नई दिल्ली। मध्यप्रदेश और गुजरात सरकार द्वारा किए गए नर्मदा जल के दुरुपयोग के कारण दोनों ही राज्यों के निवासियों को कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा है। मध्यप्रदेश में अनेक शहरों-गाँवों में पेयजल संकट खड़ा हो गया है। वहीं दोनों ही राज्यों कि किसान इस चिंता में पड़े हुए हैं कि उनकी बोई हुई फसलों को अंत तक सिंचाई मिल पाएगी या नहीं।
गुजरात सरकार ने वहाँ के विधानसभा चुनाव के दौरान नर्मदा जल का खेती के लिए उपयोग करने को सरदार सरोवर बाँध का पानी समय से काफी पहले जवाब दे गया है और सरकार को अब सिंचाई प्रतिबंधित करने का आदेश जारी करना पड़ा है।
नर्मदा बचाओ आंदोलन के राहुल यादव, गोरीशंकर कुमावत, कमला यादव ने एक संयुक्त वक्तव्य में कहा कि पिछली बारिश में अतिवृष्टि से पीड़ित गुजरात के किसान अब गुजरात सरकार के उस कृत्य की कीमत चुकाने के लिए मजबूर हैं जिसमें सरदार सरोवर बाँध के पानी को चुनावी हथियार की तरह इस्तेमाल कर उसकी बेतहाशा बर्बादी की गई। विधानसभा चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री श्री मोदी ने जिस साबरमती रिवरफ्रंट से सी-प्लेन में सवारी का प्रदर्शन किया था वहाँ नर्मदा का ही पानी भरा गया था।
हालांकि गुजरात सरकार यह लचर तर्क दे रही है कि इस साल बारिश कम होने के कारण ऐसी स्थिति बनी है। लेकिन सब जानते हैं कि सरदार सरोवर के गेट बंद करने से इस वर्ष पिछले सालों की अपेक्षा ज्यादा पानी संग्रहित हुआ था। आश्चर्य है कि जिन वर्षों में सरदार सरोवर में कम पानी रोका गया तब पानी जून माह तक जल संकट नहीं हुआ और इस वर्ष ज्यादा पानी रोका गया तो दिसंबर में ही खत्म हो गया।
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यदि मान भी लिया जाए कि बारिश कम थी तो इंदिरा सागर से पानी सरदार सरोवर में छोड़ा ही क्यो? प्राकृतिक न्याय के अनुसार मध्यप्रदेश में हुई बारिश पर तो पहला हक मध्यपदेश के किसानों का बनता है। इस पानी को मध्यप्रदेश के किसानों के लिए सुरक्षित रखा जाना चाहिए था। क्या मध्यप्रदेश का सत्ताधारी वर्ग अपने प्रदेश के किसानों के अधिकारों का संरक्षण करने के बजाय गुजरात की कठपुतली बना रहना चाहता है?
आंदोलन केनेताओं ने कहा वास्तव में इंदिरा सागर से सरदार सरोवर बाँध में सर्वाधिक पानी प्रधानमंत्री श्री मोदी के जन्मदिन के जश्न हेतु 14 सितंबर से 17 सितंबर 2017 के मध्य छोड़ा गया। जब इंदिरा सागर से पानी छोड़ा गया तब तक बारिश का मौसम समाप्त हो चुका था। नर्मदा घाटी में 21 प्रतिशत बारिश हुई है और उस समय तक इंदिरा सागर बाँध अपनी क्षमता मात्र 33 प्रतिशत ही भरा था, यह भी पता चल चुका था। इसके बावजूद मध्यप्रदेश सरकार ने गुजरात के समक्ष घुटने टेकते हुए इंदिरा सागर बाँध में जमा पानी सरदार सरोवर में छोड़ कर प्रदेश के किसानों के हितों को तिलांजलि दे दी थी।
इंदिरा सागर बाँध खाली रहने के बावजूद सरदार सरोवर में पानी छोड़ने के पीछे प्रदेश सरकार की मंशा उन प्रभावित आदिवासी-किसानों को बगैर पुनर्वास के डुबाकर सबक सिखाने की भी थी जो अपने न्यायपूर्ण पुनर्वास की माँग कर रहे थे। लेकिन बाँध प्रभावित प्रदेश सरकार के इस हीन हथकण्डे से न तब डरे थे और न ही अब डरे हैं। जब तक उनका न्यायपूर्ण पुनर्वास नहीं किया जाता तब तक वे अपने गाँवों में डटे रहेंगें। पिछली बारिश की तरह हर साल सत्याग्रह भी होगा।
उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार ने गुजरात चुनाव में फायदा पहुँचाने हेतु न सिर्फ अपने हिस्से का पानी गुजरात को दान कर दिया बल्कि अपने हिस्से की बिजली से भी प्रदेश को वंचित कर दिया। जुलाई 2017 के बाद सरदार सरोवर के भूमिगत विद्युत संयंत्र से एक युनिट भी बिजली उत्पादन नहीं किया गया है। उल्लेखनीय है कि सरदार सरोवर के लिए सैकड़ों गाँवों, खेतों और पूरी संस्कृति डुबाने के बावजूद केवल 57 प्रतिशत बिजली मिलनी है। गुजरात ने बिजली नहीं बनाते हुए प्रदेश को मिलने वाले एकमात्र लाभ से भी वंचित कर दिया है। लेकिन मध्यप्रदेश सरकार की इस अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत तक नहीं हुई।