हमारे देश में आये दिन एड्स बीमारी के बारे में चर्चा करना या भाषण देना या फिर उसकी रोकथाम से बचाव के बारे में सलाह देना मानों एक आम फैशन बन गया है। जिसको देखो वही एड्स से होने वाले खतरों की विवेचना करने में ऐसा लिप्त है कि मानों हमारे देश की सारी जनता को एड्स ने ही डंस लिया हो और उसके विष से हम सब कलंकित घूम रहे हों।
हम शायद अपने देश की प्रचीनतम और आम जनता की बीमारियाँ जैसे टी.बी. का इन्फेक्शन, मलेरिया, कुष्ठ रोग, हैजा व कालाज़ार जैसी बीमारियों को ऐसे भूल रहे हैं कि जैसे हमारे देश से इन सब कलंकित बीमारियों को बहुत पहले ही जड़ से उखाड़ कर फेंक दिया गया हो।
हम शायद यह नहीं जानते कि इन सब बीमारियों का हमारे देश में होने वाली अकाल मौतों में बहुत बड़ा रोल होता है। खासकर टीबी का इन्फेक्शन हमारे देश में महामारी की तरह फैल रहा है और आश्चर्य की बात यह है कि हम उसके प्रति पूरी तरह से सचेत नहीं हैं।
ऐसा लगता है कि टीबी का इन्फेक्शन हमारी जिन्दगी का एक हिस्सा बन चुका है, जो हमारे शरीर से मुलाकात करने यदा-कदा आता-जाता रहता है।
भारत जैसे विकासशील देश में छाती के इन्फेक्शन में टीबी यानि टयूबरक्युलोसिस का बहुत बड़ा रोल है।
टीबी के बाद छाती के इन्फेक्शन के कारणों में न्यूमोनिया का नम्बर दूसरे पर आता है।
अगर समय रहते न्यूमोनिया को नियंत्रण में न लाया गया तो मरीज़ को भयानक परिणाम भुगतने पड़ते हैं। इसके अलावा छाती में और भी कई तरह के इन्फेक्शन
टीबी के इन्फेक्शन का अगर समय पर पूरी तरह से खात्मा न किया गया तो एक तरह से यह इन्फेक्शन स्वयं ही लाइलाज हो जायेगा और टीबी की कोई भी दवा असर करना बन्द कर देगी।
दूसरी बात यह है कि टीबी का इन्फेक्शन (TB infection) फेफड़े क़ो धीरे-धीरे नष्ट कर देगा। तब एक फेफड़ा खोने के अलावा कुछ भी न बचेगा।
इसी तरह से अगर न्यूमोनिया के इन्फेक्शन को नियंत्रित न किया गया तो छाती में मवाद यानि पस बन जायेगा। ये पस आपके फेफड़े व आपकी जान दोनों के लिये घातक सिद्ध होगा। फेफड़े का हिस्सा नष्ट होगा ही होगा और साथ-साथ जान से भी हाथ धोना पड़ेगा।
छाती में इन्फेक्शन होने के लिये जहाँ एक ओर कुपोषण यानि स्वस्थ्य व संतुलित आहार का अभाव व दूसरी तरफ दूषित वातावरण के कारण कीटाणुओं की हवा में भरमार। इसके साथ-साथ लोगों की आधुनिक व व्यायाम रहित जीवन शैली, पूर्ण निद्रा का अभाव व तनाव ग्रस्त मानसिकता है।
इसके अलावा और भी कई कारण हैं जैसे मादक द्रव्यों व शराब का प्रतिदिन सेवन, बीड़ी-सिगरेट का प्रचलन व अनियंत्रित और अनियमित भोजन। इन सब का मिला जुला असर फेफड़ों को चौपट कर रहा है।
लोग यह नहीं समझते कि फेफड़ों को भी ऑक्सीजन युक्त शुद्ध हवा की सख्त जरूरत है। इसके अभाव में फेफड़े कभी स्वस्थ्य नहीं रह पाते हैं। अगर फेफड़े को हर साँस के साथ ऑक्सीजन की मात्रा कम मिलेगी तो यही फेफड़े बहुत जल्दी इन्फेक्शन के चपेट में आ जायेंगें।
अगर छाती के इन्फेक्शन को समय रहते नियंत्रित न किया गया तो फेफड़े के चारों ओर छाती के अन्दर पानी का जमाव होना शुरू हो जाता है। यह छाती में टी.बी. के इन्फेक्शन की शुरूआत है।
अगर टीबी का पानी छाती से समय रहते न निकाला गया और टीबी के इन्फेक्शन को कंट्रोल न किया गया तो छाती में मवाद बनने की सम्भावना बड़ी प्रबल हो जाती है और आपरेशन की जरूरत पड़ जाती है।
आपको चाहिये कि समय रहते किसी थोरेसिक यानि चेस्ट सर्जन से तुरन्त परामर्श लें और उनकी निगरानी में इलाज़ करायें। अगर छाती में न्यूमोनिया के इन्फेक्शन को प्रभावी ढंग से नियंत्रित न किया गया तो फेफड़े में मवाद बनने की सम्भावना अत्यधिक हो जाती है। ऐसी अवस्था में अगर किसी थोरेसिक सर्जन की सलाह न ली गई तो जानलेवा परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। क्योंकि ऐसी अवस्था में अकेले दवा का कोई खास असर नहीं होता है।
पसली के फैक्चर व छाती की चोट का भी छाती के इन्फेक्शन में बहुत महत्वपूर्ण रोल है। हमारे देश में अक्सर देखा गया है कि छाती में चोट लगने व पसली टूट जाने पर उसका सही इलाज नहीं हो पाता है। इसके लिये एक तरफ छाती चोट से घायल व्यक्ति के परिवार वालों की अज्ञानता तथा अस्पतालों में थोरेसिक सर्जन यानि चेस्ट सर्जन की अनुपलब्धता है।
लोग यह नहीं समझते कि पसली टूटने या चटकने पर अकेले हड्डी ही नहीं टूटती बल्कि छाती के अन्दर स्थित फेफड़े भी जख्मी हो जाते हैं और इन जख्मी फेफड़े को अपनी कार्यशीलता को पुन: प्राप्त करने के लिये विशेष इलाज़ की जरूरत होती है। इसके लिये इस अवस्था में एक अनुभवी थोरेसिक सर्जन व एक अत्याधुनिक आईसीयू , कृत्रिम साँस सयंत्र (वेंटीलेटर) व क्रिटिकल केयर महकमे की नितान्त आवष्यकता होती है। छाती चोट से घायल मरीजों के परिवार वालों को यह सुनिश्चित कर लेना चाहिये कि अस्पताल में घुसने से पहले इन सब सुविधाओं की उपलब्धता है या नहीं ।
लोग यह बात अच्छी तरह समझ लें कि छाती चोट में हुआ इन्फेक्शन जान लेवा हो सकता है। छाती चोट में फेफड़े के चारों ओर खून जमा होने और फिर उसमें मवाद पड़ने का हमेशा खतरा बना रहता है। सही इलाज के अभाव में छाती चोट के बाद पनपा इन्फेक्शन फेफड़े को आंशिक या पूरी तरह से नष्ट कर देता है। इसलिये छाती चोट को गम्भीरता से लें ।
छाती में इन्फेक्शन होने पर क्या करें ?
What to do if chest infection?
अगर छाती में इन्फेक्शन की आशंका है और आपके परिवारिक फिजिशियन उसे हफ्ते या दस दिन में कंट्रोल नहीं कर पा रहे है और समस्या दिन पर दिन बढ़ती जा रही है तो आप तुरन्त किसी अनुभवी थोरेसिक सर्जन यानि चेस्ट सर्जन से परामर्श लें और उनकी निगरानी में जरूरी जाँचें व प्रभावी इलाज़ करवायें, क्याेंकि प्रारम्भिक दिनों में छोटे ऑपरेशन यानि छाती में एक टयूब डालकर समस्या को नियंत्रित किया जा सकता है और आगे चलकर जानलेवा फेफड़े की जटिलताओं को पनपने से रोका जा सकता है।
कुछ जरूरी जाँचें
छाती के इन्फेक्शन में चेस्ट एक्स-रे, छाती का एच आर सीटी स्कैन व कभी-कभी एमआरआई स्केन की भी जरूरत पड़ती हैं। कभी-कभी छाती की सीटी एंजियोग्राफी की आवश्यकता बन पड़ती हैं। इसलिये छाती के इन्फेक्शन से पीड़ित मरीज़ के परिवार वालों को चाहिये कि हमेशा ऐसे अस्पतालों में जायें जहाँ इन सब जाँचों की सुविधा हो और एक अनुभवी थोरेसिक सर्जन की चौबीस घंटे उस अस्पताल में उपलब्धता हों।
इलाज़ की विधायें
फेफड़े के इन्फेक्शन को सबसे पहले दवाइयों से कंट्रोल किया जाता है। जब छाती में इन्फेक्शन के कारण पानी या पस इकट्ठा हो जाता है तो उसे छाती में टयूब डाल कर निकाला जाता है। यह बड़ा कारगर उपाय है। इस छोटे से इलाज में अनावश्यक देरी फेफड़े को आंशिक या पूर्ण क्षति पहँचा देती है।
अगर एक तरफ के फेफड़े का एक हिस्सा या पूरा हिस्सा इन्फेक्शन के कारण पूर्ण रूप से नष्ट हो चुका है तो तुरन्त उसे किसी अनुभवी थोरेसिक सर्जन से निकलवा दें, अन्यथा फेफड़े का नार्मल व स्वस्थ्य हिस्सा या दूसरी तरफ का स्वस्थ फेफड़ा भी इन्फेक्शन की चपेट में आ जायेगा, और जानलेवा जटिलतायें पैदा हो जायेंगी।
अंत में मैं यही कहँगा कि छाती के इन्फेक्शन के मरीज़ सही समय पर सही अस्पताल व सही डॉक्टर (थोरेसिक सर्जन) से प्रभावी ढ़ंग से इलाज़ करायें अन्यथा पैसे व समय की बर्बादी तो होगी ही और साथ ही साथ जान से भी हाथ धोना पड़ेगा।
डॉ.के.के. पाण्डेय
(सीनियर थोरेसिक एवं कार्डियो वैस्क्युलर सर्जन, इन्द्रप्रस्थ अपोलो अस्पताल, नई दिल्ली)
स्रोत -देशबन्धु