हम भारत के लोग.... (WE, THE PEOPLE OF INDIA,) इन्हीं शब्दों के साथ आरम्भ होता है हमारा संविधान...!
.संविधान ...!
..जिसने हमें सभी प्रकार की स्वतंत्रता प्रदान की है...व्यवसाय की स्वतंत्रता ...खरीदने बेचने के स्वतंत्रता... इस स्वतंत्रता का हमारे पूर्वजों से लेकर अब तक खूब जोर-शोर से पालन भी हो रहा है...।
जिस नायक ने हमें अंग्रेजी राज से आजादी दिलाने में अग्रणी भूमिका निभाई.. उस गांधी का नाम सबसे पहले बेचा गया...!
इसे सिर्फ हिन्दुस्तानियो ने ही नहीं बेचा उन फिरंगियों ने भी बेचा जो इसकी लाठी और सादगी देखकर भाग खड़े हुए थे..!
अब दौर बदल गया तो बेचने के लिए नए नए उत्पाद तलाश किये जाने लगे हैं.. चूंकि "गांधी" अब पुराना ब्रांड हो गया है सो नए ब्रांड के रुप में उसके हत्यारे को बेचा जाने का उपक्रम बनाया जा रहा है।
कारण..?
उत्पादों को बेचते बेचते आज हम इस मुकाम पर आ पहुंचे है कि खलनायकों को भी राष्ट्रीय नायक के समतुल्य बनाने पर आमादा हैं..!
'द मैन हु किल्ड गांधी' के इस पोस्टर में गांधी के साथ उसके हत्यारे
क्या यह देश कुरआन की आयतों के साथ शैतान की आयतों को बर्दाश्त कर सकता है..?
क्या यह देश बुद्ध के चेहरे के साथ आतंक का चेहरा बर्दाश्त कर सकता है..?
आखिर बाजारवाद का यह सिलसिला हमें कहाँ तक ले जायेगा..?
आखिर.... हम भारत के लोग...अपने नायकों की बेचते बेचते खलनायकों को भी बेचने पर क्यों आमादा हैं..?
डॉ. अशोक विष्णु शुक्ला
(पी.सी.एस.पूर्व अपर जिलाधिकारी, हाथरस)