लखनऊ, 29 फरवरी। भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (माले) ने जेएनयू के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार, अनिर्बन, उमर खालिद समेत 10 छात्र कार्यकर्ताओं पर राजद्रोह का मुकदमा चलाने के लिए दिल्ली पुलिस को अनुमति देने के केजरीवाल सरकार के फैसले की कड़ी आलोचना की है।
पार्टी राज्य सचिव सुधाकर यादव ने शनिवार को जारी बयान में कहा कि 2016 में जेएनयू कैम्पस में 'कश्मीर एकजुटता' पर कविता पढ़ने के दौरान कथित रूप से राष्ट्र-विरोधी नारे लगाने का मुकदमा जबसे दर्ज हुआ है, तभी से यह स्पष्ट है कि इस आरोप को प्रमाणित करने के लिए दिल्ली पुलिस के पास कोई भी सबूत नहीं है।
माले नेता ने कहा कि जब देश भर में भाजपा सरकारें सीएए-एनपीआर-एनआरसी के आलोचकों पर देशद्रोह के आरोप जड़ रही हैं और दिल्ली पुलिस दंगे भड़काने, असंतुष्टों व अल्पसंख्यकों का जनसंहार कराने वाले भाजपा नेताओं को गिरफ्तार करने से इनकार कर रही है, ऐसे में अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली आप सरकार का यह
राज्य सचिव ने कहा कि राजद्रोह की धारा औपनिवेशिक मूल का एक कठोर कानून है, जिसे असंवैधानिक करार दिया जाना चाहिए। स्वतंत्र भारत में इसका एकमात्र उद्देश्य असहमत विचार रखने वालों को परेशान करना है। राजद्रोह कानून के तहत कभी भी कोई सजा नहीं हुई है, लेकिन इसकी प्रक्रिया ही सजा है, जिसके माध्यम से असंतुष्टों को 'राष्ट्र विरोधी' घोषित करने का सरकारों और मीडिया को मौका मिल जाता है।
उन्होंने कहा कि भाकपा (माले) उन सभी छात्रों व नागरिकों के साथ एकजुटता व्यक्त करती है, जिन पर राजद्रोह के आरोप लगे हैं, चाहे 2016 के मामले में दस जेएनयू छात्रों पर हो या देश के अन्य हिस्सों - मुंबई और कर्नाटक के युवाओं पर।