मोदी का आत्मनिर्भर कैसे आत्म-विनाश का कार्यक्रम है, इसे विश्व अर्थ-व्यवस्था के एक तिहाई हिस्से का प्रतिनिधित्व करने वाले 15 देशों के बीच रीजनल कंप्रिहेंसिव इकोनोमिक पार्टनरशिप- Regional Comprehensive Economic Partnership (आरसेप) वाणिज्य संधि में भारत के न शामिल होने से अच्छी तरह से समझा जा सकता है। कल, 15 नवंबर को ही पूरी हुई यह स्वतंत्र वाणिज्य संधि आज की दुनिया में सबसे बड़ी स्वतंत्र वाणिज्य संधि है। इसमें शामिल 15 देशों में दक्षिण-पूर्व एशिया के देशों के संगठन आसियान के दस देशों के अलावा दक्षिण कोरिया, चीन, जापान, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड भी शामिल है।
दुनिया की इतनी महत्वपूर्ण क्षेत्रीय वाणिज्य संधियों से भारत ने अपने को अलग रख कर कौन सी बुद्धिमानी का परिचय दिया है, इसे मोदी के सिवाय शायद ही दूसरा कोई जानता होगा। इतना जरूर जाहिर है कि इसके मूल में
कहना न होगा, मोदी का यह फ़ैसला भारतीय अर्थ-व्यवस्था के विकास की संभावनाओं पर ही रोक लगा देने की तरह का एक चरम आत्मघाती फ़ैसला साबित होगा। नोटबंदी, विकृत जीएसटी की श्रृंखला में ही यह निर्णय भी अमेरिकी इशारों पर भारतीय अर्थ-व्यवस्था की तबाही का एक और फ़ैसला है।
अरुण माहेश्वरी