सितंबर 2017 में कार्ल मार्क्स के दास कैपिटल के पहले खंड के 150 साल पूरे हो रहे हैं. अंग्रेजी अनुवाद पहली बार 1887 में आया था. पहली बार किसी विदेशी भाषा में यह 1872 में रूसी में प्रकाशित हुआ था. 1867 में दास कैपिटल का आना राजनीतिक अर्थशास्त्र और सामाजिक विज्ञान में नए युग की शुरुआत था. क्योंकि इसके जरिए पूंजीवादी दुनिया में इसके तंत्र को समझने की कोशिश हुई.
दास कैपिटल के तीन खंड हैं. दूसरा और तीसरा खंड मार्क्स की मृत्यु के बाद फ्रेडरिक ऐंजल्स ने क्रमशः 1885 और 1894 में प्रकाशित किया. पूंजीवाद की मार्क्स की व्याख्या में यह बताया गया कि यह कैसे शुरू हुआ, कैसे बढ़ा और कैसे काम कर रहा है. शोषण, मुनाफे और ऐसे ही दूसरे अंतर्विरोधी बातों पर कैसे यह पूरी व्यवस्था चल रही थी. इस आधार पर उन्होंने मूल्यों का एक श्रम सिद्धांत तैयार किया जिसके जरिए पूंजीपतियों द्वारा श्रमिकों के शोषण को समझाया गया.
पूंजी के केंद्रीकरण को भी मार्क्स ने समझाया. इससे विलय और अधिग्रहण का रास्ता खुलता है. मार्क्स के मुताबिक उत्पादन और पूंजी मूल तत्व थे. लेकिन एक वक्त ऐसा आएगा जब ये अंतर्विरोध आपस में टकराएंगे और यह गुब्बारा फूट जाएगा.
मार्क्स ने यह कहा कि सर्वहारा द्वारा पूंजीपतियों के खिलाफ विद्रोह तय है. मार्क्स ने यह माना कि पूंजी श्रमिकों के शोषण की बुनियाद पर टिकी है और यह श्रमिकों का खून पीकर और मजबूत हो रही है. यह पाठकों को तो ठीक लग सकता है. लेकिन यह कहते हुए लेखक ने न सिर्फ क्रांतिकारी बदलावों को बहुत अधिक तवज्जो दिया बल्कि विद्रोह की राह में आने वाली बाधाओं को भी नजरंदाज किया.
दास कैपिटल में अर्थशास्त्र और समाजशास्त्र की भी व्याख्या है. मार्क्स ने कहा कि उत्पादों की दुनिया में व्यक्तिगत संबंध भी चीजों
मशीन और आधुनिक उद्योगों पर लिखे अध्याय में उन्होंने बताया है कि कैसे साम्राज्यवादी प्रभाव के जरिए यूरोप के लोगों ने अपने उपनिवेशों के उद्योगों को बर्बाद कर दिया. इसके जरिए यह पता चलता है कि विश्व व्यवस्था में शोषणकारी केंद्र और हाशिये के रिश्ते से वह परिचित थे.
अगर किसी को पूंजीवाद के साथ-साथ हाशिये के लोगों के खराब होती स्थिति को समझना हो तो दास कैपिटल इसका एक स्वरूप पेश करता है. सर्वहारा में वे गरीब किसान भी शामिल हैं जो पूंजी के आगे न सिर्फ समर्पित हो गए हैं बल्कि अपनी मेहनत की कमाई, जिस पर वे खेती करते हैं उसका किराया और कर्ज पर ब्याज चुका रहे हैं. सर्वहारा में वे छोटे व्यापारी भी शामिल हैं जिन्हें व्यापार में बराबरी की हिस्सेदारी नहीं मिल रही है.
सर्वहारा का स्तर नीचे होने से जो श्रमिक रोजगार से वंचित हैं, वे न चाहते हुए भी मजदूरी कम करने का माध्यम बन जा रहे हैं. इससे छोटे कारोबारियों के लिए उत्पादन लागत कम हो रहा है. इससे पूरी दुनिया के पूंजीपतियों के मुनाफा कमाने की क्षमता बढ़ जा रही है. लेकिन इससे जो स्थिति पैदा हो रही है उससे लोगों की क्रय शक्ति नहीं बढ़ रही है और खपत कम हो रही है. इससे उद्योगों की क्षमता बढ़ी हुई दिखती है और नए निवेश पर होने वाला मुनाफा कम हो जाता है. इससे नया निवेश हतोत्साहित होता है.
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कॉनोमिक ऐंड पॉलिटिकल वीकली का संपादकीय (Economic and Political Weekly, वर्षः 52, अंकः 37, 16 सितंबर, 2017) |