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Ranjan Gogoi and 'India Today' Conclave

राज्य सभा की सीट के अनैतिक सौदे से दुबके हुए सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई (Former Chief Justice of Supreme Court of India Ranjan Gogoi) के लिए इंडिया टुडे’ का कोलकाता कनक्लेव (Kolkata Conclave of 'India Today') किसी मुक्ति पर्व से कम नहीं था। इसके लिए उन्होंने प्रश्नकर्ता कौशिक डेका को धन्यवाद भी दिया।

पर उनकी यह दलील कि रामजन्मभूमि और राफ़ेल की तरह के मामलों पर राय लिखने वाले जज को अगर सौदा करना होता तो वह एक मामूली राज्य सभा की सीट का सौदा नहीं होता, उनके इन फ़ैसलों को सही नहीं बना देती है।

विचार नहीं, शुद्ध पक्षपात था रामजन्मभूमि के बारे में रंजन गोगोई का फ़ैसला

संविधान के निदेशक सिद्धांतों और संपत्ति के मालिकाना हक़ के सारे क़ानूनों को ताक पर रख कर रामजन्मभूमि के बारे में उनका फ़ैसला एक सरासर अन्याय और आरएसएस के ‘हिंदू राष्ट्र’ के संविधान-विरोधी एजेंडा को आगे बढ़ाने का फ़ैसला था। यह विचार नहीं, शुद्ध पक्षपात था।

राफ़ेल की ख़रीद में भ्रष्टाचार के विषय में उनकी यह दलील कि भारत के किसी भवन-निर्माण के ठेके और एक लड़ाकू विमान के सौदे पर विचार का एक ही मानदंड नहीं हो सकता है, भी एक लचर दलील थी। जब विषय सार्वजनिक ख़ज़ाने के खर्च के तरीक़े का हो, तो उसमें मनमाने ढंग से विषयवार भेद-भाव अनैतिक है। ऐसे सभी सौदे के हर पहलू के पीछे ठोस और साफ़ तर्कों का होना ज़रूरी है।

वह न्याय स्वाभाविक संदेह पैदा करता है, जो दिखाई नहीं देता

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रंजन गोगोई के ये दोनों फ़ैसले ऐसे थे जिनसे न्याय-अन्याय के भेद का पता नहीं चलता है। जो न्याय दिखाई नहीं देता, वह स्वाभाविक संदेह पैदा करता है।

एनआरसी और सीएए को शुद्ध राजनीतिक खेल के विषय बता कर ही उन्होंने इस साक्षात्कार में कुछ नैतिक शक्ति हासिल की और वे अंत में यह कह पाए कि वे किसी भी राजनीतिक दल से जुड़े व्यक्ति नहीं हैं; राज्य सभा से वे न एक पैसे का लाभ ले रहे हैं और इसकी सदस्यता भी उनकी आगे की इच्छा पर निर्भर है। 

अन्यथा उनकी सारी बातें संविधान के व्यापक परिप्रेक्ष्य, अर्थात् निदेशक सिद्धांतों की रोशनी में विचार की सृजनात्मकता के बजाय ‘वक्त की ज़रूरत’ के यथास्थितिवादी दलदल में धंसी हुई बातें ही रह जाती।

अरुण माहेश्वरी

Arun Maheshwari - अरुण माहेश्वरी, लेखक सुप्रसिद्ध मार्क्सवादी आलोचक, सामाजिक-आर्थिक विषयों के टिप्पणीकार एवं पत्रकार हैं। छात्र जीवन से ही मार्क्सवादी राजनीति और साहित्य-आन्दोलन से जुड़ाव और सी.पी.आई.(एम.) के मुखपत्र ‘स्वाधीनता’ से सम्बद्ध। साहित्यिक पत्रिका ‘कलम’ का सम्पादन। जनवादी लेखक संघ के केन्द्रीय सचिव एवं पश्चिम बंगाल के राज्य सचिव। वह हस्तक्षेप के सम्मानित स्तंभकार हैं।
Arun Maheshwari - अरुण माहेश्वरी, लेखक सुप्रसिद्ध मार्क्सवादी आलोचक, सामाजिक-आर्थिक विषयों के टिप्पणीकार एवं पत्रकार हैं। छात्र जीवन से ही मार्क्सवादी राजनीति और साहित्य-आन्दोलन से जुड़ाव और सी.पी.आई.(एम.) के मुखपत्र ‘स्वाधीनता’ से सम्बद्ध। साहित्यिक पत्रिका ‘कलम’ का सम्पादन। जनवादी लेखक संघ के केन्द्रीय सचिव एवं पश्चिम बंगाल के राज्य सचिव। वह हस्तक्षेप के सम्मानित स्तंभकार हैं।

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