प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने चार साल के कार्यकाल में एक से एक योजना और अभियान चलाए। चार साल के बाद ये जानना तो लाजिमी हो जाता है कि आखिर केन्द्र की मोदी सरकार द्वारा चलाए गए अभियानों और योजनाओं का लाभ अवाम को मिला कितना है? आदर्श ग्राम योजना, स्वच्छता अभियान, स्मार्ट सिटी के साथ ही ऐसी तमाम योजनाएं है जिनका सरोकार सीधे जनता है।
आज हम उस जनधन योजना की यथा स्थिति के बारे में जानने का प्रयास करते हैं जिसका आम गरीब की आर्थिक बेहतरी से सीधे-सीधे नाता रहा है।
बता दें कि मोदी सरकार की जन धन योजना और स्वच्छ भारत जैसी कुछेक योजनाएं ही देश के मन को लुभाने में कामयाब रही हैं, जबकि इसी दौरान पेश अन्य योजनाएं लोगों के दिलो दिमाग में खास जगह नहीं बना पाई हैं। लेकिन व्यावहारिकता के धरातल पर देखा जाए तो ये योजनाएं भी प्रचार-प्रसार का ही एक माध्यम बन कर रह गई हैं। इसकी सफलता को लेकर जितने ढ़ोल पीटे गए वह धरातल पर औंधे मुंह दिखाई दे रहे हैं।
क्या है प्रधानमंत्री जन धन योजना
What is the Prime Minister Jan Dhan Yojna
काबिलेगौर हो कि यह योजना देश के छह लाख गांवों में हरेक परिवार में कम से कम एक खाता खुलवाने, ओवरड्राफ्ट की सुविधा, डेबिट कार्ड की सुविधा देने जैसे वादों के साथ 28 अगस्त 2014 को पूरे धूमधाम से शुरू की गई थी। लेकिन अब साफ होते जा रहा है कि प्रधानमंत्री जनधन योजना धीरे-धीरे संकट में फंसती जा रही है।
अभी इस योजना का आलम यह है कि मोदी सरकार अपनी साख को बचाने के लिए केवल आंकड़ेंबाजी के सहारे है। इस समय नए खाते भी नहीं खुल रहे हैं। बैंक मित्रों की सक्रियता भी घट रही है वहीं ओवरड्राफ्ट की
ये जो तथ्य सामने आए वह मनगढ़ंत नहीं हैं, बल्कि सरकार द्वारा माइक्रोसेव संस्था से कराए गए अध्ययन में उजागर हुए हैं। हालांकि मोदी सरकार ने अभी इस रिपोर्ट को उजागर नहीं किया है।
बहरहाल इस योजना को लेकर अब सरकार की निगाहें अपने प्रदर्शन को सुधारने से अधिक दिखने वाले आंकड़ों को दुरुस्त करने में अधिक है।
जन धन खाताधारकों को रूपे डेबिट कार्ड नहीं मिले
Jan Dhan account holders do not get RuPay debit cards
सच तो यह है कि अब जन धन की चमक खोती जा रही है, इस की पुष्टि माइक्रोसेव संस्था की रिपोर्ट भी करती है। रिपोर्ट से एक बात तो साफ हुई है कि इस योजना को लागू करने के लिए जिन बैंक मित्रों की नियुक्ति की गई थी, वे सब धीरे- धीरे निष्क्रिय होते जा रहे हैं। इस समय करीब 11 फीसदी निष्क्रिय हो चुके हैं। जो खाते खुले हैं उनमें से भी अधिकतर शनैः-शनैः निष्क्रिय हो रहे हैं। इसके साथ ही रिपोर्ट में इस योजना को लेकर जो सबसे बड़ी गड़बड़ी सामने आई है वह यह है कि इन खाताधारकों को जो रूपे डेबिट कार्ड मिलना था, वह नहीं मिले है। अभी तक करीब 85 फीसदी रुपे कार्ड जारी हो चुके हैं लेकिन महज 47 फीसदी को ही यह बंटे हैं। इससे यह जाहिर होता है कि 38 फीसदी लोगों के जो रुपे कार्ड बने थे, वह ऐसे ही डंप पड़े हुए हैं। जिन लोगों को मिले हैं वे भी बहुत कम इस्तेमाल हो रहे हैं। इसका कारण यह सामने आया है कि जिनको ये कार्ड मिले हैं उनके लिए इसका इस्तेमाल करना, पिन नंबर याद रखना एक मुश्किल भरा काम है। इस तरह की पेचीदगियों के चलते ही बड़ी संख्या में गरीब और वंचित समुदाय के लोगों को तकलीफों का सामना करना पड़ रहा है। इस रिपोर्ट में जीरो बैलैंस खाते नहीं होने की बात भी सामने आई है, क्योंकि खाते में 500 रुपये से कम होने पर पैसा कटना शुरू होने लगा है।
अब जनधन योजना को लेकर आमजन के बीच ये चर्चा भी होने लगी है कि इस योजना में सरकार ने लोगों के आर्थिक हित को कम ध्यान दिया है बल्कि इसके सहारे आधार को आधार देने पर अधिक ध्यान दिया है। ये भी कहा जा रहा है कि आधार का फैलाव करने में जनधन योजना का चालाकी से इस्तेमाल किया है। इसी के चलते देखने में आया है कि जो खामियां आधार में हैं, वहीं जनधन के क्रियान्वयन में भी हैं। आधार का आधार होने की वजह से जिन लोगों के खाते आधार के द्वारा प्रमाणित नहीं हो पाए हैं उन्हें खासा नुकसान उठाना पड़ रहा है।
इसके अलावा यह भी सामने आया कि जनधन योजना में गरीबों का जीरो बैलेंस खाता खुलवाने का जो दावा किया गया था वह भी खोखला निकला। सच तो ये है कि अब बैंक जीरो बैलेंस खाता खोलने को तैयार ही नहीं हो रहे हैं। इसके साथ ही जब जीरों बैलेंस खातों में गरीबों की पेंशन का पैसा आता है तो वह एसएमएस सेवा में कटने लगता है। मिसाल के तौर पर अगर खाताधारक के खाते में 500 रुपये हैं तो 16 रुपये मोबाइल पर भेजे जाने वाले एसएमएस अलर्ट में कट जाता है। अगर तिमाही तक खाते में 500 रुपये से कम रहते हैं तो कम बैलेंस की वजह से पैसा कट जाता है।
माइक्रोसेव के अध्ययन में यह बात भी सामने आई कि मध्य प्रदेश, ओडिशा, हरियाणा और गुजरात में गलत ढंग से खाताधारकों से वसूली की जा रही है। उससे खाते में पैसा डालने, निकालने, एसएमएस अपडेट भेजने और पिन नंबर बनाने के लिए पैसे लिए जा रहे हैं। यह सरासर गलत है और इसकी वजह से लोग परेशान हो रहे हैं। इस तरह की अनियमितताओं के चलते अकेले राजस्थान में पांच लाख लोगों की पेंशन बंद पड़ी हैं।
राजस्थान में बनी पेंशन परिषद का दावा है कि यहां 58 लाख पेंशन धारकों की संख्या थी जो अब घटकर 53 लाख रह गई है। दरअसल शुरू-शुरू में खाता खुलवाने वालों को यह भी लगा कि मोदी का खाता है, पैसे आएंगे तो खाता खुलवा लिया और जब पैसे आए नहीं तो खाता चलाया ही नहीं।
जन धन खातों में ओवरड्राफ्ट की सुविधा
Overdrafting facility in Jan Dhan Account
अब खातों में ओवरड्राफ्टिंग की सुविधा भी नहीं दी जा रही है, जबकि योजना के शुभारंभ पर इस बात को खुब प्रचाारित किया गया था। ओवरड्राफ्टिंग की सुविधा के चलते ही यह लोगों के आकर्षण का खासा केंद्र भी बनी थी। खाताधारकों लगा था कि वे संकट के समय खाते से उधार भी ले सकते हैं लेकिन यह सब लालीपॉप ही साबित हुआ। अभी तक केवल सात फीसदी खाताधारकों को ओवरड्राक्टिंग की सुविधा मिली है और उसके एवज में सिर्फ 815 रुपये ही मिले है। जनधन खातों में जमा भी खासा घटा है। लिहाजा अभी घोषित लक्ष्य और हकीकत में बहुत तगड़ा फासला है।
अब जबकि योजना फेल होते नजर आ रही है तो आंकड़ों की बाजीगरी की जा रही है। इसके आंकड़ों में हेराफेरी की जा रही है। ऐसा ही एक मामला हाल के दिनों में सामने आया।
मई के बाद से जन धन खातों में निकासी हुई 20,000 करोड़ रु. की
सनद रहे कि जन धन खातों में मई के बाद से 20,000 करोड़ रु. की निकासी हो चुकी है लेकिन इस बारे ट्वीट किए जाने के फौरन बाद आंकड़े बदल दिए गए। सिर्फ जमा की रकम बदली गई। जाहिर है, नाकामी छिपाने के लिए आंकड़ों में हेरफेर किया। इसके पीछे की कहानी शायद आंकड़ों से कहीं अधिक दिलचस्प हो।
काबिलेगौर हो कि जनधन खातों में इस साल अप्रैल के महीने तक जमा की राशि 80,000 करोड़ को पार कर गई थी, लेकिन 4 जुलाई, 2018 को यह राशि घटकर महज 62,919.08 करोड़ रह गई थी। यह पिछले 19 महीने में सबसे कम जमा थी। लेकिन खास बात यह कि मई के बाद से इस जमा में 20,000 करोड़ रु. की कमी हुई है। यानी, लोगों ने खातों से पैसे निकालना शुरू कर दिया।
संदेह की बात यह रही कि इसमें भी 27 जून से 4 जुलाई के सप्ताह में ही सात दिनों के भीतर 16,000 करोड़ रु. की निकासी हुई है। इस तरह का सच उजागर होने के बाद आंकड़ेबाज फौरन हरकत में आए और उन्होंने कुल जमा रकम की संख्या बदल दी।
गजब यह कि वे शायद बाकी के आंकड़े बदलना भूल गए। मसलन, मूल आंकड़े में, ग्रामीण और कस्बाई बैंकों की शाखाओं में लाभार्थियों की संख्या 18.82 करोड़ थी। शहरी और मेट्रो शाखाओं में खाताधारकों की संख्या 13.12 करोड़ थी। कुल संख्या करीब 31.95 करोड़ लाभार्थियों की थी। नए आंकड़ो में इनमें से कुछ नहीं बदला है। खाते में जमा की रकम 62,919.08 करोड़ रु. थी। इनमें सार्वजनिक बैंको में 48888.36 करोड़ रु., क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों में 13788.70 करोड़ रु. और निजी बैंकों में 2242.02 करोड़ रु. जमा दिखाया गया था लेकिन आंकड़ों की हेराफेरी के चलते झूठ सामने आ गया। इससे यह साफ हो गया कि जनधन योजना नाकाम साबित हो रही है। इस नाकामी को आंकड़ों की हेराफेरी से छिपाया जा रहा जो हो नहीं सकता।
( लेखक मीडिय़ा रिलेशन पत्रिका का संपादन करने के साथ ही सम-सामयिक विषयों पर कलम चलाते हैं। )
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