योगीश खरेल
काठमाण्डौ। 9 नवम्बर। सीमांचल क्षेत्रों को अगर छोड़ दें तो बिहार विधान सभा में कितनी सीटे हैँ, बहुत से नेपालियों को पता भी नहीँ होता था। यहाँ तक कि बिहार का मुख्यमन्त्री कौन है, किसी को मतलब नहीँ रहता था। निर्वाचन 2015 में स्थिति बदला हुआ है। हर किसी की नजर बिहार की मतगणना पर थी। सवाल है ऐसा क्यों हुआ ?
जनकपुर के हेम थपलिया बताते हैं कि जबसे मोदी सरकार ने नेपाल में नाकाबन्दी शुरू किया है तब से नेपाली जनता उनसे बहुत नाराज हैं। उनकी दिली इच्छा थी कि बिहार में मोदी हार जाएँ, ताकि उनको कुछ सबक मिले।
नेपाल में हर कोई मोदी विरोधी हो, ऐसी बात नही है। राजेन्द्र महतो, जो 40 साल पहले सोनवर्षा, सीतामढ़ी के रहने वाले थे, और नेपाल के नागरिकता प्राप्त होने पर कई बार काबिना मन्त्री बन चुके हैँ, वो बिहार में मोदी को जिताने के लिए महीनों से एक तरफ रक्सोल में महेश अग्रवाल के साथ निर्वाचन अभियान में सहयोग देते आ रहे हैं, तो नेपाल के दशगजा क्षेत्र में धरना में बैठते आ रहे हैं। अग्रवाल का मानना है कि बिहार में 40 फीसदी मतदाता के सम्बन्धियों नेपाल के तराई मे रहते हैं, नाकाबन्दी से भाजपा का मत बढ़ जाएगा, लेकिन परिणाम उल्टा हुआ।
बिहार मुजफ्फरपुर में 22 फरवरी को सम्पन्न भाजपा की परिवर्तन रैली में फोरम नेपाल के केन्द्रीय उपाध्यक्ष लाल बाबू राउत और पर्सा जिल्ला अध्यक्ष प्रदीप यादव ने मोदी की मंच रक्षा की जिम्मेवारी सम्हालने पर भाजपा सांसद् अजय निषाद ने धन्यवाद दिया था।
बेतिया के भाजपा सांसद डॉ. संजय जायसवाल का नागरिक अभिनन्दन करने के लिए मधेसी जनअधिकार फोरम, नेपाल पर्सा जिल्ला अध्यक्ष प्रदीप यादव विशेष रूप से गए थे।
नेपाल की करीब तीन करोड़ आबादी डेढ़ महीने से मुश्किल दौर से गुजर रही है। यहाँ तक कि दबाओं के अभाव में
Nepali upar kiya gaya pap ki parinam Bihar me prakat huwa@narendra modi
— Madhav Dhungel (@MadhavDhungel) November 8, 2015
Now the petrol will come https://t.co/PHmMvSyDet
— अङ्किता मन्दल (@mandalreform) November 8, 2015
परपिडक माेदिलाई बिहारका जनताले पनि मन पराउउँदा रहेनछन् । त्यसकारण विहारमा भाजपा नराम्ररी हारेको छ।
Posted by Hari Govinda Luintel on Saturday, November 7, 2015