गत 15 अप्रैल को लखनऊ के निराला नगर स्थित अनुराग पुस्तकालय हॉल में राहुल फ़ाउण्डेशन द्वारा एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया जिसमें राहुल सांकृत्यायन की तिब्बत यात्रा के दौरान लाई गई बेशकीमती पाण्डुलिपियों और प्राचीन कलाकृतियों के पुनरुद्धार और पटना संग्रहालय की हिफ़ाजत के प्रयासों पर विस्तृत चर्चा हुई। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता पुष्पराज थे जो एक यायावर पत्रकार हैं और लम्बे समय से राहुल द्वारा सौंपी गई धरोहर और पटना संग्रहालय की हिफ़ाजत के प्रयासों से जुड़े रहे हैं। राहुल सांकृत्यायन की सुपुत्री जया सांकृत्यायन कार्यक्रम की विशिष्ट अतिथि थीं।
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जया सांकृत्यायन ने कहा कि इन दिनों कुछ ख़ास विचारधारा के लोगों को राहुल सांकृत्यायन के विचारों से काफी परेशानी हो रही है। आज अगर राहुल जी होते तो देश को पीछे ले जाने की कोशिश कर रही इन शक्तियों के विरोध में खड़े होते। उन्होंने कहा कि इस देश में प्रगतिशील सोच और संस्कृति को नष्ट करने वाली ताक़तों के ख़िलाफ़ उठ खड़ा होना होगा। जया जी ने उम्मीद जतायी कि इस देश से कुसंस्कृति का नाश होगा। लखनऊ में आयोजित इस तरह के कार्यक्रमों से उम्मीद जगती है कि अभी अंधेरा पूरी तरह से नहीं छाया है। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ समय के घटनाक्रमों की वजह से वे राहुल सांकृत्यायन की अमूल्य पाण्डुलिपियों को बचाने की मुहिम में शामिल रही हैं। पटना संग्रहालय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विख्यात बहुत अच्छा संग्रहालय है। उस संग्रहालय से कलाकृतियों और पाण्डुलिपियों को जिस तरह से विस्थापित किया जा रहा है उससे उनके नष्ट होने का गंभीर खतरा है।
कार्यक्रम के शुरू में राहुल फाउण्डेशन के सचिव
पुष्पराज ने बताया कि बिहार के बौद्धिक समुदाय के बीच अभी इस बात को लेकर गंभीर चिंता नहीं है कि ऐतिहासिक पटना संग्रहालय विस्थापित किया रहा है। ग़ौरतलब है कि पटना संग्रहालय में राहुल सांकृत्यायन द्वारा तिब्बत से लाई तकरीबन 6400 पुरातात्विक सामग्रियाँ रखी हुई हैं जिनमें 4000 से ज़्यादा पाण्डुलिपियाँ हैं। इन पाण्डुलिपियों और कलाकृतियों की क्षति से भारतीय इतिहास की एक अमूल्य धरोहर को नुकसान पहुँचने का ख़तरा है। इनके अलावा भी पटना संग्रहालय में यक्षिणी की विश्वप्रसिद्ध मूर्ति सहित हज़ारों अनमोल कलाकृतियां रखी हैं। इन सबको बिना किसी कारण के बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के ''ड्रीम प्रोजेक्ट'' बिहार म्यूज़ियम में स्थानांतरित किया जा रहा है जो कि राजकीय संस्था नहीं बल्कि एक ट्रस्ट के अधीन है। जिस तरह से विवरण आदि दर्ज किए बिना और उचित प्रक्रियाओं का पालन किए बिना हड़बड़ी में यह सब किया जा रहा है उसमें दुर्लभ सामग्रियों के गायब और नष्ट होने की पूरी संभावना है और उनकी तस्करी की संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता।
इस विस्थापन के विरोध में 2015 में कई गणमान्य बुद्धिजीवियों के हस्ताक्षर वाला एक पत्र मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को भेजा गया था लेकिन उन्होंने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया। पिछले साल 9 सितम्बर को 'पटना संग्रहालय बचाओ समिति' के बैनर तले धरना और अनशन भी किया गया था जिसमें पटना आर्ट्स कॉलेज के छात्रों ने शिरकत की थी। पटना संग्रहालय के शताब्दी वर्ष के दौरान उसकी हत्या का यह प्रयास और निंदनीय है। दिल्ली में इंदिरा गाँधी संस्थान में हाल में हुई प्रदर्शनी के दौरान कई विदेशी शोधार्थियों ने राहुल सांकृत्यायन की कृतियों में विशेष रुचि दिखायी जिसके बाद से एक नई उम्मीद जगी है कि उनकी अमूल्य पाण्डुलिपियों को संरक्षित किया जा सकेगा। पुष्पराज ने राहुल सांकृत्यायन की अन्तिम तिब्बत यात्रा में उनके साथ गए फोटोग्राफ़र फणि मुखर्जी की डायरी के कुछ अंश पढ़कर सुनाए जिससे पता चलता है कि वह यात्रा कितनी दुरूह थी और कैसी विषम परिस्थितियों में उन्होंने पांडुलिपियों की प्रतिलिपियां तैयार कराईं। उन्होंने बताया कि संघ परिवार ने शुरू में राहुल को अपनाने की कोशिशें कीं, लेकिन उन्होंने पाया कि किसी भी कोण से राहुल को पढ़ने से कोई व्यक्ति विद्रोही ही बनेगा।
कार्यक्रम में उपस्थित सभी बुद्धिजीवियों, लेखकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने एक स्वर से इस ऐतिहासिक धरोहर को बचाने के प्रयास को अपना पूरा समर्थन दिया। कात्यायनी ने राहुल फ़ाउण्डेशन और उसकी सहयोगी संस्थाओं की ओर से पूरा समर्थन जताया।
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कार्यक्रम में वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना, प्रताप दीक्षित, प्रो. निर्मल गुप्त, डा. स्कंद शुक्ल, प्रभात त्रिपाठी, मीनाक्षी, अभिनव सिन्हा, संजय श्रीवास्तव, आशीष सिंह, राजेश मिश्र, सुशील सीतापुरी, मदनमोहन पांडेय, विवेक शुक्ल, अनुज अवस्थी, गिरीश मिश्र, मोहम्मद ओसामा, शत्रुघ्न सिंह, नितिन पालीवाल, प्राची मिश्र सहित अनेक बुद्धिजीवी, ऐक्टिविस्ट, छात्र और राहुल सांकृत्यायन के पाठक व प्रशसंक मौजूद थे।