अरुण जेटली ने जो कहा उसका तत्व यह है कि पहले उद्योगपतियों की संपत्ति को खूब बढ़ने दो। मध्यवर्ग और गरीब आदमी की पसंद का बजट बाद में।
इस बजट में एक बात पाज़िटिव है कि अच्छे दिन का प्रधानमंत्री का वायदा पूरा हो गया। अभी धन्नासेठों के अच्छे दिन आयेंगे, चुनाव क़रीब आने पर 20 17 से 19 तक मतदाता वर्ग का बजट आएगा।
सब अमन चैन है।
एक बार शरद पवार ने मांग की थी कि मनरेगा को बंद कर देना चाहिये। उस वक़्त वे मनमोहन सिंह की सरकार में कृषि मंत्री थे। उनका तर्क था कि इस योजना के कारण ग्रामीण इलाक़ो में मज़दूरी बहुत ज़्यादा देनी पड़ रही थी। यानी ग्रामीण मज़दूरों का शोषण नहीं हो पा रहा था।
गरीब आदमी को 2 लाख का बीमा केवल 1 रुपये महीने के प्रीमियम पर। कौन कहता है कि बजट में गरीबों के लिए कुछ नहीं है? हाँ हाथ पाँव तुड़वाना पड़ेगा इस 2 लाख के लिए।
जहां तक मध्य वर्ग की बात है वह अपना ख्याल खुद रखेगा। बजट से तो बेचारे कारपोरेट वालों को संभाला गया है।
शेष नारायण सिंह
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