कोरोना महामारी ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को भी बुरी तरह प्रभावित किया है। इस महामारी से निपटने के एक उपाय के तौर पर दुनिया के बड़े हिस्से में किए गए लॉक डाउन से वायु प्रदूषण में राहत तो देखने में मिले, लेकिन अब चिंता यह सता रही है कि कोरोना त्रासदी के गुजर जाने के बाद जब दुनिया पटरी पर लौटना शुरू करेगी, तब पर्यावरण का क्या होगा ?
वित्तीय थिंक टैंक कार्बन ट्रैकर की आठ अप्रैल को जारी एक नई रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि चीन व अन्य राष्ट्र अगर वे COVID-19 महामारी के मद्देनजर अपनी अर्थव्यवस्थाओं को प्रोत्साहित करने की नई क्षमता का निर्माण करते हैं, तो वे दशकों तक पर्यावरण की शत्रु कोयला उत्पादित बिजली का उत्पादन बढ़ा सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप ग्लोबल वार्मिंग का खतरा पहले से अधिक बढ़ जाएगा।
रिपोर्ट के सह लेखक और कार्बन ट्रैकर के सह प्रमुख मैट के मुताबिक COVID-19 महामारी के बाद चीन और अन्य सरकारों को अपनी अर्थव्यवस्थाओं को ठीक करने में मदद करने के लिए कोयला बिजली में निवेश करने के लिए लुभाया जा सकता है, लेकिन यह जोखिम उच्च स्तर पर हैजो वैश्विक जलवायु लक्ष्यों को कम कर देगा।
मैट सुझाव देते हैं कि अपनी अर्थव्यवस्थाओं में अरबों का निवेश करने और नई नौकरियां पैदा करने की आवश्यकता के साथ, सरकारों को कोयले के प्लांट बंद कर स्वच्छ हरित ऊर्जा के विस्तार की योजना बनानी चाहिए।
जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के इंटरगवर्नमेंटल पैनल (आईपीसीसी) के हालिया शोध के विश्लेषण के अनुसार, ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के लिए आगामी वर्ष 2030 तक बिजली उत्पादन में वैश्विक कोयले का उपयोग तक 80% तक गिरना चाहिए।
अंतर्राष्ट्रीय नवीकरणीय ऊर्जा एजेंसी, इरैना के अनुसार, वैश्विक ऊर्जा प्रणाली का डीकार्बोनाइजेशन वैश्विक अर्थव्यवस्था
कार्बन ट्रैकर की रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन को 206GW क्षमता के नए कोयला आधारित पॉवर प्लांट्स पर 158 बिलियन डॉलर खर्च करने की योजना पर पुनर्विचार करना चाहिए क्योंकि "अक्षय ऊर्जा और बैटरी भंडारण आर्थिक विकास के अधिक व्यवहार्य और स्थायी स्रोत हैं"।
अमलेन्दु उपाध्याय