सोनभद्र, चंदौली व मिर्जापुर का हाल
उत्तर प्रदेश के सोनभद्र, मिर्जापुर, चंदौली विशिष्ट इलाके रहे हैं। यह इलाका संघर्ष और जनांदोलन का विभिन्न स्वरूप अख्तियार करता रहा है। इनमें से दो जिलों सोनभद्र और चंदौली को भारत सरकार के नीति आयोग ने देश के सर्वाधिक पिछड़े जिलों (Most backward districts of the country) के रूप में चिन्हित किया था और इनके विकास के लिए सरकार से विशेष ध्यान देने के लिए कहा था। इसके बाद संघ-भाजपा की मोदी सरकार ने इन जिलों समेत नीति आयोग द्वारा घोषित 101 सर्वाधिक पिछड़े जिलों को ‘महत्वकांक्षी जिलों’ का नाम दिया और घोषणा की गयी कि स्वास्थ्य, शिक्षा व कुपोषण, खेती-किसानी, जल प्रबंधन, आर्थिक समावेशी विकास व कौशल विकास और बुनियादी ढ़ाचा निर्माण का यहां कार्य कराया जायेगा।
पिछले पांच वर्षो से भी ज्यादा समय से ज्यादा चल रही मोदी सरकार और प्रदेश में पिछले ढाई साल से चल रही योगी सरकार में इन महत्वाकांक्षी जिलों सोनभद्र व चंदौली समेत ऐसी हालत वाले मिर्जापुर में विकास का क्या हाल है।
आइए चंद आकंड़ों की रोशनी में इसे देखते हैं -
मिर्जापुर जनपद में जॉब कार्डधारी परिवार Jobcard family in Mirzapur district
जमीनी हकीकत इन सरकारी आंकडों से भी बुरी है। आम तौर पर पिछले दो-तीन वर्षो से मनरेगा ठप्प पड़ी हुई है। जिन थोड़े बहुत परिवारों को मनरेगा में काम भी मिला है। उनकी कई-कई माह से मजदूरी बकाया है। जमीनीस्तर पर ढाचागत विकास का कोई काम नहीं दिखता है। म्योरपुर ब्लाक के रासपहरी ग्राम पंचायत के उदाहरण से स्थिति को समझा जा सकता है। इस ग्राम पंचायत में 1005 परिवार जाबकार्डधारी है जिनके लिए लगभग एक लाख मानव दिवस सृजित करने चाहिए लेकिन हुए इस वर्ष मात्र 4246, जिसमें से ज्यादातर अपने आवास के निर्माण में कार्य करने वाले मजदूरों का काम है। इसके पूर्व के वर्षो में भी एक परिवार को मात्र 10 दिन ही औसतन काम मिला है। खनिज सम्पदा से समृद्ध और आधुनिक उद्योगों वाले इस क्षेत्र में छोटी जोतों की बहुतायत है और आज भी हल-बैल से खेती होती है। अनुत्पादक खेती, उद्योगों में काम न मिल पाने और मनरेगा जैसी योजनाओं के ठप्प पड़ने के कारण बड़े पैमाने पर ग्रामीण गरीब रोजगार की तलाश में विभिन्न राज्यों में पलायन कर रहे थे। लेकिन इधर स्थिति और भी खराब हुई है, मंदी के कारण पलायन कर बाहर जाने वाले ग्रामीण गरीबों को शहरों में भी रोजगार नहीं मिल रहा है और वह वापस गांव लौट रहे है। परिणामतः आदिवासी दलित बाहुल्य सोनभद्र, मिर्जापुर व चंदौली के नौगढ, चकिया में ग्रामीण गरीब भुखमरी की हालात में जिदंगी जी रहे है। वे जहरीले चकवड़ के साग और गेठी कंदा जैसी जहरीली जड़ खाने के लिए मजबूर है। अभी गांधी जयंती पर योगी सरकार द्वारा आयोजित 36 घण्टें के विधानसभा सत्र में कैबिनेट मंत्री अनिल राजभर तक ने अपने वक्तव्य में इस सच को स्वीकार किया कि नौगढ़ के लोग भुखमरी की हालत में जी रहे है और उन्हें सूखा आलू व कोहड़ा खाना पड रहा है। लेकिन मंत्री महोदय ने यह नहीं बताया कि उनकी सरकार इन हालातों से ग्रामीण गरीबों को बचाने के लिए क्या कर रही है और मनरेगा का इतना बुरा हाल क्यों है?
आज भी इस क्षेत्र के ग्रामीण शुद्ध पेयजल के अभाव में उद्योगों द्वारा बहाए जा रहे कचड़े से जहरीले हुए बाधो-नदियों और चुआड, बरसाती नालों का पानी पीने के लिए अभिशप्त है। इससे असमय उनकी मौत होती है और फ्लोरोसिस जैसी लाइलाज बीमारी से वह ग्रसित होते है और उनकी हड्डियां तक गल जाती है। यहां हर साल आकाशीय बिजली से दर्जनों लोग मरते है। मलेरिया, टाइफायड, टीबी, हैजा जैसी बीमारी से इलाज के अभाव में लोगों की मौतें होती है। सरकारी प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों पर डाक्टर नहीं है और जरूरी बुनियादी सुविधाएं भी नहीं है। बेलहत्थी, जुगैल के गरदा टोला समेत कई गांव में जाने के लिए सड़क तक नहीं है। हर घर तक बिजली पहुंचाने का दावा करने वाली सरकार में देश में सबसे ज्यादा बिजली उत्पादन करने वाले इस क्षेत्र के कई गांव आज भी अंधेरे में जीते है जहां बिजली नहीं पहुंची है। शिक्षा का हाल भी बुरा है 18 लाख से ज्यादा आबादी वाले सोनभद्र जनपद में मात्र दो सरकारी डिग्री कालेज और एक लडकियों के लिए सरकारी डिग्री कालेज जिसमें बेहद कम सीटें है और ब्लाक स्तर पर भी सरकारी इंटर कालेज नहीं है। खेती किसानी बर्बाद है सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक सोनभद्र जनपद में मात्र 36 प्रतिशत क्षेत्र सिंचित है बाकी खेती भगवान भरोसे है। यहां किसान क्रेडिट कार्ड से आदिवासियों, किसानों के कर्ज में बड़ी धांधली होती है। एक दोना भात खिलाकर आदिवासियों की जमीन हड़प ली गयी। किसानों को उनकी उपज का दाम नहीं मिलता हालत इतनी बुरी है कि पचास पैसे में टमाटर बेचने को किसान मजबूर होता है और जनवरी के आखिरी सप्ताह में आमतौर पर कुतंलों टमाटर किसान सड़क किनारे फेंक देता है। यह हालत तब है जब यह क्षेत्र केन्द्र व राज्य सरकार को सर्वाधिक राजस्व देता है।
एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार सोनभद्र जनपद से वर्ष 2016-17 में कोयला खनन के द्वारा 3 अरब 9 करोड़ रूपए और बालू, पत्थर खनन से 1 अरब 76 करोड़ रूपए की रायल्टी केन्द्र व राज्य सरकार को मिली है। वास्तविकता यह है कि इस क्षेत्र के विकास के लिए भाजपा समेत सपा, बसपा, कांग्रेस जैसे किसी भी दल के पास न तो योजना है और न ही उनकी सरकारों का इस सम्बंध में कोई प्रयास दिखा है। इस क्षेत्र को इन दलों के नेताओं और सरकारों ने लूट की चारागाह के बतौर इस्तेमाल किया है।
इसलिए इस क्षेत्र के विकास और यहां के नागरिकों के बेहतर जीवन के लिए इसे एक लोकतांत्रिक आंदोलन के क्षेत्र के बतौर खड़ा करने की जरूरत यहां के लोग महसूस करते है। यहां के लोगों यह आकांक्षा स्वराज अभियान से जुड़ी मजदूर किसान मंच में अभिव्यक्त हो रही है। मजदूर किसान मंच द्वारा जारी लोकतांत्रिक आंदोलन ही यहां जमीन, स्वास्थ्य, शिक्षा, शुद्ध पेयजल, रोजगार, पर्यावरण के सवालों का हल करेगा। मजदूर किसान मंच ने छोटी जोतों को सहकारीकरण की तरफ ले जाने के लिए सरकार को विशेष अनुदान की व्यवस्था करने, कृषि उपज की सरकारी खरीद और किसानों की कर्ज माफी की गारंटी व बेहद कम ब्याज पर कर्जे की व्यवस्था सहकारी बैंकों के माध्यम से करने और कृषि आधारित उद्योग लगाने की मांग उठाई है।
हाईकोर्ट से वनाधिकार कानून में जमा खारिज दावों के पुनः परीक्षण का आदेश कराने और इसे लागू करने के लिए सरकार को मजबूर करने के बाद मजदूर किसान मंच ने मनरेगा के अनुपालन की स्थिति की जमीनीस्तर पर जांच कराने के लिए सर्वेक्षण का फैसला किया है। इसके तहत हर ब्लाक से कुछ गांवों को चिन्हित कर जाबकार्डधारी परिवारों का सर्वे किया जायेगा और इस आधार पर बनी रिपोर्ट के अनुरूप पहल ली जायेगी।
दिनकर कपूर
स्वराज अभियान