राजस्थान के राजसमंद में एक धार्मिक आतंकवादी (Religious terrorist) ने जिस प्रकार से एक बुजुर्ग मजदूर को धोखे से काम के लिए बुलाकर उसकी निर्ममता से हत्या की, उसकी पीठ पर वार किया गया, उसके अंगों को बड़ी बेहरमी से काटा गया फिर उसको जलाया गया। उसके बाद जिस निडरता से कातिल ने कत्ल करने के पिछे का राज बताया, हत्या को जायज ठहराने के लिए जिस प्रकार कातिल ने महाराणा प्रताप को कोट किया, जय मेवाड़, जय भारत, जय हिंद का नारा दिया। मन्दिर में वीडियो को बनाना औऱ भगवा रंग, ये सब उस धर्म के जहर का असर है जिसे धीरे-धीरे हिंदुत्व की सिरिंज से चढ़ाया गया है। ऐसे लोगो को आदमखोर जानवर धीरे-धीरे हिंदुत्ववादी आंतकवादियों ने बनाया है।
कोई भी इन्सान या समाज आदमखोर एक दम नहीं बन जाता इसके लिए धार्मिक आंतकवादी बहुत लंबे समय से काम कर रहे होते हैं।
भारत की आजादी के आंदोलन में जहाँ बहुत बड़ा तबका देश को आजाद करवाने के लिए अंग्रेजों के खिलाफ मजबूती से लड़ रहा था। शहीद भगत सिंह और उनके साथियों ने देश की ही नही, पूरी मानव जाति की आजादी के लिए 1928 में जहाँ हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (HSRA) का गठन किया। जिसने मानव मुक्ति के लिए संघर्ष का आह्वान किया। वहीं दूसरी तरफ भारत में अंग्रेजों की मदद से आजादी के आन्दोलन और HSRA के खिलाफ मुस्लिम और हिंदुत्ववादी संगठनों को मजबूत किया गया। जिनका मुख्य एजेंडा ही मानव मुक्ति के संघर्ष की बुनियाद मेहनतकश आवाम की एकता को तोड़ने के लिए भारतीय समाज में धर्म-जात-इलाका के नाम पर लोगो को बांटना था। इस मुहिम में वो कामयाब भी रहे।
गोडसे जिसको धर्म के जहर ने धीरे-धीरे आदमखोर जानवर
एक आदमी जान-बूझकर, सोच-समझकर अपने हाथों से हत्या करता है और उसके चेहरे पर शिकन तक नहीं है। ये धार्मिक पागलपन है औऱ ये कोई पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी यहाँ दलितो, मुस्लिमो, सिखों व आदिवासियों के नरसंहार हुए है। बस वीडियो अब बनने लगे हैं।
हरियाणा के झज्झर जिले के दुलीना में 5 दलितो को इसलिए जिंदा जला दिया गया था क्योंकि वो मरे हुए पशुओं को उठाकर उनकी खाल उतारने का काम करते थे। उस दिन भी वो मरी हुई गायों की खाल उतार कर अपने घर जा रहे थे। इस काम का उनके पास सरकारी मंजूरी भी थी लेकिन आदमखोरों ने उनको घेर लिया और धर्म के नाम पर जिंदा जला दिया।
ऐसे ही मिर्चपुर में अंधे बुजुर्ग ओर उसकी अपँग बेटी को भीड़ ने जला दिया था। दादरी के अखलाक, जुनैद औऱ अलवर के पास हुई किसान पहलू खान की इन आदमखोरों द्वारा हत्यायें इसी धार्मिक जहर का असर है। लेकिन जब ये आदमखोर जानवर अपना शिकार करते हैं, तो बाकी आवाम की चुप्पी ये साबित करती है कि आप भी इस धर्म के जहर के प्रभाव में वहसी दरिंदे बनने की तरफ बढ़ रहे हो।
धार्मिक आतंकवादी इन सभी हत्यायों के बाद जश्न मनाते हैं, हत्या के पक्ष में दलील देते हैं और हत्यारों को सम्मानित करते हैं। आप ऐसे धार्मिक आतंकवादियों के समर्थन में जय जयकार करते हो या चुप रहते हो। आपकी जय जयकार या चुप्पी आपकी आने वाली नस्लों को आदमखोर जानवर बना देगी। फिर इंसानी बस्ती होने की बजाए आदमखोरों की बस्ती होगी। उस समय इंसानी मूल्य, सिंद्धान्त, मानवता सब खत्म हो जायेगें। इसलिए अभी भी समय है अगर हमें इंसानी सभ्यता को बचाना है तो खुद के धर्म के इन धार्मिक आंतकवादियों का नाश करना पड़ेगा। धर्म-जात-इलाका से ऊपर उठकर हमे मेहनतकश आवाम की एकता स्थापित करनी होगी। क्योंकि लुटेरी मण्डली का ये सारा खेल ही इस एकता को तोड़ने के लिए है।
भारत में ही नही पूरे विश्व मे जब भी मेहनतकश मानव मुक्ति के लिए एकजुट होना शुरू करता है तो सामंतवादी, पूंजीवादी लुटेरी मण्डली धर्म-जात-इलाका औऱ अंधराष्ट्रवाद के नाम पर लोगों को बांटने का काम करती है। अल्पसंख्यकों, दलितों, आदिवासियों को दुश्मन के तौर पर बहुसंख्यक आबादी के सामने पेश करती है और अल्पसंख्यकों, दलितों, आदिवासियों पर हमले करने के लिए बहुसंख्यक आबादी को तैयार करती है। पूरी दुनिया में साम्राज्यवादी सत्ताएँ पिछले दरवाजे से इनको संचालित करती हैं। तालिबान, अलक़ायदा, isisi, भारत मे हिंदुत्ववादी आंतकवादी इन सब के पीछे साम्राज्यवादी खेमा मजबूती से खड़ा है। जो इनको फंडिंग करता है।
बहुत पहले हॉलीवुड की एक फ़िल्म रॉंग टर्न फ़िल्म देखी थी। रॉंग टर्न का मतलब होता है "गलत रास्ता"।
इस फ़िल्म की कई सीरीज मार्किट में आईं। ये सभी सीरीज इतनी डरावनी औऱ हॉरर थी कि अकेला आदमी शायद न देख सके। फ़िल्म में कहानी ये है कि कुछ वैज्ञानिक गरीब लोगों पर बिना सरकार की इजाजत लिए दवाइयों का प्रयोग करते हैं। ऐसी दवाइयों का प्रयोग जो मानव हित मे न होकर मानव की बर्बादी की तरफ जाता है। जिन इंसानों पर ये प्रयोग किये जाते हैं वो सब उन दवाइयों के कारण विकृत हालात में चले जाते हैं, वो आदमखोर बन जाते हैं। वो उस प्रयोगशाला से इन सभी को मार कर भाग जाते हैं। अब वो आदमखोर जहां भी जाते हैं, वहाँ-वहाँ वो मानव जाति का सर्वनाश करते हैं, उनको खा जाते हैं। अब वो जंगल में रहते हैं जहाँ रहते हैं, वहाँ आस-पास वो मानव जाति को खत्म कर देते हैं। अब कोई भी शख्स गलती से रास्ता भूल कर उनकी बस्ती की तरफ चल जाता है तो उस इंसान का खात्मा वो बड़ी बेहरमी से कर देते हैं, जैसे कुल्हाड़ी, दरांत से काट देना जैसे लकड़ी को काटा हो।
उस फिल्म को देख कर जो मेरी समीक्षा बनी वो ये थी कि वो सभी आदमखोर मानवता के लिए इतना बड़ा खतरा नहीं हैं न वो बड़े दोषी हैं, लेकिन वो आदमखोर बन चुके हैं तो उनका इलाज जरूरी है। लेकिन सबसे बड़ा खतरा वो डॉ या वज्ञानिक हैं, जिन्होंने अपने फायदे के लिए साधारण इंसानों को आदमखोर बनाया। उनका खात्मा सबसे ज्यादा जरूरी है ताकि नए आदमखोर पैदा होने से समाज को बचाजा सके। हमें इन्हें देखकर निराश नहीं होना है। उम्मीद अब भी बची हुई है, हम ये सब रोक सकते हैं। वक्त रहते कुछ लिख-पढ़ लें, अपनी सोच का दायरा बढ़ा लें, लोगों से बात करें, तो इस पागलपन को हम आसानी से रोक देंगे।
राजसमंद की इस घटना को टाला जा सकता था, अगर समय रहते ऐसे आदमखोर की पहचान हो जाती तो उसका समय पर इलाज करवाया जा सकता था। इसलिए आज आप अपने आस-पास ऐसे धार्मिक आतंकवादियों की पहचान कीजिये जो साधारण इंसानों को धर्म के नाम पर वहशी जानवर बना रहे हैं, मानव बम बना रहे हैं। ऐसे आतंकवादियों को जितना जल्दी खदेड़ दोगे आप खुद को और मानव जाति के वर्तमान व भविष्य को सुरक्षित बना पाओगे। मानवता के लिए आज सबसे बड़ा दुश्मन साम्रज्यवाद, उसके दलाल धार्मिक आंतकवादी और ये आदमखोर जानवर हैं। मानव सभ्यता बचाने औऱ मानव मुक्ति के लिए मेहनतकश आवाम का पहला काम इन तीनों ताकतों का सफाया करना जरूरी है।