मेरठ , 27 नवंबर, 2018 : वायु प्रदूषण और फेफड़ों के कैंसर के परस्पर संबंध के बारे में दशकों से जानकारी है और यह भी कि वायु प्रदूषण कैंसर के जोखिम को बढ़ाता है। खेतों में फसलों के बचे-खुचे अंश को जलाने का सीज़न शुरू होने के साथ ही प्रदूषण का जोखिम भी बढ़ेगा और किसी भी प्रकार के स्वास्थ्य के खतरों से जूझ रहे लोगों के लिए यह परेशानी बढ़ाएगा।
वायु प्रदूषण वास्तव में, उस हवा में मौजूद खतरनाक पदार्थों को कहते हैं जिसमें हम श्वास लेते हैं। इनमें कई तरह के पदार्थ जैसे कारों से निकलने
2013 में, इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (आईएआरसी) ने बाहरी वायु प्रदूषण को कैंसर का कारण माना था। यह कैंसरकारी माना जाता है क्योंकि यह धूम्रपान और मोटापे की तरह प्रत्यक्ष रूप से कैंसर के बढ़ते जोखिम से जुड़ा है। और भी महत्वपूर्ण यह है कि वायु प्रदूषण सभी को प्रभावित करता है।
शोध से यह सामने आया है कि हवा में मौजूद धूल के महीन कण जिन्हें ’पार्टिकुलेट मैटर‘ या पीएम कहा जाता है, वायु प्रदूषण का एक बड़ा हिस्सा बनते हैं। सबसे महीन आकार का कण - जो कि एक मीटर के 2.5 मिलियनवें हिस्से से भी छोटा होता है, प्रदूषण की वजह से होने वाले फेफड़ों के कैंसर की प्रमुख वजह है। अनेक अनुसंधानों और मैटा-एनेलिसिस से यह साफ हो गया है कि वायु में पीएम की मात्रा 2.5 से अधिक होने के साथ ही फेफड़ों के कैंसर का जोखिम भी बढ़ जाता है।
Damage from 'PM 2.5'
मैक्स हैल्थकेयर के कैंसर रोग विभाग के मुख्य परामर्शदाता डॉ गगन सैनी ने कहा,
’’पीएम 2.5 से होने वाले नुकसान का प्रमाण फ्री रैडिकल, मैटल और ऑर्गेनिक कंपानेंट के रूप में दिखायी देता है। ये फेफड़ों के जरिए आसानी से हमारे रक्त में घुलकर फेफड़ों की कोशिकाओं को क्षति पहुंचाने के अलावा उन्हें ऑक्सीडाइज़ भी करते हैं जिसके परिणामस्वरूप शरीर को नुकसान पहुंचता है। पीएम2.5 सतह में आयरन, कॉपर, जि़ंक, मैंगनीज़ तथा अन्य धात्विक पदार्थ और नुकसानकारी पॉलीसाइक्लिक एरोमेटिक हाइड्रोकार्बन एवं लिपोपॉलीसैकराइड आदि शामिल होते हैं। ये पदार्थ फेफड़ों में फ्री रैडिकल बनने की प्रक्रिया को और बढ़ा सकते हैं तथा स्वस्थ कोशिकाओं में मौजूद डीएनए के लिए भी नुकसानदायक होते हैं। पीएम 2.5 शरीर में इंफ्लेमेशन का कारण भी होता है।"
इंफ्लेमेशन दरअसल, रोज़मर्रा के संक्रमणों से निपटने की शरीर की प्रक्रिया है लेकिन पीएम 2.5 इसे अस्वस्थकर तरीके से बढ़ावा देती है और केमिकल एक्टीवेशन बढ़ जाता है। यह कोशिकाओं में असामान्य तरीके से विभाजन कर कैंसर का शुरूआती कारण बनता है।‘‘
फेफड़ों के कैंसर संबंधी आंकड़ों के अध्ययन से कैंसर के 80,000 नए मामले सामने आए हैं। इनमें धूम्रपान नहीं करने वाले भी शामिल हैं और ऐसे लोगों में कैंसर के मामले 30 से 40 फीसदी तक बढ़े हैं। इसके अलावा, मोटापा या मद्यपान भी कारण हो सकता है, लेकिन सबसे अधिक जोखिम वायु प्रदूषण से है।
डॉ गगन सैनी का कहना है,
’’दिल्ली में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में फेफड़ों के मामले 2013-14 में 940 से दोगुने बढ़कर 2015-16 में 2,082 तक जा पहुंचे हैं, जो कि शहर में वायु प्रदूषण में वृद्धि का सूचक है। धूम्रपान नहीं करने वाले लोगों में फेफड़ों के कैंसर के मरीज़ों में 30 से 40 वर्ष की आयुवर्ग के युवा, ज्यादा महिलाएं और साथ ही एडवांस कैंसर से ग्रस्त नॉन-स्मोकर्स शामिल हैं। मैं अपने अनुभव से यह कह सकता हूं कि फेफड़ों के कैंसर के मामले लगातार बढ़ रहे हैं और मैं लोगों से इन मामलों की अनदेखी नहीं करने का अनुरोध करता हूं। साथ ही, यह भी सलाह देता हूं कि वे इसकी वजह से सेहत के लिए पैदा होने वाले खतरों से बचाव के लिए तत्काल सावधानी बरतें।‘‘
वायु प्रदूषण से होने वाले कैंसर
Cancer from air pollution
डॉ गगन सैनी का कहना है कि वायु प्रदूषण न सिर्फ फेफड़ों के कैंसर से संबंधित है बल्कि यह स्तन कैंसर, जिगर के कैंसर और अग्नाषय के कैंसर से भी जुड़ा है। वायु प्रदूषण मुख और गले के कैंसर का भी कारण बनता है। ऐसे में मनुश्यों के लिए एकमात्र रास्ता यही बचा है कि वायु प्रदूषण से मिलकर मुकाबला किया जाए। संभवतः इसके लिए रणनीति यह हो सकती है कि इसे एक बार में समाप्त करने की बजाय धीरे-धीरे प्रदूशकों को घटाने के प्रयास किए जाएं और इस संबंध में सख्त कानून भी बनाए जाएं।
भारत को वायु प्रदूषण से बढ़ते खतरों के बारे में और जागरूक बनना जरूरी है। इसके लिए सबसे पहले लक्षणों को समझना और तत्काल डॉक्टर से परामर्श करना जरूरी है।
Early signs of being affected by air pollution
शुरूआती लक्षणों में डॉ गगन सैनी का कहना है कि लगातार खांसी, खांसी में खून जाना, छाती में दर्द जैसी शिकायतें प्रमुख हैं और खांसी के अलावा सांस लेने में भारीपन, आवाज़ में भारीपन, वज़न/भूख कम होना, सांस फूलना आदि शामिल हैं। जो खुशकिस्मत लोग इन लक्षणों से प्रभावित नहीं हैं, उन्हें अपनी जीवनशैली में सेहतमंद बदलाव करने चाहिए, खुराक बेहतर बनानी चाहिए ताकि प्रतिरोधक क्षमता बढ़े। साथ ही, मास्क पहनने, चेहरा ढंकने जैसी आदतों को भी अपनाना चाहिए जिससे सांस के जरिए प्रदूषित वायु शरीर में कम जाए।
डॉ गगन सैनी के बारे में
About Dr Gagan Saini
डॉ गगन सैनी राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के मैक्स हैल्थकेयर में रेडिएशन ओंकोलॉजिस्ट हैं। वे पिछले दो दषकों से कैंसर के इलाज में संलिप्त हैं और मरीज़ों को अपनी विषेशज्ञता का लाभ दे रहे हैं। डॉ सैनी इससे पहले फोर्टिस हैल्थकेयर और एम्स से जुड़े रहे थे। उन्होंने मेडिसिन की शिक्षा प्रतिष्ठित एम्स में प्राप्त की और वहीं ओंकोलॉजी में विशेषज्ञता भी अर्जित की।
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( नोट - यह समाचार किसी भी हालत में चिकित्सकीय परामर्श नहीं है। यह समाचारों में उपलब्ध सामग्री के अध्ययन के आधार पर जागरूकता के उद्देश्य से तैयार की गई अव्यावसायिक रिपोर्ट मात्र है। आप इस समाचार के आधार पर कोई निर्णय कतई नहीं ले सकते। स्वयं डॉक्टर न बनें किसी योग्य चिकित्सक से सलाह लें।)
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