हर साल 26 जनवरी January 26 आती है. हर बार पद्म पुरस्कार Padma awards व भारत रत्न Bharat Ratna को लेकर तरह-तरह की चर्चा होती है. लोग शिकायत करते पाए जाते हैं कि इस शख्स को क्यों दिया गया, उस शख्स को क्यों नहीं दिया गया? गड़े मुर्दे भी खूब उखाड़े जाते हैं. बार-बार की शिकायत दोहराई जाती है कि पुरस्कारों के मामले में सरकारें राजनीति करती हैं. कई गंभीर लोग भी इस चकल्लस में पड़ते हैं. गोया लोकतंत्र में राष्ट्र की सेवा के बदले जीवित रहते या मरणोपरांत पुरस्कार देना-लेना एक उचित व्यवस्था है!
आज लोहिया होते तो गैर भाजपावाद का आह्वान करते
एक नागरिक के नाते इस बार की 26 जनवरी पर भारतरत्न को लेकर हमारे मन में भारी अंदेशा बना हुआ था. जब गणतंत्र दिवस Republic Day पर दिए जाने वाले इस बार के पद्म पुरस्कारों और भारतरत्न की घोषणा हुई तो हमें राहत महसूस हुई. यूं तो समाजवादी विचारधारा और आंदोलन से जुड़े कुछ गंभीर लेखक-बुद्धिजीवी भी अक्सर डॉ. लोहिया को भारतरत्न से नवाज़ने की मांग Demanding Dr. Lohia for Bharat Ratna सरकारों से करते रहते हैं. इस बार भी यह देखने को मिला. लेकिन हमें अंदेशा इसलिए था कि इस बार नीतीश कुमार के नेतृत्व में कुछ सौदेबाज़ समाजवादी लोहिया को भारतरत्न दिलवाने की मुहिम छेड़े हुए थे. (इस पर हमने पिछले दिनों 'लोहिया, भारतरत्न और सौदेबाज़ समाजवादी' टिप्पणी लिखी थी, जो हस्तक्षेप डॉट कॉम पर छपी है.) हमें लग रहा था कि जो सरकार कारपोरेटपरस्त नीतियों और साम्प्रदायिक फासीवाद के पक्ष में गांधी और अम्बेडकर का खुले आम इस्तेमाल कर सकती है, वह 'नेहरू विरोधी' और 'गैर-कांग्रेसवाद के रणनीतिकार' लोहिया का
लोहिया, भारतरत्न और सौदेबाज़ समाजवादी
कारपोरेट राजनीति के इस दौर में यह मांग करना कि जन-गण के खिलाफ शासन-तंत्र को वैधता प्रदान करने वाली पुरस्कारों की यह प्रथा बंद होनी चाहिए, अरण्य-रोदन होगा. भारत का शासक वर्ग, नवउदारवाद का नशा जिसके सिर चढ़ कर बोल रहा है, तुरंत आपको राष्ट्र-विरोधी करार देगा. फिर भी कम से कम यह मांग तो की ही जानी चाहिए कि भगत सिंह से लेकर लोहिया तक, जिन लोगों की दृष्टि स्पष्ट रूप से भारत को एक समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष राज्य बनाने की थी, उन्हें भारतरत्न देकर अपमानित न किया जाए.
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