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On the first day of the Parliament session on September 14, farmers will demonstrate across the country

रायपुर, 11 सितंबर 2020. अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के आह्वान पर अपनी लंबित मांगों को लेकर पूरे देश में किसान संसद सत्र के पहले दिन ही 14 सितम्बर को देशव्यापी प्रदर्शन करेंगे। छत्तीसगढ़ में ये प्रदर्शन कोविड-19 के प्रोटोकॉल और फिजिकल डिस्टेंसिंग को ध्यान में रखते हुए हर गांव में आयोजित किये जायेंगे।

दिल्ली में समन्वय समिति से जुड़े संगठन एक विशाल धरना का आयोजन करेंगे।

 यह जानकारी समन्वय समिति से जुड़े विजय भाई और छत्तीसगढ़ किसान सभा के राज्य अध्यक्ष संजय पराते ने आज दी।

उन्होंने बताया कि इस देशव्यापी किसान प्रदर्शनों के जरिये केंद्र सरकार से कृषि विरोधी अध्यादेशों और पर्यावरण आंकलन मसौदे को वापस लेने, कोरोना संकट के मद्देनजर ग्रामीण गरीबों को मुफ्त खाद्यान्न और नगद राशि से मदद करने, मनरेगा में 200 दिन काम और 600 रुपये रोजी देने, व्यावसायिक खनन के लिए प्रदेश के कोल ब्लॉकों की नीलामी और नगरनार स्टील प्लांट का निजीकरण रद्द करने, किसानों को स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुसार सी-2 लागत मूल्य का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य के रूप में देने और उन्हें बैंकिंग तथा साहूकारी कर्ज़ के जंजाल से मुक्त करने, आदिवासियों और स्थानीय समुदायों को जल-जंगल-जमीन का अधिकार देने के लिए पेसा कानून का क्रियान्वयन करने की मांग की जाएगी।

उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ़ में इन मुद्दों पर किसानों और आदिवासियों के बीच काम करने वाले 25 संगठन एक साथ आये हैं।

इन संगठनों में छत्तीसगढ़ किसान सभा, आदिवासी एकता महासभा, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन, हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति, राजनांदगांव जिला किसान संघ, छग प्रगतिशील किसान संगठन, दलित-आदिवासी मंच, क्रांतिकारी किसान सभा, छग किसान-मजदूर महासंघ, छग प्रदेश किसान सभा, जनजाति अधिकार मंच, छग किसान महासभा, छमुमो (मजदूर कार्यकर्ता समिति), किसान महापंचायत, परलकोट किसान संघ, अखिल भारतीय किसान-खेत मजदूर संगठन, वनाधिकार संघर्ष समिति, धमतरी

व आंचलिक किसान सभा, सरिया आदि संगठन प्रमुख हैं। अपने प्रदर्शनों के जरिये ये संगठन राज्य की कांग्रेस सरकार से भी सभी किसानों को पर्याप्त मात्रा में यूरिया खाद उपलब्ध कराने, बोधघाट परियोजना को वापस लेने, हसदेव क्षेत्र में किसानों की जमीन अवैध तरीके से हड़पने वाले अडानी की पर्यावरण स्वीकृति रद्द करने और उसके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने, पंजीकृत किसानों के धान के रकबे में कटौती बंद करने, सभी बीपीएल परिवारों को केंद्र द्वारा आबंटित प्रति व्यक्ति 5 किलो अनाज वितरित करने, वनाधिकार दावों की पावती देने, हर प्रवासी मजदूर को अलग मनरेगा कार्ड देकर रोजगार देने और भू-राजस्व संहिता में कॉर्पोरेटपरस्त बदलाव न करने की भी मांग करेंगे।

इन संगठनों से जुड़े किसान नेताओं ने अध्यादेशों के जरिये कृषि कानूनों में किये गए परिवर्तनों को किसान विरोधी बताते हुए कहा कि इससे फसल के दाम घट जाएंगे, खेती की लागत महंगी होगी और बीज और खाद्य सुरक्षा के लिए सरकारी हस्तक्षेप की संभावना भी समाप्त हो जाएगी। ये परिवर्तन पूरी तरह कॉर्पोरेट सेक्टर को बढ़ावा देते हैं और उनके द्वारा खाद्यान्न आपूर्ति पर नियंत्रण से जमाखोरी व कालाबाजारी को बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने कहा कि किसानों को "वन नेशन, वन एमएसपी" चाहिए, न कि वन मार्केट!

The country is stuck in a severe economic downturn today due to the corporate policies of the Modi government.

इन संगठनों का मानना है कि मोदी सरकार की कॉर्पोरेटपरस्त नीतियों के कारण देश आज गंभीर आर्थिक मंदी में फंस गया है। इस मंदी से निकलने का एकमात्र रास्ता यही है कि आम जनता की जेब मे पैसे डालकर और मुफ्त खाद्यान्न उपलब्ध करवाकर उसकी क्रय शक्ति बढ़ाई जाए, ताकि बाजार में मांग पैदा हो और उद्योग-धंधों को गति मिले। लेकिन इसके बजाय केंद्र सरकार इस आर्थिक संकट का बोझ आम जनता पर ही लाद रही है और आम जनता के सामने अपनी आजीविका और जिंदा रहने की समस्या पैदा हो गई है। इसलिए ये सभी किसान संगठन केंद्र सरकार से किसानों और प्रवासी मजदूरों की रोजी-रोटी, उनकी आजीविका और लॉक डाऊन में उनको हुए नुकसान की भरपाई की मांग कर रही है। इन संगठनों ने राज्य सरकार से भी आदिवासियों और ग्रामीणों के हाथों से उनकी जमीन छीनने वाली नीतियों पर रोक लगाने की मांग की है और भू-राजस्व संहिता में आदिवासीविरोधी संशोधनों की  खिलाफत की है।

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