल्मफेअर द्वारा टैलेंट हंट से फिल्म इंडस्ट्री में उनका पदार्पण हुआ। दस हजार में से आठ लड़कों का चुनाव हुआ, जिनमें एक राजेश खन्ना भी थे। राजेश खन्ना ने उस प्रतियोगिता में ही अपने अभिनय की क्षमता को जजों के सामने मनवा दिया और अन्त में जजों ने उनको विजेता घोषित किया।
राजेश खन्ना का वास्तविक नाम जतिन खन्ना है। 1969 से 1975 के दरम्यान राजेश ने बहुत सारे सुपर हिट फिल्में दी। इन्होंने फिल्म इंडस्ट्री को नया आयाम दिया सुपर स्टार का वहीं से सुपर स्टार शब्द प्रचलित भी हुआ। फिल्म इंडस्ट्री उन्हें प्यार से काका कह के बुलाती थी। 1967 में ''आखरी खत'' सिनेमा से उनके फ़िल्मी पारी की शुरुआत हुई। 1969 में अराधना और दो रास्ते की सफलता के बाद राजेश खन्ना सीधे शिखर पर जा बैठे। उन्हें सुपर स्टार घोषित कर दिया गया और लोगों के बीच उन्हें अपार लोकप्रियता हासिल हुई। वास्तव में ऐसी लोकप्रियता किसी को हासिल नहीं हुई जो राजेश को हुई। उनके आकर्षण का वह एक अजीब दौर था। स्टूडियो या
किसी निर्माता के दफ्तर के बाहर राजेश खन्ना की सफ़ेद कार रूकती थी तो लड़किया उस कार को ही चूम लेती थीं। राजेश खन्ना ने रोमांटिक हीरो के रूप में बेहद पसंद किया गया। उनकी आँख झपकाने और गर्दन टेढ़ी करने की अदा के लोग दीवाने हो गये।
'मेरे सपनों की रानी’ और 'रूप तेरा मस्ताना' जैसे रोमांटिक गीतों के भावों को अपनी जज्बाती अदाकारी से जीवन्त करने वाले राजेश खन्ना ने अपने जमाने में लगातार 15 हिट फिल्में देकर बालीवुड को ''सुपर स्टार'' की परिभाषा दी थी। उनसे पहले के स्टार राज कपूर और दिलीप कुमार के लिए भी लोग पागल रहते थे लेकिन इस बात पे कोई शक नहीं की जो दीवानगी राजेश खन्ना के लिए थी, वैसी पहले या बाद में कभी नहीं दिखी।
1969 में आई आराधना से बालीवुड में काका का असली दौर शुरू हुआ इसमें राजेश खन्ना और हुस्न परी शर्मिला टैगोर की जोड़ी ने सिल्वर स्क्रीन पर रोमांस और जज्बातों का वो गजब चित्रण किया कि लाखों युवतियों की रातों की नींद उड़ने लगी। आराधना का वो गीत ''कोरा कागज था ये मन मेरा - लिख लिया नाम इसपे तेरा, सूना आंगन था जीवन मेरा बस गया प्यार इसपे तेरा ...................नारी के सौन्दर्य की अनुभूति को कुछ इस तरह व्यक्त किया रूप तेरा मस्ताना प्यार मेरा दीवाना ..................
राजेश खन्ना ने जहां रोमांटिक फिल्मों के किरदार को भरपूर जीया वहीं उन्होंने ऐसी फिल्में दीं, जो भारतीय फिल्मों में मील का पत्थर है। उन्होंने जब बाबर्ची का किरदार निभाकर समाज को यह सन्देश दिया कि एक संयुक्त परिवार में कैसे रहा जाता है- ''भोर आई गया अंधियारा सारे जग में हुआ उजियारा नाचे झूमे ये मन मतवाला......................वो पूरे समाज को यह भी बता दिया कि एक अंधियारे के बाद नए सूरज का स्वागत कैसे किया जाता है। जब वो जीवन के फलसफा को कुछ इस तरह बया करते हैं, '' तुम बिन जीवन कैसा जीवन फूल खिले तो दिल मुरझाये, आग लगे जब बरसे सावन’ जैसे गीत से ज़िन्दगी की गहरी फालसा को बताया। वहीं काका ने यह भी कहा '' दुनिया में रहना है तो काम करो, हाथ जोड़ो सबको सलाम करो प्यारे इसमें काम के उस तरीके को कहा कि प्यार ही दुनिया के लिए है। ''
अमर प्रेम के जरिये उन्होंने एक ऐसी प्रेम की परिभाषा गढ़ी जो अपने में बेमिसाल है ..................उन्होंने दुनिया के उन लोगों का जबाब दिया जो बेवजह कही भी टांग अड़ाते हैं, उन्होंने साफ़ कहा कि ''कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना/ छोड़ो बेकार की बातों में कही बीत ना जाए रैना ..............से प्रेम की पराकाष्ठा व्यक्त किया, दर्द की बेइन्तहा को बयां किया। न हँसना मेरे गम पे इन्साफ करना जो मैं रो पड़ूं तो मुझे माफ़ करना, जब दर्द नहीं था सीने में, तब ख़ाक मजा था जीने में ....................काका ने दोस्ती की वो मिसाल पेश की जो शायद फिल्म इंडस्ट्री में आज तक किसी ने नहीं किया। नमक हराम में एक दोस्त अपने अनमोल दोस्त के लिए हँसते हुए अपनी जान तक कुर्बान कर देता है यह कहते हुए ''दीये जलते हैं फूल खिलते हैं, बड़ी मुश्किल से मगर दुनिया में दोस्त मिलते हैं।“ ऐसी मिसाल दी काका ने दोस्ती की
राजेश खन्ना ने अपने मर्मस्पर्शी अभिनय के साथ संवाद अदायगी से भारतीय सिनेमा को अनमोल बना दिया और गुरु कुर्ता पहनने वाला आनंद समन्दर किनारे जब यह गाता है कि ज़िन्दगी को कैसे ज़िया जाता है '' ज़िन्दगी कैसी है पहेली हाय कभी तो हंसाए कभी ये रुलाये, कभी देखो मन नहीं चाहे पीछे पीछे सपनो के भागे, एक दिन सपनो का राही चला जाए सपनों से आगे कहां .......................आनंद के किरदार के इतने रंगों को राजेश खन्ना ने जिस खूबी सी ज़िया आनंद ने सिखाया कि मौत तो आनी है लेकिन हम जीना नहीं छोड़ सकते। ज़िन्दगी लम्बी नहीं बड़ी होनी चाहिए। ज़िन्दगी जितनी जियो, दिल खोलकर जियो।
हिन्दी सिनेमा का यह आनंद अब हमारे बीच नहीं रहा लेकिन उसका दिया फलसफा हमेशा हमें याद दिलाता रहेगा कि ज़िन्दगी लम्बी नहीं बड़ी होनी चाहिए और ज़िन्दगी को खुलकर जीना चाहिए। काका को मेरा शत शत नमन।
सुनील दत्ता। लेखक संस्कृतिकर्मी, चित्रकार व पत्रकार हैं। हस्तक्षेप टीम का हिस्सा हैं।