प्यू रिसर्च सेंटर की हालिया (2 अप्रैल 2015) की रपट (Pew Research Center's recent (2 April 2015) report) में आने वाले वर्षों में भारत की आबादी के संबंध में कुछ पूर्वानुमान दिये गये हैं। रपट के अनुसार, सन् 2050 तक भारत में हिंदुओं की आबादी, वर्तमान 79.5 प्रतिशत से घटकर 76.7 प्रतिशत रह जायेगी जबकि मुसलमानों की आबादी, 18 प्रतिशत के करीब हो जाएगी। सन् 2050 में भारतीय मुसलमानों की संख्या, पाकिस्तान और इंडोनेशिया में उनकी आबादी से ज्यादा हो जाएगी।
इस पूर्वानुमान से व्यथित साध्वी प्राची ने हिंदू महिलाओं को यह सलाह दी है कि वे कम से कम चालीस बच्चे पैदा करें जबकि भाजपा के सांसद साक्षी महाराज की चाहत है कि हर हिंदू महिला कम से कम चार बच्चों की मां हो।
समय-समय पर दक्षिणपंथी हिंदू संगठनों के नेता, हिंदू महिलाओं को अधिक से अधिक बच्चे पैदा कर ‘राष्ट्रसेवा’ करने की सलाह देते रहे हैं। दिलचस्प यह है कि इनमें से अधिकांश वे लोग हैं जो स्वयं ‘ब्रह्मचारी’ हैं।
अगर इस्लाम के कारण भारत की मुस्लिम आबादी बढ़ रही है तो फिर पाकिस्तान और इंडोनेशिया, जिनकी मुस्लिम आबादी अभी भारत की मुस्लिम आबादी से अधिक है, में भी इस समुदाय की आबादी उतनी ही तेजी से बढ़नी चाहिए जितनी कि भारत में। जबकि भारतीय
भारत में भी देश के अलग-अलग क्षेत्रों में जनसंख्या वृद्धि दर अलग-अलग है। उदाहरणार्थ, केरल के मलाबार तट और उत्तरप्रदेश-बिहार क्षेत्र की जनसंख्या वृद्धि दरों में भारी अंतर है। हिंसाग्रस्त कश्मीर घाटी में पिछले दशक में हिंदू आबादी की वृद्धि दर, मुस्लिम आबादी से अधिक रही है।
दूसरा तर्क यह है कि मुसलमान, परिवार नियोजन के साधन नहीं अपनाते क्योंकि उनका धर्म इसका निषेध करता है। अपनी पुस्तक ‘फैमिली प्लानिंग एंड लीगेसी ऑफ इस्लाम’ (Family Planning and Legacy of Islam) (परिवार नियोजन और इस्लाम की विरासत) में काहिरा के इस्लामिक विद्वान एआर ओमरान (Islamic scholar AR Omran) इस मिथक का जोरदार खंडन करते हैं कि इस्लाम, परिवार नियोजन के विरूद्ध है। उनके अनुसार, कुरान में गर्भधारण रोकने के उपायों पर प्रतिबंध की बात कहीं नहीं कही गई है। तुर्की व इंडोनेशिया जैसे इस्लामिक देशों में परिवार नियोजन के विभिन्न तरीके काफी लोकप्रिय हैं। उदाहरणार्थ, तुर्की में प्रजनन-योग्य दंपत्तियों में से 63 प्रतिशत परिवार नियोजन के साधन अपनाते हैं और इंडोनेशिया के मामले में यह आंकड़ा 48 प्रतिशत है।
भारत में प्रजनन-योग्य आयु वर्ग के ऐसे मुस्लिम दपंत्तियों, जो परिवार नियोजन के साधन अपनाते हैं, का प्रतिशत 1970 में 9 (हिंदू: 14 प्रतिशत) और 1980 में 22.5 प्रतिशत (हिंदू: 36.1 प्रतिशत) था। ये आंकड़े सन् 1985 में बड़ौदा स्थित ओपरेशन रिसर्च ग्रुप द्वारा किए गए सर्वेक्षण पर आधारित हैं।
इनसे यह स्पष्ट है कि हिंदुओं की तरह, मुसलमान दंपत्तियों में भी परिवार नियोजन के साधन अपनाने वालों की संख्या व प्रतिशत लगभग बराबर गति से बढ़ रहे हैं।
डॉ. राकेश बसंत आईआईएम अहमदाबाद में पढ़ाते हैं और अर्थशास्त्री हैं। वे सच्चर समिति के सदस्य भी थे। उनका कहना है कि
‘‘वर्तमान में मुसलमानों की प्रजनन दर, देश की औसत प्रजनन दर से केवल 0.7 अधिक है। जहां औसत प्रजनन दर 2.9 है वहीं मुसलमानों के मामले में यह 3.6 है।’’
डॉ. राकेश कहते हैं कि देश के 37 प्रतिशत मुसलमान गर्भनिरोधकों का इस्तेमाल करते हैं जबकि भारत की आबादी में गर्भनिरोधकों का इस्तेमाल करने वालों का औसत 48 प्रतिशत है। इस प्रकार, गर्भ-निरोधकों के इस्तेमाल के मामले में मुसलमान, औसत से लगभग 10 प्रतिशत नीचे हैं। परंतु इसमें भी क्षेत्रीय विभिन्नताएं हैं।
उनकी रपट के अनुसार, शिक्षा और सामाजिक-आर्थिक विकास के साथ, गर्भनिरोधकों का इस्तेमाल बढ़ता जाता है और यह सभी समुदायों के बारे में सही है।
What is the reason that the Muslim population of the country is growing faster than Hindus
फिर आखिर क्या कारण है कि देश की मुस्लिम आबादी, हिंदुओं की तुलना में अधिक तेजी से बढ़ रही है।
Growth rate of hindu population
आइए, हम हिंदुओं की आबादी की वृद्धि दर में क्षेत्रीय विभिन्नताओं पर नजर डालें।
मोटे तौर पर उन दक्षिणी राज्यों में, जहां साक्षारता की दर अधिक है जैसे तमिलनाडु, कर्नाटक और केरल, हिंदू आबादी में वृद्धि की दर, उत्तरी राज्यों जैसे उत्तरप्रदेश, बिहार और मध्यप्रदेश से कहीं कम है।
भारत में बड़ी संख्या में मुसलमान अपने समुदायों की बस्तियों में रहते हैं और उनकी आमदनी औसत से कम है।
जैसा कि सच्चर समिति की रपट से स्पष्ट है, मुसलमानों के साथ रोजगार और व्यवसाय के अवसरों के मामले में भेदभाव किया जाता है। नतीजा यह है कि उनकी आर्थिक स्थिति या तो स्थिर है या गिर रही है। जहां एक ओर पूरा देश आर्थिक दृष्टि से संपन्न बन रहा है वहीं मुसलमानों के मामले में स्थिति उलट है।
इस असमानता व भेदभाव के अतिरिक्त, मुसलमान सांप्रदायिक हिंसा का शिकार भी बन रहे हैं, जिसके कारण उनमें असुरक्षा का भाव बढ़ रहा है और वे अपने समुदाय की बस्तियों में सिमट रहे हैं। इन सब कारणों से मुसलमान पुरातनपंथी मौलानाओं के प्रभाव में आ रहे हैं, जो उनसे यह कहते हैं कि इस्लाम, परिवार नियोजन के खिलाफ है।
भारतीय मुसलमानों का बड़ा तबका धर्मांतरित अछूत शूद्रों का है जिनकी आर्थिक स्थिति पहले से ही बहुत खराब थी। इसके अतिरिक्त, उनकी बेहतरी के लिए सरकारें कुछ खास नहीं कर रही हैं। नतीजा यह है कि इस समुदाय के कम पढ़े-लिखे वर्ग में ज्यादा बच्चों को जन्म देने की प्रवृत्ति है। इसके विपरीत, पाकिस्तान में हिंदुओं की आबादी में कमी आई है परंतु इसके एकदम अलग कारण हैं। ऐसा इसलिए हुआ है क्योंकि पाकिस्तान और बांग्लादेश के हिंदू बड़ी संख्या में भारत में बस गए हैं और यह क्रम अभी भी जारी है।
पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिंदुओं की आबादी बहुत ही कम है और वहां उनका उत्पीड़न भी किया जाता है। इसलिए भारत के मुसलमानों और पाकिस्तान व बांग्लादेश के हिंदुओं की तुलना नहीं की जा सकती। वैसे तो, पूरे दक्षिण एशिया में सांप्रदायिकता की समस्या है और भारत के धार्मिक बहुसंख्यक, पाकिस्तान और बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हैं और उत्पीड़न व अत्याचार के शिकार हैं।
जब मैं आईआईटी मुंबई में पढ़ाता था तब मैंने स्वयं यह देखा था कि चपरासियों और मेहतरों की तुलना में प्रोफेसरों के बच्चों की संख्या कम होती थी। इसी तरह, मुंबई में जो परिवार झुग्गी बस्तियों में रहते हैं-चाहे वे किसी भी धर्म के क्यों न हों-उनके तुलनात्मक रूप से अधिक बच्चे होते हैं।
अतः यह साफ है कि किसी दंपत्ति के कितने बच्चे हैं या होंगे, यह उसके धर्म पर नहीं बल्कि उसकी सामाजिक-आर्थिक-शैक्षणिक हैसियत पर निर्भर करता है।
भारतीय उपमहाद्वीप के अलग-अलग देशों में स्थितियां अलग-अलग हैं और उनका परस्पर तुलनात्मक अध्ययन नहीं किया जा सकता। जरूरत इस बात की है कि वंचित समुदायों के प्रति हम सहानुभूति और सद्भाव रखें और आबादी में वृद्धि की समस्या को सही परिप्रेक्ष्य में समझें और उसके उचित निदान के लिए कार्य करें।
राम पुनियानी
(मूल अंग्रेजी से हिन्दी रूपांतरण अमरीश हरदेनिया)
(लेखक आई.आई.टी. मुंबई में पढ़ाते थे और सन् 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं।)
Notes -
The Pew Research Center is a nonpartisan American think tank based in Washington, D.C.
Epidemiology, Family planning, Population control, Fertility rates, Population dynamics, Demographic transitions, Population planning, Economic transitions,