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Narendra Modi responsible for the devastation of Indian economy should be punished, voice raised on social media

नई दिल्ली, 09 नवंबर। नोटबंदी की तीसरी पुण्यतिथि पर सोशल मीडिया पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर आरोपों की बौछार होती रही।

अधिवक्ता मधुवन दत्त चतुर्वेदी ने लिखा,

“नरेंद्र का नरमेध हुए दो वर्ष हो गए हैं।

भारतीय अर्थव्यवस्था की तबाही के लिए जिम्मेदार नरेंद्र मोदी द्वारा नोटबन्दी के तानाशाहीपूर्ण बेबकूफाना कदम को जो लोग ऐतिहासिक कदम बता रहे थे, वे अब गुमनामी में हैं।

समूची भारतीय जनता को घोर कष्टों में झोंकने वाली नोटबन्दी के महाअपराध के लिए आज मांग कीजिये कि विशेष कानून बनाकर नरेंद्र मोदी को सजा दी जाए। विपक्ष को चाहिए कि वह ऐसी मंशा जाहिर करे।“

मधुवन दत्त चतुर्वेदी ने लिखा,

“अगर कर दायरे में ज्यादा लोगों को लाने की बोलकर नोटबन्दी की होती तो कदाचित चौराहे पर आने के वायदे की जरूरत नहीं थी, लोग खींच लाते !”

उन्होंने लिखा,

नरेंद्र मोदी को चाहिए फिर से 8 बजे टीवी रेडियो पर आकर देश को बतायें कि नोटबन्दी क्यों की थी और उससे क्या हासिल हुआ।

वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक अरुण माहेश्वरी ने लिखा –

“‘अर्थ-व्यवस्था का औपचारीकरण’ - कोई जेटली से पूछे यह क्या बला है ?

क्या औपचारीकरण का अर्थ काले धन और काली अर्थ-व्यवस्था के अंत के अलावा कुछ और हो सकता है ? क्या नोटबंदी से काला धन खत्म हो गया है ?

तब फिर ‘अर्थ-व्यवस्था के औपचारीकरण’ का क्या मतलब है ?

क्या यह मोदी-जेटली की अर्थनीति संबंधी चरम अज्ञता को छिपाने और भक्तों को भरमाने का एक नया जुमला भर नहीं है !

सचमुच, मोदी-जेटली कंपनी के पास सिर्फ शाब्दिक बाजीगरियों

के अलावा कुछ नहीं है।”

लेखक व विचारक दिगंबर ने लिखा,

“आज रबर को साँप बनानेवाले मदारी की भाषा पीएम के मुँह से सुनने के दिन की बरसी है!

लैम्प पोस्ट से लटका देना, चौराहे पर जूते मरना। छी!”

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