गरीबों को प्राविधिक शिक्षा से बाहर कर उन्हें आज का एकलव्य बनाने का रास्ता उत्तर प्रदेश सरकार ने तैयार कर दिया है। विश्वगुरु बनाने के नारे और उसको लागू करने के खोखलेपन ने उत्तर प्रदेश सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया है। मामला 40 आईटीआई के निजीकरण (Privatization of 40 ITIs) का है।
प्रदेश में पहले ही प्राइवेट के मुक़ाबले सरकारी आईटीआई की संख्या नगण्य है। 2931 निजी तो 307 पुरुष सरकारी और 12 महिला आईटीआई प्रदेश भर में संचालित हैं। अब इनमें से 40 का निजीकरण किया जा रहा है। पहले चरण में 16 और दूसरे चरण में 24 के निजीकरण का खाका तैयार किया जा चुका है।
निजीकरण के लिये गुणवत्ता सुधारने का तर्क दिया जा रहा है। ये कितना भौंथरा है इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि प्रदेश के तमाम प्राइवेट आईटीआई में उपयुक्त इमारत नहीं है। प्रयोगशाला और महंगे उपकरणों की बात तो जाने ही दीजिये। शिक्षकों के नाम पर वहाँ एक सूची मात्र है और वेतन कागजों पर वितरित कर दिया जाता है। हां, उपयुक्त राशि दे कर छात्रों को पास कराने की गारंटी वहां रहती है।
नए सत्र में प्रवेश इन्हीं निजीकृत आईटीआई में होगा जिसकी फीस 54 गुना तक ज्यादा होगी। अभी रुपए 480 सालाना से बढ़ कर फीस 26 हजार तक हो जायेगी। जो गरीब छात्र अभी 480 रुपये भरने में असमर्थ हैं, वे 26 हजार रुपये कहाँ से लायेंगे पता नहीं। उधर प्राइवेट लाबी को अरबों रुपए कीमत का बना बनाया स्ट्रक्चर कौड़ी कीमत पर हासिल हो जायेगा। इसमें भ्रष्टाचार
क्या आत्मनिर्भरता का मोदी-मंत्र गरीबों के लिये उलटा पड़ने वाला है? कोरोना काल में गरीबों के सहारा बने संस्थानों को बेच कर आपदा को अवसर में बदला जा रहा है। आईटीआई के निजीकरण के फैसले से तो यही साबित होता है।
हम प्रदेश के मुख्यमंत्री से अपील करते हैं कि गरीबों को प्राविधिक शिक्षा के हक से वंचित करने के इस फैसले को पलट दें। हम गरीबों के हक में आवाज उठाने का संकल्प लेते हैं, और आप से भी अपील करते हैं कि अपनी आवाज उठायें और गरीबों का सहारा बनें।
जो भी इस मुहिम का भाग बनना चाहते हैं, कम से कम एक चिट्ठी प्रदेश के मुखिया को तत्काल प्रेषित करें। अपनी क्रिया को मीडिया और सोशल मीडिया तक जरूर पहुंचायें। इंसान के जीवन की सार्थकता जरूरतमंदों के हक में आवाज उठाने में है, किसी ढिंढोरची के कहने पर थाली- ताली बजाने में नहीं।
डॉ. गिरीश
लेखक भाकपा की उत्तर प्रदेश इकाई के सचिव हैं।