नदी में कटान
बाढ़ में उफान
डूब गया धान
भारी है लगान
आए रहे
छोर के गाम
सुना सहर में मिलबे
करेगा काम
दिहाड़ी-मज़ूरी का
कुछ होगा इन्तेजाम
कोई बोला खोले लो
पान-बीड़ी का दुकान
कोई बोला उहाँ चलो
बन रहा बड़का मकान
माल ढोने-ऊने का काम
सौ रुपया दिन का
दू पैकेट बिस्कुट
और चा सुबो साम
सरदार कहे इहाँ ही
तंबू में रह लो आलिसान
ढूँढना नहीं परेगा
और कोई ठिकान
ईंटा रेता बजरी
जा जा कर मसीन में डाला
चढ़ी के चिरिमिरी सीढ़ी
फिर पहुँचाए ऊपर मसाला
अचानक से हुआ हरबड़ी वाला एलान
महामारी आयी महामारी आयी
बचाओ अपनी अपनी जान
बंद हुआ अब सारा काम
आपस चले जाओ अपने गाम
कैसी आफ़त है आन
चेचक-ऊचक है का
ई महामारी का नाम?
नहीं किसिको भान
बस मूँह ढाँक लो
बुरा बहुत ईका परिनाम
भागो भागो
राम आसरे कहिन
कहियों नैके कौनो काम
और घड़ी घड़ी बढ़त जात
आलू-पियाँज का दाम
नून तेल चाँवल आँटा
बनिया का दुकान में सन्नाटा
अब हर घड़ी इहाँ रहने में घाटा
सूख के हो जायी हम काँटा
का करें कहाँ जाएँ
सुना रहा बंद है
टिरैन और बस
कौनो गारी
आटू टेम्पु
नहीं लेवत
एक्को सवारी
लगता अब गए हम फँस
का करें कीधरे जाएँ कैसे जाएँ
यहीं कहिन रूक जाएँ?
अरे बुर्बक हो का
इहाँ का खाओगे किधर रहोगे
अब मज़ूरी हो गईल खतम
चला पैदल ही निकले
चारा नहीं कोई
और आता नज़र
गाम छोर के आए थे
अब गाम ही डगर
एक दू गो केला ख़रीद लीजिए
और उहाँ से भर लीजिए पानी
निकल चलिए रोट पर
अब आऊर कोई मदद नहीं आनी
बहुते लम्बा है रास्ता
कमर पे कस लीजिए बस्ता
***
अरे अरे ई का हुआ
गिर पड़े का थक कर
पानी छिड़किए कोई
चल पड़ेंगे थोड़ा थम कर
बेहोस हो गए हैं का
कुछ बोलते काहे नाहीं
उठिए चलिए अभी
सफ़र लम्बा बा बटोही
घर का मकान
सब्जी का बगान
खुसी का खदान
बढ़ियाँ बढ़ियाँ पकवान
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उमंग कुमार दिल्ली-NCR स्थित एक लेखक व दुनिया के कई संघर्षों के समर्थक, हितैषी और जहाँ सम्भव, उनमे सहभागी हैं।