यह सर्व विदित है की किसी भी लोकतान्त्रिक संगठन के सफल संचालन हेतु कार्यकर्ता, कार्यालय, कार्यक्रम, कोष, क्रियान्वयन अनिवार्य तत्त्व होते हैं। सिधान्तविहीन अवसरवादी राजनीति आज के दौर में अपना परचम लहरा रही है। दल बदल व पूंजीवाद के सहारे सत्ता के गलियारे में अपना वजूद बने रखने के फेर में माहिर फरेबी किस्म के लोगों ने अपना पाला बदलना व भावनात्मक प्रलाप शुरु कर दिया है।
आज राजनीति स्याह व संकीर्ण हो चुकी है। काजल की कोठरी बन चुकी इस राजनीति में बेदाग रहना ही एक बड़ी उब्लाब्धि है।
आज संगठन आधारित राजनीति का स्थान व्यक्ति, व्यक्ति के परिवार की चाटुकारिता व जी हुजूरी ने ले लिया है।
प्रख्यात समाजवादी विचारक व चिन्तक डॉ राम मनोहर लोहिया राजनीति में परिवारवाद के कट्टर विरोधी थे। वो इसे राजतन्त्र मानते थे।
डॉ लोहिया आजाद भारत की दुर्दशा का कारण आजाद भारत की कांग्रेसी सरकार व पंडित नेहरू को मानते थे। कांग्रेस के खिलाफ गैर-कांग्रेस वाद की मुहीम को साकार रूप लोहिया ने दिया था। आज डॉ लोहिया के विचार व सोच कार्यकर्ताओं की उपेक्षा व अवसरवादियों को बढ़ावा दिये जाने के कारण नेपथ्य में चलते चले जा रहे हैं।
डॉ राम मनोहर लोहिया राजनीति को समाज सेवा का माध्यम मानते थे। राजनीति में विचार व सिधान्त को सर्वोपरि मानने वाले डॉ लोहिया ने अपने सम्पूर्ण जीवन में कभी भी संघर्ष शील साथियों - कार्यकर्ताओं की ना तो उपेक्षा की और ना ही चुनावी लाभ के दृष्टिकोण से अपने विचारों और सिधान्तों से समझौता किया।
1967 का वाकया है -- इस समय डॉ राम मनोहर लोहिया संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के नेता थे। खुद कन्नौज सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ रहे थे तथा दल के अन्य उम्मीदवारों की सभाओं में भाषण भी देने जाते थे। इस समय विधान सभा व लोक सभा दोनों के चुनाव साथ साथ हो रहे थे। डॉ लोहिया १९६३ में फर्रुखाबाद लोकसभा सीट से
इलाहबाद में 1967 के चुनावों में डॉ लोहिया को एक विशाल चुनावी सभा को संबोधित करना था। संसोपा के उम्मीदवारों का मानना था कि डॉ लोहिया का सभा में समान नागरिक संहिता का समर्थन करना उनके चुनावों में प्रतिकूल असर डालेगा। डॉ लोहिया सड़क मार्ग से प्रताप गढ़ से इलाहबाद आने वाले थे। समाजवादी नेता सत्य प्रकाश मालवीय ने गंगा पर - फाफा मौऊ बाज़ार में डॉ लोहिया का स्वागत किया और उसने साथ कार में ही बैठ लिए। कार में कैप्टेन अब्बास अली भी थे।
सत्य प्रकाश मालवीय ने किसी तरह प्रत्याशियों की बात डॉ लोहिया से कही।
डॉ लोहिया ने कहा ---- तुम चाहो तो मुझे मीटिंग में मत ले जाओ। लेकिन मीटिंग में यदि मुझसे प्रश्न पूछा गया या किसी ने वहां इस विषय पर चर्चा की, तो उसका वही उत्तर दूंगा जो मेरी राय है, मेरी विचारधारा है। मैं वोट के लिए विचारधारा नहीं बदला करता, भले ही मैं हार जाऊं, पार्टी के सभी उम्मीदवार हार जाएँ। मेरी विचारधारा मैं समझता हूँ देश हित में है और देश दल से, चुनावों से बड़ा है।
अरविन्द विद्रोही