Hastakshep.com-आपकी नज़र-video-video-कठपुतली-ktthputlii

निरे बचपने की बात है यारों ...

है याद ज़रा धुँधली-धुँधली ..

गिल्ली डंडा कंचों का दौर..

और सिनेमा सी कठपुतली ...

पुतलकार के हाथ की थिरकन ..

थिरकते थे किरदार ..

इक उँगली पे राजा थिरके ..

इक उँगली सरदार ..

राजा महाराजा के क़िस्से ऊँट घोड़े और रानी ..

नाज़ुक धागों में सिमटी थी जाने कितनी कहानी ...

उँगली पकड़-पकड़ कर उतरा करते थे  अल्फ़ाज़ ..

रंग बिरंगी पोशाक सजी वो टी टी की आवाज़ ...

एक हाथ से लहंगा पकड़े..

एक हाथ उचकाये ...

फिरकी सी घूमे थी बाबरी ठुमके ख़ूब लगाये ...

रंग बिरंगे वो पटोले जादू कई जगाते थे ..

थे तो मामूली काठ के ..

पर राजमहल ले जाते थे ...

फिर रानी के इश्क़ में खोया राजा गीत  सुनाता था ..

सौंधे-सौंधे उन गीतों  को हर दर्शक दोहराता था ....

रूठ जाती थी जब रानी तो दिल छोटे होते थे ...

हम भी निरे पागल थे काठ के संग रोते थे ...

फिर रणभेरियाँ बजती थीं ..

युद्ध कई छिड़ जाते थे ..

तन जाती थी भवें हमारी जब पुतले तलवार चलाते थे ...

राजा हारे तो डर जाना ...

हम बच्चों के मुँह उतर जाना ...

फिर झट से बाज़ी पलटती थी ..

दुश्मन की गरदन कटती थी ...

भर जाता था हममे भी जोश ...

करते थे सब जय जय का घोष ....

फिर राजमहल में दीप जलाकर घर  हमारा लौट आना ...

और किरदारों का पलकों में चोरी चोरी छुप जाना ...

सिरहाने रातों के जब ..

नींद लोरियाँ गाती थी ख़्वाबों की दुनिया में वो कठपुतली छा जाती थी ...

जादू के उन लम्हों में हम दिनों-दिनों तक रहते थे ...

जो भी मिलता उससे बस कठपुतली की दास्तां कहते थे ...

वक़्त बदला इक मोबाइल बच्चों के खिलौने तोड़ गया ..

और बिना शोर  के गिल्ली डंडा गली मुहल्ला छोड़ गया ...

प्राप्ति के समय से ही छात्र राजनीति से जुड़ी रही हैं।" width="740" height="298" /> डॉ. कविता अरोरा (Dr. Kavita Arora) कवयित्री हैं, महिला अधिकारों के लिए लड़ने वाली समाजसेविका हैं और लोकगायिका हैं। समाजशास्त्र से परास्नातक और पीएचडी डॉ. कविता अरोरा शिक्षा प्राप्ति के समय से ही छात्र राजनीति से जुड़ी रही हैं।

नये दौर की चमक तेज़ थी लोग वहीं को दौड़ गये ...

और अंधेरे में बेचारी कठपुतली को छोड़ गये ..

लौटेंगे सब इस उम्मीद पर जाने कब तक अड़ी रही ..

दिया जलाये दिनों दिनों तक दरवज्जे पर खड़ी रही ..

खंडहर राजमहल के गीतों से ना फिर ना किसी की प्रीत रही ...

कोई ना पलटा, ना फिर सोचा ..

कठपुतली पर क्या बीत रही ....

कि हार कर कठपुतली ने दरवज्जे का मुँह मोड़ दिया ..

हुई बक्से में बंद ऐसी कि धागों पे थिरकना छोड़ दिया ..

डॉ. कविता अरोरा