हिसार : स्पाइनल कॉर्ड आर्टिरियोवेनस मैलफॉर्मेशन (एससीएवीएम) Spinal arteriovenous malformation (AVM) एक दुर्लभ बीमारी है जिसमें धमनियों और नसों के बीच एक गलत संबंध बन जाता है, जो रक्त वाहिकाओं में सूजन का कारण बनता है। इन असामान्य रक्त वाहिकाओं में हमेशा ब्लीडिंग का खतरा बना रहता है। खून के प्रवाह में यह गड़बड़ी ऑक्सीजन के आसपास की कोशिकाओं को वंचित करती है और रीढ़ की हड्डी की कोशिकाओं के उत्तेजित होने, खराब होने और मरने का कारण होने के साथ यह कोशिकाओं में ब्लीडिंग का भी कारण बनती है।
स्पाइनल एवीएम किसी भी उम्र में हो सकता है लेकिन यह 20 और 60 की उम्र के बीच ज्यादा पाया जाता है। यह दुर्लभ बीमारी आमतौर पर बच्चों को अपना शिकार बनाती है। यदि इस पर ध्यान नहीं दिया जाए तो समय के साथ स्थिति गंभीर हो जाती है जिसमें भयानक पीठ दर्द, झंझनाहट और पैर की मांशपेसियों में कमजोरी जैसी परेशानियां होने लगती हैं।
अग्रिम इंस्टीट्यूट फॉर न्यूरोसाइंसेंज, आर्टेमिस हॉस्पीटल, गुरुग्राम के न्यूरोसर्जरी और साइबरनाइफ विभाग के डॉ. आदित्य गुप्ता ने एक विज्ञप्ति में उक्त जानकारी देते हुए बताया कि,
“एवीएम की बीमारी होने पर मरीज कोशुन्नता, कमजोरी और पाचन तंत्र में कमी जैसी समस्याएं महसूस होती हैं।
उन्होंने बताया कि स्पाइनल एवीएम की पहचान के निदान के लिए हाई रेजोल्यूशन एमआरआई काफी उपयोगी साबित होता है। इसके बाद एंजियोग्राफी से समस्या का अध्ययन किया जाता है। इस प्रकिया में केथेटर नाम की एक छोटी ट्यूब को पैर की रक्त वाहिकाओं के जरिए भेजा जाता है और धमनियों और नसों के बीच के असामान्य संबंध के स्थान की पहचान के लिए रीढ़ की हड्डी की धमनियों में इंजेक्शन लगाया जाता है।
डॉक्टर आदित्य गुप्ता ने आगे बताया कि,
“साइबरनाइफ रेडिएशन सर्जरी एवीएम में होने वाली ब्लीडिंग के लंबे समय के जोखिम को कम करती है। एवीएम को पूरी तरह से खत्म करने के लिए रेडिएशन की हाई डोज का इस्तेमाल किया जाता है। इस प्रक्रिया में कंप्यूटर एसिस्टेड रोबोटिक सिस्टम और नई इमेजिंग तकनीक के उपयोग से रेडिएशन की तेज किरणों को हर दिशा से वास्तविक साइट तक भेजा जाता है। दूसरा फायदा यह है कि मिसाइल जैसा काम करने वाली यह तकनीक मरीज के शरीर में किसी भी तरह की हलचल का पता लगा सकती है, जिससे रेडिएशन बीम शरीर के उस हिस्से तक पहुंच पाती है जहां इलाज की जरूरत होती है। इस प्रक्रिया के दौरान, एक रोबोटिक हाथ धीरे-धीरे मरीज के आसपास घूमता है लेकिन मरीज को कुछ महसूस नहीं होता है। मरीज ऐसा महसूस करता है जैसे वह अपने घर पर गानों का आनंद लेते हुए आराम कर रहा हो।”
डॉक्टर आदित्य गुप्ता का कहना है कि इस पूरी प्रक्रिया में मरीज को जरा भी दर्द नहीं होता है और यह 100 प्रतिशत सुरक्षित भी है, जिसमें किसी खतरे का कोई जोखिम नहीं होता। 99 प्रतिशत मामलों में रोगी पहले इलाज में ही ठीक हो जाता है और जीवन को फिर से सामान्य रूप से शुरू कर सकता है।
( नोट - यह समाचार किसी भी हालत में चिकित्सकीय परामर्श नहीं है। आप इस समाचार के आधार पर कोई निर्णय कतई नहीं ले सकते। स्वयं डॉक्टर न बनें किसी योग्य चिकित्सक से सलाह लें।)