आज फिर मौसम बिगड़ गया है। उत्तराखण्ड में कल से आंधी बारिश जारी है। राजस्थान में ओलावृष्टि की खबर है।
रिजर्व बैंक के गवर्नर को अर्थ व्यवस्था के संकट के नाम सिर्फ पूंजी और पूंजीपतियों के संकट की परवाह है। रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट (Repo rate and reverse repo rate) घटाने से समूची अर्थ व्यवस्था और उत्पादन प्रणाली ठप होने की स्थिति में आम जनता को कोई फायदा नहीं होगा।
इस लॉक डाउन से असंगठित क्षेत्र के कम से कम 5 करोड़ मजदूरों की रोजी रोटी छिन गयी है। अब महानगरों से वे खदेड़े जा रहे हैं। घर लौटने का साधन नहीं है। इन करोड़ों लोगों की न पीएम, न वित्त मंत्री और न रिजर्व बैंक को कोई परवाह है। किसानों और कृषि संकट की तो 70 साल से किसी को कोई परवाह नहीं है।
कृषि उत्पादन बर्बाद, औद्योगिक उत्पादन ठप। ऐसे में देश की 99 फीसद जनता के लिए भारी संकट खड़ा हो गया है।
आयकर में 5 लाख तक छूट के बहाने सारी रियायतें खत्म करके बचत को सिरे से खत्म कर दिया गया है। बैंक एनपीए की वजह से डूब रहे हैं। इस लॉक डाउन से तो बैंकों की हालत और खराब हुई है। बचत का ब्याज घटते-घटते 3 प्रतिशत हो गया है। लेन देन शुल्क को जोड़े, आयकर कटौती और टैक्स को देखें तो बैंक में जमा से कुछ फायदा नहीं है बल्कि जमा की कोई सुरक्षा नहीं है। बैंक डूबा तो जमा वापस नहीं होगा। बैंकों से लोग पैसा निकलना शुरू करेंगे तो बैंकिंग प्रणाली भी ध्वस्त होने वाली है।
हम बात बार कह रहे हैं कि
इस वजह से स्वास्थ्य सेवा बुरी तरह फेल हो गयी है। टीवी, कैंसर, मधुमेह, दिल और गुर्दे की बीमारियों से पीड़ित लोगों का इलाज बन्द हो गया है।
दूसरी बीमारियों और दुर्घटना के शिकार लोगों का इलाज भी थम गया है।
शहरों में फिर भी जरूरी सेवाओं और जरूरतों की कुछ न कुछ व्यवस्था हो जाएगी। लेकिन कस्बो और शहरों से दूर गांवों में आज तीसरे दिन से ही जरूरी चीजों और सेवाओं की भारी किल्लत हो गई है।
दो तीन महीने लॉक डाउन रहा तो करोड़ों लोगों के लिए रोजी रोटी के संकट में मर जाने के सिवाय कोई दूसरा चारा नहीं बचेगा।
सरकार को इन करोड़ों आम लोगों की कोई परवाह नही है।
मजदूरों और किसानों, गांवों की कोई परवाह नहीं है।
पलाश विश्वास