इसकी आशंकाएं तेजी से बढ़ रही हैं कि कोविड-19 का नया वेरिएंट, ओमिक्रॉन (The new variant of COVID-19, Omicron) कहीं भारत में इस महामारी की डरावनी तीसरी लहर का कारण न बन जाए। दक्षिण अफ्रीका में पहली बार पहचाने जाने और नवंबर के आखिर में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा ‘चिंताजनक वेरिएंट’ करार दिए जाने के बाद, ओमिक्रॉन दुनिया के पचास से ज्यादा देशों तक पहुंच चुका है और उसे न सिर्फ दक्षिण अफ्रीका में संक्रमणों की संख्या में भारी तेजी के लिए जिम्मेदार माना जा रहा है बल्कि अमरीका तथा योरप के अनेक देशों में भी कोविड-19 के केसों में नयी तेजी के लिए जिम्मेदार माना जा रहा है।
इन पंक्तियों के लिखे जाने तक, ओमिक्रॉन इंग्लेंड में कोविड-19 का प्रमुख वेरिएंट बन गया है और उसने डेल्टा की जगह ले ली है।
दूसरी ओर, नये वेरिएंट की खबर मिलने के बाद से, इसे रोकने के लिए भारत सरकार ने प्रभावित देशों से यात्रा पर पाबंदियों के जो कदम उठाए हैं, उनके बावजूद हमारे देश में ओमिक्रॉन संक्रमण (omicron infection) देश के अनेक राज्यों में पहुंच चुका है, हालांकि इस वेरिएंट के ज्ञात संक्रमितों की संख्या अभी दो अंकों में ही है। यह एक बार फिर इस बुनियादी सचाई की याद दिलाता है कि आज की काफी छोटी हो गयी दुनिया में, वायरस को किसी देश की सीमाओं पर नहीं रोका जा सकता है। इस माने में
वास्तव में अब तक इस नये वेरिएंट के संबंध में सिर्फ एक ही बात पक्के तौर पर कही जा सकती है। वह यह कि ओमिक्रॉन की संक्रामकता यानी फैलने की रफ्तार (Omicron's speed of infectivity), उस डेल्टा वेरिएंट से कई गुनी ज्यादा है, जो इसके सामने आने से पहले तक कोविड-19 का मुख्य वेरिएंट बना हुआ था और जिसे भारत में महामारी की भारी तबाही लाने वाली दूसरी लहर के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार माना जाता है। अब तक की जानकारियों के अनुसार यह वेरिएंट, कोविड-19 के मूल वायरस से बड़ी संख्या में बदलावों या म्यूटेशन्स को दिखाता है। इनमें से पूरे 30 बदलाव तो वायरस के उस स्पाइक प्रोटीन में ही हुए हैं, जिसके जरिए यह वायरस मानव श्वसन तंत्र की भीतरी परत की कोशिकाओं से चिपकता है और उनके जरिए मानव कोशिकाओं में प्रवेश कर, फैलना शुरू कर देता है। इस वेरिएंट के अति-संक्रामक होने को, स्पाइक प्रोटीन के इन बदलावों के चलते, उसके मानव कोशिकाओं से चिपकने के लिए ज्यादा अनुकूल होने के साथ जोड़कर देखा जा रहा है।
स्वाभाविक रूप से, नये वेरिएंट की अतिरिक्त संक्रामकता से, हमारे यहां कोरोना की तीसरी लहर की आशंकाएं (Corona virus In India) और बढ़ जाती हैं। बेशक, नवंबर के आखिर में नये वेरिएंट का पता लगने के बाद से अब तक की अवधि में हमारे देश में इसका संक्रमण सीमित ही है। लेकिन, यह नहीं भूलना चाहिए कि डेल्टा वेरिएंट का पता लगने और भारत में उसके कहर बनकर टूटने के बीच, तीन महीने से ज्यादा का अंतराल रहा था। बेशक, लोग अभी भूले नहीं होंगे कि किस तरह अप्रैल-मई के तीन-चार हफ्तों में जब दूसरी लहर का कहर अपने चरम पर था, संक्रमण तूफानी रफ्तार से बढ़ा था। वास्तव में संक्रमितों की संख्या में यह बेहिसाब बढ़ोतरी ही थी, जिसके सामने देखते ही देखते, सारी व्यवस्थाएं चरमराने से लेकर बैठने तक के हालात में पहुंच गयी थीं। अस्पतालों में बैड नहीं थे, आइसीयू में जगह नहीं थी और एंटीवाइरल दवाओं से लेकर, ऑक्सीजन तक की अस्पतालों में भी भारी तंगी थी, फिर अस्पतालों के बाहर की स्थिति का तो जिक्र ही क्या करना।
इसलिए, डेल्टा से भी ज्यादा तेजी से फैलने वाले संक्रमण के खतरों को लेकर चिंतित होना स्वाभाविक है। यह चिंता इसलिए और भी बढ़ जाती है कि दूसरी लहर की जैसी या उससे भी तेज, किसी तीसरी लहर का मुकाबला करने की, हमारी कोई खास तैयारियां नजर नहीं आती हैं। इसका सीधा संबंध इस सचाई से है कि केंद्र सरकार ने और उसका अनुसरण करते हुए ज्यादातर राज्यों की सरकारों ने भी, सचाइयों का सामना करने और कमजोरियों को पहचान कर उन्हें सुधारने का प्रयास करने के बजाए, ज्यादा ध्यान अपनी छवि बेदाग दिखाने पर ही दिया है। और चूंकि पूरा ध्यान छवि बचाने पर ही है, कमजोरियों को सुधारने के बजाए, कमजोरियों को और उससे भी बेहतर, कडुई सचाइयों को सिरे से नकारने पर ही, ज्यादा भरोसा किया गया है। आक्सीजन की कमी से कोई मौत ही नहीं होने का देश की संसद में किया गया दावा, इसी का आंखें खोलने वाला उदाहरण है। यह दूसरी बात है कि चिकित्सकीय आक्सीजन की आपूर्ति ही ऐसा संभवत: अकेला क्षेत्र है, जिसमें दूसरी लहर के बाद के दौर में कोई उल्लेखनीय सुधार हुआ है, हालांकि यह सुधार भी सरकारी जिला अस्पतालों की अपेक्षाकृत बड़ी संख्या में छोटे-छोटे आक्सीजन जेनरेशन प्लांट लगाए जाने तक ही सीमित है।
जाहिर है कि दूसरी लहर के कटु अनुभव के बाद भी, किसी संभावित तीसरी लहर का मुकाबला करने की कोई खास तैयारी नहीं किया जाना भी, किसी संयोग या चूक का मामला नहीं है। इसका गहरा संबंध इस सचाई से है कि हमारे देश में जनता के स्वास्थ्य पर सार्वजनिक निवेश को प्राथमिकता में बहुत पीछे रखे जाने की जो प्रवृत्ति पहले ही चली आ रही थी, उसे अब स्वास्थ्य के निजीकरण में अंधी निष्ठा ने और खतरनाक बना दिया है। इसी का नतीजा था कि इस स्वास्थ्य इमर्जेंसी के बीच भी मोदी सरकार को, स्वास्थ्य सुविधाओं के विस्तार के लिए, किसी वास्तविक कोशिश की जरूरत ही महसूस नहीं हुई। हां! छवि निर्माण की चिंता से, इस महामारी के बीच चालू वित्त वर्ष के बजट के बाद, उसने स्वास्थ्य पर खर्च कई गुना बढ़ाने का ढोल जरूर पीटा। लेकिन, आंकड़े सामने आते ही सब को पता चल गया कि यह असाधारण बढ़ोतरी वास्तव में, घरों तक नल का पानी पहुंचाने आदि की योजनाओं का खर्चा, स्वास्थ्य की मद में जोडऩे की हाथ की सफाई का ही खेल था। वर्ना स्वास्थ्य के लिए आवंटन में तो कटौती ही की गयी थी! किसी स्वास्थ्य इमर्जेंसी का मुकाबला करने की तैयारियों के अभाव में, अगर तीसरी लहर वाकई आ गयी तो, उसके खतरनाक नतीजों की चिंता होना स्वाभाविक है।
फिर भी, कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई में 2020 के शुरू में दुनिया जहां थी, उससे काफी आगे आ चुकी है। सबसे बड़ी बात यह है कि अब हमारे पास टीका है। इस पहलू से हमारा देश, दुनिया का सबसे बड़ा टीका उत्पादक होने के बावजूद, विकसित दुनिया तथा चीन जितना न सही, पर अन्य अनेक विकासशील देशों से तो ज्यादा खुशनसीब है ही।
बेशक इस पहलू से, कोरोना की दूसरी लहर के दौर के मुकाबले भी स्थिति बहुत बदल चुकी है। आधी वयस्क आबादी को टीके की दोनों खुराकें मिल चुकी हैं और तीन-चौथाई से ज्यादा को कम से कम एक खुराक मिल चुकी है। बेशक, यह भी किसी भी तरह से काफी नहीं है। इसीलिए, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने ओमिक्रॉन के संक्रमण से तीसरी लहर के खतरों के संबंध में आगाह करते हुए, टीकाकरण को जल्दी से जल्दी मुकम्मल करने पर जोर दिया है। अठारह से बारह वर्ष तक के बच्चों का टीकाकरण करने और स्वास्थ्यकर्मियों व अन्य फ्रंटलाइन वर्कर्स तथा अन्य कमजोर प्रतिरोधकता वाले तबकों को जल्दी से जल्दी बूस्टर डोज लगाने का भी सुझाव दिया है। टीका-सुरक्षा की इन संदों को भरने के लिए तेजी से काम करने की जरूरत है।
यह नहीं भूलना चाहिए कि अगर हमारे देश में टीकाकरण के पूरी तरह से केंद्रीयकृत कुप्रबंधन तथा विचारहीन नीतिनिर्धारण के चलते टीकाकरण की रफ्तार इतनी धीमी नहीं रही होती, तो महामारी की दूसरी लहर ने इतना कहर बरपा नहीं किया होता।
बेशक, यह अभी स्पष्ट नहीं है कि उपलब्ध टीके इस नये वेरिएंट के खिलाफ किस हद तक बचाव उपलब्ध कराते हैं। वास्तव में ओमिक्रॉन से अब तक संक्रमित होने वालों में टीके से रक्षितों की संख्या अच्छी-खासी है। फिर भी संक्रमण को गंभीर रूप लेने से रोकने में, टीके असंदिग्ध रूप से कारगर हैं। वैसे एक धारणा यह भी है, हालांकि इसकी पुष्टि में समय लगेगा कि यह वेरिएंट घातक उतना नहीं है, जितना संक्रामक है। संक्रमितों के गंभीर अवस्था में अस्पताल पहुंचने के मामले बहुत कम हैं और इस वेरिएंट से ज्ञात मौतों का आंकड़ा इन पंक्तियों के लिखे जाने तक एक तक ही सीमित था। फिर भी जब तक कोविड-19 के लिए खिलाफ प्राकृतिक प्रतिरोधकता विकसित नहीं हो जाती है, तैयारी और बचाव ही सबसे बड़े हथियार हैं। पर हमारी तैयारी कहां है!
राजेंद्र शर्मा