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फर्जी खबरों का बाजार

किशोर

एक पुरानी जानी मानी बात है कि अगर एक झूठ को सौ बार कहा जाये तो लोग उसे सच मान लेते हैं। दूसरा हमारे समाज में लिखित बात जो कहीं पर प्रकाशित हुई हो या ऐसा समाचार जो टेलीविजन या रेडियो में प्रसारित हुआ हो उसे बिना प्रमाण के सच मान लिया जाता है। शायद इन दो बातों का फेक न्यूज वालों ने यानी फर्जी खबर फैलाने वालों ने बहुत फायदा उठाया है। आज के जमाने में किसी बात, सच या झूठ, को सौ बार कहना और उसे प्रसिरित करना और साथ में प्रमाण के लिए विडियो या ऑडियो क्लिप चलाना कितना आसान है आप सब जानते हैं।

यह क्रम पिछले काफी समय से चल रहा है और इसका ज्यादातर उपयोग किसी को देशद्रोही या राष्ट्रद्रोही या समाज विरोधी बताने के लिए किया गया है या इस सरकार की झूठी उपलब्धियां गिनाने के लिए किया जा रहा है। इस तरह की झूठी खबर को आगे बढ़ाने या आग की तरह फैलाने में इस बिके हुए गोदी मीडिया ने और आजकल के सोशल मीडिया ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

इसका एक उदहारण निर्भया बलात्कार के मामले में आया था जिसमे कई मुख्य अखबारों ने अपनी मुख्य खबर में किशोर को सबसे क्रूर बताया था। बाद में न्यायालय की कार्यवाही में यह तथ्य सामने आया कि इस बात का कोई आधार नहीं है कि उसे सबसे क्रूर कहा जाए। कई अखबारों ने अपनी गलती के लिए अन्दर के पृष्ठों में माफीनामा भी प्रकाशित किया था। पता नहीं वह माफीनामा कितने लोगों ने पढ़ा और यह बात स्थापित ना हो पाई कि वह सबसे क्रूर नहीं था। आज पांच साल बाद भी 10 में से कम से कम 7 लोग यही कहेंगे कि सबसे क्रूर वह किशोर ही था।

तीन साल बाद वह किशोर रिहा हुआ। व्हाट्सएप्प

पर उसकी फोटो प्रसारित की गयी और उसे मुसलमान साबित करने की कोशिश हुई। जबकि नियमों के मुताबिक उसकी पहचान गुप्त रखी गयी थी। तो उन लोगों को उसकी तस्वीर कहाँ से मिली और उन्हें यह कैसे पता चला कि वह मुसलमान था।

शुक्र है कि यह मेसेज इतना वायरल नहीं हुआ पर आज भी कई लोग यही मानते हैं कि वह सबसे क्रूर था और वह मूसलमान था।

कहने का अर्थ यह है कि आप कितना भी खंडन कर लें पर जो फर्जी खबर एक बार वायरल हो गयी तो वह जनता के मानसिक पटल पर सच्ची खबर की तरह अंकित हो जाती है।

इस क्रम में सबसे ताजा उदहारण एक चैनल के एंकर के नकली ट्वीटर अकाउंट से यह ट्वीट किया गया कि मुझे शर्म है कि मेरे प्रधानमंत्री गुंडे हैं। उन पर यह आरोप है कि उन्होंने प्रधानमंत्री को गुंडा कहा। उन्होंने इस घटना का खंडन किया। उन्होंने कहा कि वह प्रधान मंत्री के आलोचक है पर उन्होंने अपने प्रधान मंत्री को गुंडा नहीं कहा। जब तक उन्होंने इस बात का खंडन किया तब तक यह खबर कईयों तक पहुँच चुकी थी। अब मैं यह नहीं जानता उनमे से कितने लोगों ने खंडन देखा पर अभी भी उस फर्जी खबर को फैलाया जा रहा है।

इन एंकर के पास टेलीविजन जैसा सशक्त माध्यम था पर अधिकतर मामलों में ऐसा नहीं होता और यह फर्जी खबरें बिना किसी आधार के फलती फूलती रहती हैं।

इसी तरह के झूठ सरकारी नुमाइंदे और उनका मुखिया भी बोलता है। पन्द्रह अगस्त को लालकिले की प्राचीर से हमारे माननीय प्रधानमंत्री ने कहा कि नोटबंदी के बाद इस साल 56 लाख नए करदाता जुड़े हैं। हमारे वित्तमंत्री के 17 मई को दिए हुए एक कथन के अनुसार यह संख्या 91 लाख है। इसी सरकार ने राज्यसभा में एक प्रश्न( प्रश्न संख्या 2017) के जवाब में 1 अगस्त को कहा था कि यह संख्या 33 लाख है। भारत सरकार के आर्थिक सर्वे के अनुसार यह संख्या 5.4 लाख है। यह सभी सरकारी बयान हैं। हो सकता है इन सबके सन्दर्भ अलग-अलग हो। बाद में सरकार ने स्पष्टीकरण दिया कि इन कथनों के सन्दर्भ अलग अलग थे। पर यह कथन कहते हुए क्या उन सन्दर्भों को स्पष्ट करना चाहिए था। बिना सन्दर्भ के अलग अलग आंकड़ो का सन्देश क्या है? सरकार क्या सन्देश देना चाहती है ?

कभी कभी इन फर्जी खबरों का परिणाम किसी शख्स की मौत तक हो सकता है। जब तक उस खबर का खंडन आता है बहुत देर हो चुकी होती है। उस फर्जी खबर से जो नुक्सान हुआ होता है वह वापस नहीं हो सकता।

जिस तरह से इन फर्जी खबरों का इस्तेमाल हो रहा है ऐसा नहीं लगता कि वह महज कोई गलती है। यह एक सोची समझी साजिश का हिस्सा लगती है। इनका ज्यादातर प्रयोग विपक्ष का या सरकार की आलोचना करने वालों की छवि को खराब / धूमिल करने के लिए किया जा रहा है। इसका प्रयोग एक समुदाय विशेष या उससे सम्बंधित व्यक्ति के खिलाफ झूठी अफवाहें फैलाने में किया जा रहा है। इसका उपयोग अपनी उपलब्धियों को बढ़ा-चढ़ा के पेश करने या जो उपलब्धियां है ही नहीं उन्हें पेश करने के लिए किया जा रहा है। इसलिए यह नहीं लगता कि यह महज कोई गलती है। यह एक सोची समझी साजिश का हिस्सा लगती है।

हालांकि मैं व्यक्तिगत रूप से इनसे नहीं मिला पर कुछ लोगों का तो यहाँ तक मानना है कि इस सुनियोजित साजिश में बाकायदा एक आई टी विभाग होता है जिसमे वैतनिक कर्मचारी होते है ं। इनका काम इन फर्जी खबरों को गढ़ना और उन्हें वायरल करना होता है।

किशोर
किशोर
लेखक डेवलेपमेंट प्रोफेश्नल के रूप में जर्मनी में कार्यरत हैं और पिछले कई सालों से बाल अधिकारों के क्षेत्र में काम कर रहे हैं।

इस साजिश में बिना जाने बूझे आम जनता के वो लोग भी शामिल है जो बिना सत्यापित किये हुए किसी पोस्ट को व्हाट्सएप्प या फेसबुक में फॉरवर्ड करके उसे वायरल बनाते हैं। जब आप उसे फॉरवर्ड करते हैं तब उस झूठ का हिस्सा बनते हैं जो बार बार फॉरवर्ड करने से सच बन जाता है। वह झूठ जो किसी व्यक्ति या समुदाय को बदनाम करने के लिए प्रयोग होता है , किसी सरकार की झूठी उपलब्धियों को गिनवाने का काम करते हैं और यहाँ तक यह झूठ किसी की हत्या का भी कारण बनता है।

आज के इस फर्जी खबरों के दौर में यह बहुत ही जरूरी है कि किसी भी पोस्ट को सत्यापित किये बिना फॉरवर्ड ना करे बल्कि ऐसी झूठी खबरों की सच्चाई जानकार उसका पर्दाफाश करे ं। ऐसा करके आप इस झूठ के खिलाफ इस जंग में शामिल हो सकते हो और उन मूलभूत मूल्यों को बचाने का कार्य कर सकते हैं जिन पर यह फर्जी खबरें आक्रमण करके खत्म करना चाहती हैं।

(लेखक डेवलेपमेंट प्रोफेश्नल के रूप में जर्मनी में कार्यरत हैं और पिछले कई सालों से बाल अधिकारों के क्षेत्र में काम कर रहे हैं।)

 

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