Hastakshep.com-आपकी नज़र-Latest-latest-अयोध्या में राममंदिर का निर्माण-ayodhyaa-men-raammndir-kaa-nirmaann-आपकी नज़र-aapkii-njr-स्तंभ-stnbh-सोमनाथ मंदिर का इतिहास-somnaath-mndir-kaa-itihaas-सोमनाथ मंदिर-somnaath-mndir-हस्तक्षेप-hstkssep

आरएसएस के प्रचारक, धुर-संघी नरेन्द्र मोदी के निजी नेतृत्व में चल रही आरएसएस-भाजपा की मौजूदा सरकार 138 करोड़ भारतीयों (जिनमें से लगभग 80 प्रतिशत हिंदू हैं) को रोजगार, शिक्षा, सुरक्षा और शांति देने में तो बुरी तरह से नाकामयाब है, लेकिन देशवासियों का मन बहलाने के लिए 5 (2020) अगस्त को उसके पास एक शुभ समाचार था। किसी मध्यकालीन राजा की वेशभूषा में, एक हिन्दू ऋषि दिखने की कामना लिए, केसरिया लबादा लपेटे प्रधानमंत्री ने अयोध्या में राम मंदिर की आधारशिला रखते हुए ऐलान किया कि दुनिया भर के हिंदुओं की चिरप्रतिक्षित अभिलाषा आखिरकार पूरी हुई, भगवान राम की जन्मभूमि जिसे नष्ट करने के लिए सैकड़ों साल से कोशशें की जा रही थीं, आखिरकार वह मुक्त हो गयी।

बकौल मोदी के मंदिर की नींव में जिस क्षण आधारशिला रखी जा रही थी, भारत  एक "सुनहरा अध्याय" लिख रहा था।

यह समझना जरा भी मुश्किल नहीं था कि भारत से मतलब ख़ुद वे थे।  उन्होंने ऐलान किया कि "आज, राम जन्मभूमि सदियों से चले आ रहे विध्वंस और पुनरुत्थान के चक्र से मुक्त हो गई।"

< Https://indianexpress.com/article/india/ram-mandir-bhumi-pujan-full-text-of-pm-narendra-modis-speech-in-ayodhya/ >

गोस्वामी तुलसीदास पर प्रश्नचिन्ह

हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अक्सर झूठ बोलते पाये जाते हैं। बाबरी मस्जिद के निर्माण के लिए राम जन्म-स्थान मंदिर के विध्वंस को लेकर भी उन्होंने झूठ का सहारा लिया। उन्होंने इस बारे में जो कहा वह आरएसएस की शाखाओं में गढ़े 'सच' हैं जिनका इतिहास के समकालीन 'हिन्दू' दस्तावेज़ों और स्रोतों में भी वर्णन नहीं है। उन के अनुसार, अयोध्या ने राम मंदिर को लेकर हिंदू और मुसलमानों के बीच लगभग पांच शताब्दियों तक लगातार युद्ध चला आ रहा था।

विरोधियों (मुसलमानों) पर जीत की शेखी बघारते समय, मोदी ने अवधी भाषा में रचित, गोस्वामी तुलसीदास के महाकाव्य 'श्रीरामचरितमानस' को पूरी तरह दरकिनार कर दिया। यह वही महाकाव्य है, जिसने भगवान राम की कहानी को लोकप्रिय करके हर हिंदू के मन-मंदिर में प्रतिष्ठित किया

है, विशेषकर उत्तरी भारत में। गोस्वामी तुलसीदास ने 1575-76 में इस महाकाव्य की रचना की थी। हिंदुत्ववादियों के दावे के अनुसार राम जन्म-स्थान मंदिर 1538-1539 के दौरान नष्ट किया गया था। तब, राम जन्मस्थान मंदिर के कथित विध्वंस के लगभग 37 साल बाद लिखे गए 'श्रीरामचरितमानस' में इस विध्वंस का उल्लेख होना चाहिए था। लेकिन 'श्रीरामचरितमानस' में ऐसा कोई जिक्र नहीं है।

यह सब करके क्या हिंदुत्व के ठेकेदार, जिन की अगुवाई मोदी कर रहे हैं, यह जतलाने की कोशिश कर रहे हैं कि राम और उनके 'दरबार' के सबसे बड़े कथाकार और भक्त तुलसीदास ने अपनी इस ऐतिहासिक रचना में जानबूझ कर सत्य नहीं बताया ? क्या यह गोस्वामी तुलसीदास की विश्वसनीयता पर सवाल उठाने की कोशिश नहीं है?

क्या हिंदुत्व के ठेकेदार यह कहने की कोशिश कर रहे हैं कि गोस्वामी तुलसीदास राम के जन्म-स्थान पर मंदिर के विध्वंस के विषय पर किसी प्रच्छन्न उद्देश्य से मौन रह गये?

यहाँ यह जानना भी मुनासिब होगा कि गोस्वामी तुलसीदास के 3 क़रीबी लोगों ने उनकी जीवनियां लिखीं हैं, लेकिन उनमें भी राम जन्म-स्थान पर किसी मस्जिद के बनाए जाने का ज़िक्र नहीं है।

सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की अवमानना | Contempt of Supreme Court decision

राम जन्मभूमि "विध्वंस और पुनरुत्थान की सदियों पुरानी श्रृंखला से मुक्त हुर्इ", यह दावा करके प्रधानमंत्री अयोध्या पर 9 नवंबर, 2019 को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले की खुले-आम धज्जियाँ उड़ा रहे थे। अपने इस निर्णय में न्यायालय ने कहा है, बाबरी मस्जिद का निर्माण किसी भी मंदिर को ध्वस्त कर नहीं किया गया था। 22/23 दिसंबर 1949 की मध्यरात्रि को राम लला की मूर्ति रखना गैरकानूनी था और 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद का विध्वंस "कानून के शासन का उद्दंड उल्लंघन" था।

इसी फैसले में यह तथ्य भी रेखांकित किया गया है कि "मुसलमानों को गलत तरीके से एक मस्जिद से वंचित किया गया है जो 450 साल पहले बाकायदा निर्मित की गर्इ थी"।

दरहकीकत, अयोध्या में प्रधानमंत्री के भाषण के लिए न्यायालय में उनके खिलाफ न्यायिक अवमानना का मुकदमा चल सकता है।

< Https://scroll.in/article/943337/no-the-supreme-court-did-not-uphold-the-claim-that-babri-masjid-was-built-by-demolishing-a-temple  >

हमने देखा कि कैसे एक बेबुनियाद और ग़ैर-ऐतिहासिक मनगढ़ंत कथा के आधार पर बाबरी मस्जिद की जगह भव्य राम मंदिर बनाया जा रहा है। नरेन्द्र मोदी की आरएसएस-भाजपा सरकार का दावा है कि वह अतीत की गलतियों को दुरुस्त करने के लिए प्रतिबद्ध है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस से जुड़े कई गंभीर पहलू हैं जिन को नज़र अंदाज़ नहीं किया जा सकता है।

इस की सब से बड़ी समस्या यह है कि भारतीय सभ्यता, जिसे खुद आरएसएस कम-से-कम 5000 साल पुरानी बताता है, उसमें से केवल 700-800 का काल

आइए हम देश के इतिहास में की गयी नाइंसाफ़ियों के बारे में स्वयं 'हिन्दू' स्रोत क्या बताते हैं उनका जायज़ा लेते हैं।

इस सन्दर्भ में आरएसएस/हिंदुत्व के सबसे महत्वपूर्ण विचारक और आरएसएस के दूसरे प्रमुख, एम. एस गोलवलकर ने महमूद गजनी द्वारा 1025-26 में सोमनाथ मंदिर को नष्ट करने के बारे में क्या लिखा था उसे जानना ज़रूरी है, उनके अनुसार :

‘‘एक हजार वर्ष पहले हमारे लोगों ने हम पर आक्रमण करने के लिए विदेशीयों को आमंत्रित किया। आज भी ऐसा ही खतरा हमारे ऊपर मंडरा रहा है। कैसे सोमनाथ के भव्य मंदिर को अपवित्र किया गया एवं ध्वस्त किया गया, यह तो इतिहास की बात हो चुकी है। महमूद गाजी ने सोमनाथ की संपत्ति एवं वैभव के बारे में सुना था। उसने ख़ैबर दर्रे को पार किया और सोमनाथ की संपदा को लूटने के लिए भारत में अपना पैर रखा। उसे रेगिस्तान के भारी जंगल को पार करना पड़ा। एक ऐसा समय भी था जब उसके पास अपनी सेना के लिए और अपने लिए भी भोजन एवं पानी नहीं था, उसे अपनी नियति पर छोड़ दिया गया होता तो वह खत्म हो गया होता और राजस्थान के जलते बालू (रेत) ने उसकी हड्डियों को जलाकर ख़ाक कर दिया होता। लेकिन नहीं, महमूद गज़नी ने स्थानीय सरदारों को यह विश्वास दिला दिया कि सौराष्ट्र के शासक उनके खिलाफ विस्तारवादी इरादा रखते हैं, उन्होंने अपनी मूर्खता तथा संकीर्णता के चलते उस पर विश्वास कर लिया और वे उसके साथ हो लिये। जब महमूद गाजी ने महान मंदिर पर हमला किया तो वे हिन्दू थे, हमारे रक्त के रक्त, हमारे हाड़-मांस, हमारी आत्मा की आत्मा जो उसकी सेना के हिरावल थे। सोमनाथ को हिन्दुओं के सक्रिय सहयोग से अपवित्र किया गया। ये इतिहास के तथ्य हैं।"

 

यदि आरएसएस-भाजपा सरकार भारत के अतीत में की गर्इ धार्मिक नाइंसाफियों को दुरुस्त करने को लेकर सचमुच संजीदा हैं, तो उन्हें पुरी में जगन्नाथ मंदिर को बौद्धों को सौंपने के लिए काम तत्काल शुरू कर देना चाहिए।

स्वामी विवेकानंद को आरएसएस हिंदुत्व की राजनीति और पुनरुत्थानवादी हिंदू भारत का पथप्रदर्शक मानता है। भारत के महान अतीत के बारे उन्होंने बहुत कुछ बताया है। उन्होंने स्पष्ट शब्दों कहा है कि पुरी का जगन्नाथ मंदिर मूल रूप से एक बौद्ध मंदिर था। उनकी स्वीकारोक्ति के अनुसार,

"किसी भी व्यक्ति के लिए जो भारतीय इतिहास के बारे में जानता है...जगन्नाथ एक प्राचीन बौद्ध मंदिर है। हमने इसे और अन्यों को अपने नियंत्रण में ले लिया एवं उनका हिन्दूकरण कर दिया। हमें अभी उसकी तरह के अनेक काम करने होंगे।"

हिंदुत्व टोली के एक और बहुत प्यारे बंकिम चंद्र चटर्जी

"जनरल कनिंघम द्वारा 'भिल्सा टॉप्स' नामक अपने ग्रंथ में रथ उत्सव (जगन्नाथ मंदिर से संबंधित) की उत्पत्ति के बारे में जो विवरण दिया है उस संदर्भ में मुझे एक और अत्यंत प्रमाणित कथा ज्ञात है। इसमें वे बौद्धों के इसी प्रकार के उत्सव के बारे में बताते हैं, जिसमें बौद्ध धर्म के तीन प्रतीक, बुद्ध, धर्ममा और संघ, इसी रूप में एक वाहन में दर्शाए गए थे, और मैं समझाता हूं कि समय भी वही है, जब रथ (यात्रा) निकलती है। इस व्याख्या के समर्थन में एक तथ्य है कि जगन्नाथ, बालराम, और सुभद्रा, जिनकी झांकी अब रथ में प्रदर्शित होती हैं, बुद्ध, धर्ममा और संघ की ही लग-भग नक़ल हैं।"

दरअसल, केवल पुरी मंदिर ही नहीं है जिस का हिन्दुकरण किया गया। आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती ने 'सत्यार्थ प्रकाश' में शंकराचार्य का यशगान करते हुए बताया:

"दस वर्ष उन्होंने (शंकराचार्य ने) देश भ्रमण किया, जैन धर्म का खंडन किया और वैदिक धर्म का प्रसार किया। धरती में से जो भी खंडित मूर्तियां खोद कर निकाली जाती हैं, शंकर के काल में तोड़ी गयी थीं और खुदाई के दौरान जहां अखंडित मूर्तियां यहाँ-वहां निकलती हैं, तोड़े जाने के डर से जैनियों (जैन धर्म छोड़ चुके) ने ही जमीन में गाड़ दी थीं।"

(SATYARTH PRAKSHBY Swami Dayanand Sarswati, chapter  xi, p. 347.)

हिंदुत्ववादी शासक, जो बौद्ध और जैन धर्म जैसे धर्मों को स्वदेशी मानकर अपनत्व जतलाया करते हैं, उन्हें चाहिए कि जैन मंदिरों और बौद्ध विहारों को जल्द से जल्द उनके धर्मावलंबियों को सौंपने की शुरुआत करें।

शम्सुल इस्लाम

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