वर्धा, 11 मई 2019: छायावाद का समय (Time of Chhayawad) कविता का सर्वोत्तम कालखंड (Best period of poetry) रहा है। यह काल हमारे सामने एक उज्ज्वल भाष्य के रूप में सामने आता है। छायावादी कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, जयशंकर प्रसाद, मैथिलीशरण गुप्त और महादेवी वर्मा (Suryakant Tripathy Nirala, Jaishankar Prasad, Maithilisaran Gupta and Mahadevi Verma) को समझने के लिए केवल छायावादी ही नहीं अपितु हिंदी की समग्र दृष्टि से समझने की आवश्यकता है।
उक्त प्रतिपादन महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय (Mahatma Gandhi International Hindi University) के कुलपति प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल ने किए। वे विश्वविद्यालय के हिंदी एवं तुलनात्मक साहित्य विभाग की ओर से ‘छायावाद के सौ वर्ष’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी के समापन की अध्यक्षता करते हुए बोल रहे थे। दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन गालिब सभागार में गुरुवार, 9 मई को हुआ।
इस अवसर पर कार्यकारी कुलसचिव प्रो. कृष्ण कुमार सिंह, प्रो. मनोज कुमार, एडजंक्ट प्रो. अरुण कुमार त्रिपाठी, सहायक प्रोफेसर डॉ. बीर पाल सिंह यादव, डॉ. रुपेश कुमार सिंह, प्रो. अवधेश कुमार, डॉ. शैलेश कदम, डॉ. चंद्रदेव यादव मंचासीन थे। कार्यक्रम का संचालन साहित्य विद्यापीठ के सहायक प्रोफेसर डॉ. अशोक नाथ त्रिपाठी ने किया।
कुलपति प्रो. शुक्ल ने कहा कि चारों छायावादी कवियों की भाषा पर भी चर्चा होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि छायावाद संस्कृति के प्रति संवेदशनशील कविता है। उन्होंने अनेक कवि एवं साहित्यकारों का उल्लेख करते हुए कहा कि मनुष्य के एकात्म बोध के लिए भाषा आवश्यक उपकरण है।
कार्यकारी कुलसचिव प्रो. कृष्ण कुमार सिंह ने छायावाद की महत्ता को अधोरेखित करते हुए कहा कि भक्ति आंदोलन के बाद छायावाद एक बड़ा आंदोलन था। छायावादी कवि कालजयी रचनाकार रहे
वरिष्ठ प्रो. मनोज कुमार का कहना था कि समाज के परिप्रेक्ष्य में रचना का निर्माण होना चाहिए। इस अवसर पर मंचासीन वक्ताओं ने अपने समयोचित विचार प्रकट किए।
कार्यक्रम का समापन राष्ट्रगान से हुआ।
धन्यवाद ज्ञापन संगोष्ठी के संयोजक प्रो. अवधेश कुमार ने किया।
कार्यक्रम में विश्वविद्यालयों तथा महाविद्यालयों से पधारे प्रतिभागी, अध्यापक, विद्यार्थी एवं शोधार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित थे।