लखनऊ 7 जून 2017। स्वराज अभियान की राष्ट्रीय कार्यसमिति के सदस्य अखिलेन्द्र प्रताप सिंह ने सभी राज्य विश्वविद्यालयों में दीन दयाल शोध पीठ स्थापित करने के उत्तर प्रदेश सरकार के कैबिनेट के फैसले पर आपत्ति जताते हुए कहा है कि दीन दयाल उपाध्याय का राजनीतिक विचार धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक भारत गणराज्य के मूल्यों विरूद्ध है। उनका विचार संविधान के मूलभूत विचारों से मेल नहीं खाता है। एक तरफ उनकी विचारधारा को अंत्योदय की विचारधारा कहा जाता है दूसरी तरफ मेहनतकशों को उनके श्रम का पूरा लाभ मिलें उसके विरूद्ध भी दीन दयाल खड़े हुए मिलते है। उनके विचार में ऐसा कुछ भी नहीं है जिस पर शोध हो और जनता के धन को उनके राजनीतिक विचार पर खर्च करना पैसे की बर्बादी है।
ज्ञातव्य हो कि संविधान के संघ और उसका राज्य क्षेत्र में वर्णित अनुच्छेद एक में यह दर्शाया गया है कि इंडिया जो कि भारत है> राज्यों का संघ (Union) होगा। लेकिन दीन दयाल अपनी किताब एकात्म मानववाद (Integral Humanism) में दिखाते हैं कि संविधान में भारत को राज्यों का फेडरेशन होना बताया गया है और इसके विरूद्ध अपनी बात रखते हैं, जबकि संविधान में फेडरेशन नहीं यूनियन की बात लिखी गयी है। दीन दयाल उपाध्याय का पूरा दर्शन आधुनिक भारतीय गणराज्य के आदर्शो के विरूद्ध गढ़ा गया है और पूरी तौर पर अधिनायकवादी विचारों से परिपूर्ण है।
दीन दयाल उपाध्याय के राजनीतिक विचारों को समझने के लिए निम्न लेख भी पढ़ें
दीनदयाल उपाध्याय : गोलवरकर के क्रॉस ब्रीडिंग सिद्धा्ंत के प्रमुख प्रचारक
दीनदयाल उपाध्याय : गोलवलकरी सांचे में ढला व्यक्तित्व !
क्या दीनदयाल उपाध्याय वाकई इतनी बड़ी शख्सियत थे – जैसा कि उनके अनुयायी समझते हैं
मुगलसराय पर लाद दिये गये ये दीनदयाल उपाध्याय आखिर हैं कौन ?
दीनदयाल उपाध्याय ने स्वतंत्रता आंदोलन की निंदा क्यों की थी मोदीजी !