Hastakshep.com-Opinion-Kavita Arora-kavita-arora-Poetry on Kite by Kavita Arora-poetry-on-kite-by-kavita-arora-Poetry on Kite-poetry-on-kite-कविता-kvitaa-डॉ. कविता अरोड़ा-ddon-kvitaa-aroddaa-पतंग पर कविता-ptng-pr-kvitaa-पतंग-ptng

....पतंग उड़ा कर तो देखो..

तुम डोर संग हवाओं के रिश्ते महसूस करोगे...

फ़लक तक रंगीन फरफराहटों में..

यक़ीनन काग़ज़ी टुकड़े नहीं,

तुम उड़ोगे..

वो ख़्वाब चिड़ियों के परों वाले..

बादलों पर घरों वाले....

मगरिब का मुहल्ला..

शाम का थल्ला..

शफ़क का दरवज्जा..

तारों का छज्जा..

फलक की गली..

इक चाँद की डली..

उमंगों की तमाम उड़ानों के सिरे माँझे के मुहाने पर ही तो हैं...

तुम ज़रा पतंग पर उचको..

खटखटाओ साँकलें हवाओं की..

जाओ चूम लो पेशानियां बादलों की

झाँको दिलों में

महसूस करो कितने भीगे भीगे हैं तुम बिन......

इन धूल भरे रस्तों को इक उम्र दी तुमने

और

कहीं नहीं पहुँचे...

अब आँखों से कहो कि फलक ताकें...

और फिर देखो

शफ़क के लाल टिब्बे पर ठुमके लगा रहे होगे तुम....

लब चूमने लगेंगे..

माँझों से कटी उँगलियाँ...

उतरेंगी कासनी फलक पे रौनक़ें सन्दलियाँ..

तो..

सुन्झी सुन्झी गली मुहल्ला ..

खिलखिलायेगा..

गुज़रेंगीं..

शामें फिर से अवध की शामों की तरह और..

फिर से

छतों से तुम्हें प्यार हो जायेगा...

डॉ. कविता अरोरा

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