पूर्वोत्तर भारत में एनआरसी और नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध (Opposition to NRC and Citizenship Amendment Bill in Northeast India) हो रहा है। मणिपुर में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए हैं। अमित शाह ने मणिपुर में इन विषयों पर ज़बान नहीं खोली। प्रस्तावित नागरिकता संशोधन विधेयक में एनआरसी में अनागरिक घोषित होने वाले हिंदु, सिख, ईसाई और जैन धार्मिक समूहों को नागरिकता देने का प्रस्ताव और मुसलमानों व नास्तिकों को उससे बाहर रखना खुली बेईमानी है। इसलिए इसका मौजूदा रूप गैर संवैधानिक, अन्यायपूर्ण, मुस्लिम और नास्तिक विरोधी है। यह अमान्य है।
भारत सरकार के नोटिफिकेशन के मुताबिक जनसंख्या रजिस्टर या एनपीआर की तैयारी के पहले चरण में रजिस्टर में नाम दर्ज होगा। इसके लिए किसी दस्तावेज़ की ज़रूरत नहीं होगी।
दूसरे चरण में कैम्प लगाकर बायोमेट्रिक डाटा (जिस तरह से आधार बनाने के समय उंगलियों के निशान लिए गए) लिया जाएगा। उसी समय आधार, इलेक्टोरल आईडी, पास्पोर्ट आदि की नकल मांगी जाएगी। जिनके पास आधार नहीं होगा उनका डाटा लेकर आधार नम्बर दिया जाएगा और जिनके पास पहले से आधार होगा उसे UIDAI से सत्यापित करवाया जाएगा।
इलेक्शन कार्ड, आधार, पास्पोर्ट और दूसरे दस्तावेज़ों में नाम, पिता का नाम, जन्मतिथि आदि में कोई फर्क नहीं होना चाहिए। आज हो सकता है यह बहुत महत्वपूर्ण न हो लेकिन जब कभी एनआरसी लागू की जाएगी तो यह फर्क आपको मुसीबत में डाल सकता है।
हालांकि नाम या जन्मतिथि की गड़बड़ियां सबसे अधिक सरकारी अमले की अक्षमता के कारण होती है। मिसाल के तौर पर ऐसी भी आईडी भी आसानी से मिल जाएगी जहां नाम और फोटो किसी पुरूष के हैं और जेंडर में महिला लिखा हुआ है। नाम पता पता पुरूष का है लेकिन फोटो किसी महिला का लगा हुआ है। नाम की स्पेलिंग में गड़बड़ी या मनमाना जन्मतिथि
पिछली बार जनसंख्या रजिस्टर बनाने वालों ने भी यही किया है। गांव में दो चार जगह बैठ कर खानापूर्ति कर लिया। एक ही गांव में सैकड़ों लोग मिल जाएंगे जिनकी जन्मतिथि 1 जनवरी लिखी हुई है। कम पढ़ा लिखा और कामचोर यह अमला बिना घर–घर गए किसी से भी नाम और संभावित उम्र पूछकर गलत स्पेलिंग के साथ नाम लिख लेता है और उस सम्भावित उम्र के हिसाब से एक जनवरी जन्मतिथि डालकर काम पूरा कर लेता हैं। काग़जात की दुरुस्तगी अभियान का भी यही हाल है।
इन्हीं दस्तावेज़ों की बुनियाद पर सरकार एनआरसी जैसी मुहिम चलाने का डर दिखाती है और ऐसी ही बुनियादों पर अपने ही नागरिकों को विदेशी घोषित करने के बाद शायद अपनी पीठ भी खुद ही थपथपाए।
Itinerant in the National Population Register
राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर में उन समूहों का नाम कैसे आ सकेगा जो पीढ़ियों से घुमंतू हैं, जैसे नट या कंकाली व अन्य। इनके पास अपना कोई स्थाई निवास नहीं है। सरकार ने इन्हें बसाने या ज़मीन आवंटित करने का काम कभी नहीं किया। इनके पास न राशान कार्ड है और न ही वोटर आईडी या आधार। यह सब बन भी नहीं सकता क्योंकि इसके लिए स्थाई पता चाहिए जो उनके पास नहीं है। तो क्या जब एनआरसी लागू की जाएगी तो इन्हें विदेशी घोषित कर डिटेंशन कैम्पों में भेज दिया जाएगा और मीडिया में यह विज्ञापन छपवाया जाएगा कि सरकार ने इतने विदेशी पकड़े?
पीढ़ियों से भारत में रहने वाले इन समूहों को न बसा कर और उन्हें भूमि वितरण के माध्यम से भूमि न आवंटित कर सरकारों ने जो पाप किए हैं उसकी सज़ा इन गरीबों को विदेशी घोषित कर दी जाएगी और सभ्य समाज विदेशी मुक्त भारत का जश्न मनाकर और सभ्य बनने का नाटक करेगा?
How will the landless prove themselves as citizens in NRC
जब कभी एनआरसी की जाएगी तो वह लोग अपने को कैसे नागरिक साबित कर पाएंगे जो भूमिहीन हैं, खुद उनके मकान भी उनके नाम पर नहीं हैं, अपढ़ हैं, कभी मुकदमा नहीं लड़े इसलिए कोई अदालती सबूत नहीं हैं, पास्पोर्ट बनवाने की नौबत नहीं आई, बाप–दादा का राशन कार्ड या परिवार रजिस्टर की नकल संभाल कर नहीं रख सके। इसके शिाकार बड़े पैमाने पर दलित, आदिवासी और पिछड़ी जातियों के लोग या गरीब–मज़दूर होंगे।
सरकार ने ऐसे हिंदू गरीब–मज़दूर या जातीय समूहों के लिए नागरिकता संशोधन विधेयक (Citizenship Amendment Bill) लाने का फैसला किया है। अगर ऐसा होता है तो उन्हें क्षमादान नहीं बल्कि नागरिकता मिल जाएगी।
गृहमंत्री चिल्ला–चिल्लाकर कह रहे हैं कि हिंदुओं को चिन्ता करने की ज़रूरत नहीं। उन्हें नागरिकता दी जाएगी, इसके लिए जो क्राईटेरिया बनाया गया है वह पड़ोसी देशों के अल्पसंख्यकों को (हिंदू, बौद्ध, सिख, ईसाई) जो 31 दिसम्बर 2014 से पहले अवैध रूप से भारत में रह रहे हैं नागरिकता देने का प्रस्ताव करता है।
पड़ोसी देशों के धार्मिक अल्पसंख्यकों की दिक्कतों का इतना ख्याल लेकिन अपने देश के सबसे बड़े धार्मिक अल्प संख्यक समूह मुसलमानों के गरीबों, भूमिहीनों, अपढ़ों की कोई चिंता नहीं। देश में न्याय और समानता का यह नया मापदंड मस्लिम दुश्मनी पर आधारित है। वरना जिस तरह से 31 दिसम्बर 2014 हर मंच पर बताया जा रहा है उसी तरह से एनआरसी के लिए कट आफ तारीख (आधार वर्ष) का भी ज़िक्र किया जाता ताकि जिस समुदाय के खिलाफ यह भेदभाव किया जा रहा है उसके लोगों को अपने दस्तावेज़ जुटाने का कुछ अधिक समय मिल जाता। लेकिन नीतिय और नीति दोनों में खोट है। इन हालात में क्या यह आशंका नहीं होगी कि ऐसा इसलिए किया जा रहा है ताकि ज़्यादा से ज़्यादा मुसलमानों को अनागरिक घोषित किया जा सके?
उनका क्या बनेगा जो किसी धर्म को नहीं मानते इसलिए धार्मिक अल्पसंख्यक भी नहीं हैं? अभी केरल में सवा लाख बच्चों ने स्कूलों में प्रवेश लेते समय धर्म के खाने को खाली छोड़ दिया है।
मसीहुद्दीन संजरी