कोरोना कर्फ्यू से जन जीवन ठप है। काम धंधे बंद हैं। अर्थव्यवस्था खत्म है। पूंजीपतियों को बजट से पहले सात दफा पैकेज दिया गया। फिर पूरा बजट भी उनके नाम। शेयर बाज़ार में आम निवेशकों के पचास लाख करोड़ सिर्फ तीन दिन की गिरावट में खत्म हो गए।
महामारी से निपटने के लिए समाज में महामारी का संक्रमण न हो, इसके लिए लॉक डाउन (#CoronavirusLockdown, #21daylockdown ) जरूरी है।
सवाल यह है कि बड़ी संख्या में जो लोग संक्रमित हो रहे हैं, उनके इलाज का बंदोबस्त क्यों नहीं है?
सवाल है कि स्वास्थ्य पर बजट लगातार क्यों घटाया गया?
सवाल है कि नागरिकों की बुनियादी जरूरतों और सेवाओं से सरकार ने अपनी जिम्मेदारी छोड़कर सबकुछ देशी विदेशी मुनाफाखोर सौदागरों पर क्यों छोड़ दिया?
सवाल है कि कोरोना कर्फ्यू की वजह से जो संविदा नौकरियाँ खत्म हो रही हैं उनका क्या?
सवाल है कि असंगठित क्षेत्र के करोड़ों मजदूरों को इस महामारी की आड़ में रोजी रोटी से जो बेदखल किया गया, उनके पुनर्वास का क्या होगा?
सवाल है कि इस महामारी से मुनाफाखोरी को कैसे रोका जाए?
सवाल है कि इस महामारी के बहाने कामगारों के हक़ हक़ूक़ छिनने की क्या क्या तैयारी और है?
सवाल है कि कोरोनो कर्फ्यू के बावजूद शराब और नशे का कारोबार गांव गांव तो इस तरह बेलगाम क्यों जारी है?
सवाल है, रोजी रोटी के बदले युवाजनों को नशे के शिकंजे में क्यों फंसाया जा रहा है?
हम इन तमाम सवालों का जवाब ढूंढ रहे हैं।
आपके
पलाश विश्वास