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Sardar Sarovar Dam - water for Life or water for Death ?

राजीव रंजन श्रीवास्तव

शायद, चाटुकार यह कहने में लगे हुए हैं कि मोदीजी ने अपने जन्मदिन पर देशवासियों को यह सौगात दी है। इस मक्खनबाजी में मीडिया भी शामिल है। जबकि उसे यह सवाल उठाना चाहिए था कि बांध बनने में खर्च हुए 65 हजार करोड़ रुपये क्या मोदीजी ने अपनी जेब से खर्च किए या इसका बोझ जनता उठाएगी? वैसे भी लोकतंत्र में जनता के लिए काम करना, जनप्रतिनिधियों का दायित्व है। ऐसा करके कोई प्रधानसेवक किसी पर एहसान नहीं करता।

बहरहाल, सरदार सरोवर के उद्घाटन अवसर पर उसकी कई खूबियां चीख-चीख कर रटाई जा रही हैं, जिनमें से एक खूबी कही जा रही है कि इसमें इतना कंक्रीट लगा है कि इससे पृथ्वी से चंद्रमा तक सड़क बनाई जा सकती है। जाने किस महानुभाव ने ऐसा आकलन किया है। कल को, भारत की बढ़ती जनसंख्या की भी ऐसी ही खूबी बताई जानी हो, तो कहा जा सकता है कि एक आदमी, दूसरे के कंधे पर चढ़े तो भारतीय चंद्रमा को छू सकते हैं।

वैसे सरदार सरोवर बांध की एक खास बात यह भी है कि इसे करीब 138 मीटर की अधिकतम ऊंचाई तक भरने से मध्यप्रदेश के 141 गांवों के 18,386 परिवार डूब क्षेत्र में आ जाएंगे। प्रभावित ग्रामीणों और बांध विस्थापितों के लिये सरकार ने करीब 3,000 अस्थायी आवासों और 88 स्थायी पुनर्वास स्थलों का निर्माण किया है।

दूसरी ओर इस परियोजना का विरोध कर रहे नर्मदा बचाओ आंदोलन का दावा है कि बांध को करीब 138 मीटर की अधिकतम ऊंचाई तक भरे जाने की स्थिति में, मध्यप्रदेश के 192 गांवों और एक कस्बे के करीब 40 हज़ार परिवारों को, विस्थापन की त्रासदी झेलनी पड़ेगी। संगठन का यह भी आरोप है कि विस्थापितों को न तो सही मुआवजा मिला है और न ही उनके उचित पुनर्वास

के इंतजाम किये गये हैं।

चैनलों पर रोशनी से सराबोर सरदार सरोवर की तस्वीरें दिखाईं गईं, 17 सितम्बर की सुबह इस बांध के उद्घाटन की रंगारंग तस्वीरें भी बार-बार स्क्रीन पर नजर आईं, लेकिन तस्वीर का दूसरा पहलू जलमग्न गांवों का था, जो शायद ही देखने को मिला। मेधा पाटकर के नेतृत्व में जल सत्याग्रही छोटा मध्य प्रदेश के बारदा गांव में बैठे हुए हैं और उनकी कमर तक पानी आ गया है। मेधा पाटकर का कहना है कि वे जलसमाधि ले लेंगे, लेकिन यहां से नहीं हटेंगे।

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