चुप्पी साधे सब जीव
सुरक्षित हो जाने के भ्रम में
अंधेरे बिलों में छिप कर
राहत की सांस ले रहे हैं
बाहर आदमखोर भेड़िया
हंस रहा है
इसकी ख़बर नहीं है उन्हें
भेड़िया अब दो पैरों पर चल सकता है
दे सकता है सत्संग शिविर में प्रवचन
सुना सकता है बच्चों को कहानी
शिकार को जाल में फंसाने के लिए
कुछ भी कर सकता है वो
वह अब अपने खून भरे नुकीले पंजों को
खुर पहनकर छिपा कर चलता है
इनदिनों वो तमाम आदमखोर जानवरों का
मुखिया बन चुका है
आप भी जानते हैं कि अब वह गुफा के भीतर
कब और क्यों जाता है
हम बार -बार आगाह कर रहे हैं
कि जंगल में आग लग चुकी है
और आदमखोर भेड़िया अपने साथियों के साथ
मानव बस्तियों की तरफ बढ़ रहा है
अफ़सोस , कि लोग मुझे
आसमान गिरा , आसमान गिरा कहने वाला
खरगोश समझ रहे हैं !
नित्यानन्द गायेन