चुनाव आयोग के दिशा-निर्देशों पर विपक्ष का हल्ला बोल, मतदाता सूची पुनरीक्षण में ‘स्वयंसेवकों’ की भूमिका पर उठे सवाल
The opposition is criticizing the Election Commission's guidelines, questioning the role of 'volunteers' in the voter list revision process.
चुनाव आयोग ने बिहार के मतदाताओं को दी बड़ी राहत
- Bihar Election Update 2025
- 2003 की मतदाता सूची से दस्तावेजी प्रमाण की आवश्यकता खत्म
- अखिलेश यादव ने स्वयंसेवकों की भूमिका पर उठाए सवाल
क्या मतदाता सूची में फेरबदल सत्ता पक्ष की रणनीति है?
चुनाव आयोग ने बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के दौरान 2003 की सूची को सार्वजनिक किया और दस्तावेजी आवश्यकताओं में छूट दी है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने चुनाव में स्वयंसेवकों की भूमिका पर गंभीर सवाल उठाते हुए सत्ता पक्ष पर आरोप लगाए हैं। जानिए पूरा मामला
नई दिल्ली/पटना 01 जुलाई 2025। बिहार में मतदाता सूचियों के विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision - SIR) के बीच भारत के चुनाव आयोग (ECI) ने 2003 की मतदाता सूची को सार्वजनिक करते हुए कुछ महत्वपूर्ण छूटों की घोषणा की है। नई घोषणा के तहत अब 1987 के बाद जन्मे मतदाताओं को अपने माता-पिता के जन्म प्रमाणपत्र देने की आवश्यकता नहीं होगी, यदि उनका नाम 2003 की मतदाता सूची में दर्ज है।
चुनाव आयोग का स्पष्टीकरण
चुनाव आयोग ने एक आधिकारिक बयान में बताया कि बिहार की 2003 की मतदाता सूची, जिसमें 4.96 करोड़ मतदाताओं का विवरण है, वेबसाइट पर अपलोड कर दी गई है। आयोग ने यह भी स्पष्ट किया कि 2003 की सूची में जिनका नाम है, उन्हें केवल सूची का एक अंश दिखाना पर्याप्त होगा। ऐसे लोगों को अब अतिरिक्त दस्तावेज नहीं देने होंगे।
24 जून को जारी निर्देशों के अनुसार, सभी बूथ लेवल अधिकारी (BLO) को 1 जनवरी, 2003 की अर्हता तिथि वाली मतदाता सूची की हार्ड कॉपी और ऑनलाइन संस्करण उपलब्ध कराया जाएगा, जिससे नागरिक गणना फॉर्म भरते समय इसे दस्तावेजी साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत कर सकें।
चुनाव आयोग का दावा है कि इस प्रक्रिया से लगभग 60% मतदाताओं को दस्तावेज जमा करने से राहत मिलेगी, जिससे मतदाता और BLO दोनों को सुविधा होगी।
दस्तावेज की किसे होगी आवश्यकता?
नई सूचना के अनुसार
1 जुलाई 1987 से पहले जन्मे लोगों को केवल अपने जन्म स्थान और तिथि का प्रमाण देना होगा।
1 जुलाई 1987 से 2 दिसंबर 2002 के बीच जन्मे: स्वयं या माता-पिता में से किसी एक का जन्म प्रमाण देना होगा।
2 दिसंबर 2004 के बाद जन्मे लोगों को स्वयं और माता-पिता दोनों के जन्म स्थान व तिथि के प्रमाण आवश्यक होंगे।
चुनाव आयोग पर विपक्ष का सवाल
समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इस पूरी प्रक्रिया पर गहरी आपत्ति जताते हुए चुनाव आयोग से जवाब मांगा है। उन्होंने कहा :
“सबसे पहले उन ‘स्वयंसेवकों’ की पहचान उजागर की जाए जिन्हें बिहार और बंगाल में मतदाता सत्यापन में लगाया जा रहा है। यह सुनिश्चित किया जाए कि ये स्वयंसेवक सत्ता पक्ष से जुड़े किसी संगठन से नहीं हैं।”
अखिलेश यादव ने आरोप लगाया कि यह प्रक्रिया सत्तारूढ़ दल के इशारे पर मतदाता सूची से विपक्षी वोटरों को हटाने की साजिश हो सकती है। अखिलेश ने आगे कहा :
“जो मतदाता सूची पिछले जून में सही थी, वह इस जून में गलत कैसे हो सकती है? सत्ता पक्ष हार के डर से चालबाज़ी कर रहा है, लेकिन इससे भाजपा की हार तय है।”
संवैधानिक प्रावधान का हवाला
चुनाव आयोग ने अपने बयान में यह भी स्पष्ट किया कि संविधान का अनुच्छेद 326 केवल उन्हीं नागरिकों को मतदाता बनने की अनुमति देता है जो 18 वर्ष से अधिक आयु के भारतीय नागरिक हों और संबंधित निर्वाचन क्षेत्र के सामान्य निवासी हों।
एक तरफ चुनाव आयोग द्वारा 2003 की मतदाता सूची का सार्वजनिक करना और दस्तावेज़ी आवश्यकताओं में छूट देना सत्तारूढ़ दलों की तरफ से प्रशासनिक सहूलियत मानी जा रहा है, वहीं विपक्ष इसे संवेदनशील और संदिग्ध कड़ी मानते हुए हमलावर रुख अपना चुका है। आने वाले दिनों में यह मामला राजनीतिक और कानूनी दोनों मोर्चों पर और गरमा सकता है।