नई दिल्ली, 21 जनवरी: बचपन में बीसीजी का टीका (BCG vaccine) लगवा चुके भारतीय लोगों को वयस्क होने पर दोबारा यह टीका लगाया जाए तो उनमें टीबी से लड़ने की प्रतिरोधक क्षमता (Immunity against TB) बढ़ सकती है और इस रोग से ग्रस्त होने का खतरा कम हो सकता है। बंगलूरू स्थित भारतीय विज्ञान संस्थान के वैज्ञानिकों के एक ताजा अध्ययन में यह बात उभरकर आई है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि बीसीजी का दोबारा टीकाकरण करने से सफेद रक्त कोशिकाओं के एक खास उपसमूह (Th17) की संख्या और उनकी प्रतिक्रिया बढ़ जाती है। इस कोशिका उपसमूह को टीबी से लड़ने के लिए जाना जाता है। भारत, अमेरिका और ब्रिटेन के चिकित्सकों और शोधकर्ताओं के सहयोग से किए गए यह अध्ययन शोध पत्रिका जेसीआई इन्साइट में प्रकाशित किया गया है।
“इस अध्ययन में हम पहली बार यह साबित करने में सफल हुए हैं कि भारतीय संदर्भ में दोबारा टीकाकरण करना प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में उपयोगी हो सकता है। ऐसा करके विशिष्ट प्रकार की प्रतिरोधी कोशिकाओं को बढ़ाया जा सकता है।”
एक अनुमान है कि दुनिया की करीब एक चौथाई आबादी के शरीर में टीबी बैक्टीरिया माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस (TB bacteria Mycobacterium tuberculosis) सुप्त अवस्था में हो सकता है। हालांकि, ऐसे लोगों में बीमारी के लक्षण उभरकर सामने नहीं आते हैं। इसके बावजूद, अपने जीवनकाल में ऐसे लोगों के टीबी से ग्रस्त होने का खतरा पांच प्रतिशत से 15 प्रतिशत तक होता है।
भारत में चिकित्सीय रूप से मान्यता प्राप्त एकमात्र टीका बीसीजी है, जो माइकोबैक्टीरियम बोविस नामक जीवाणु का कमजोर रूप
इस अध्ययन में आंध्र प्रदेश के मदनपल्ले शहर के 200 प्रतिभागियों को शामिल किया गया है, जहां टीबी रोगियों के लिए देश का एक पुराना चिकित्सालय है। शोधकर्ता यह देखना चाहते थे कि टीबी के प्रति संवेदनशील माहौल में दोबारा टीकाकरण करने से रोगियों की प्रतिरोधक क्षमता पर क्या असर पड़ता है। इन सभी प्रतिभागियों को बचपन में टीबी का टीका लगाया जा चुका था। अध्ययन के दौरान इन प्रतिभागियों को दो समूहों में बांट दिया गया। एक समूह में टीबी के सुप्त रूप से ग्रस्त लोग थे, तो दूसरे समूह में ऐसे लोग थे, जिनके शरीर में टीबी बैक्टीरिया मौजूद नहीं था।
इससे पहले एक मानक परीक्षण के जरिये प्रतिभागियों के शरीर में टीबी बैक्टीरिया की मौजूदगी का पता लगाया गया था। प्रत्येक समूह के आधे प्रतिभागियों को दोबारा बीसीजी का टीका लगाया गया और बाकी को ऐसे ही छोड़ दिया गया। नौ महीनों तक इन प्रतिभागियों के रक्त परीक्षण के जरिये कोशिकाओं के गुणों का अध्ययन किया गया। इस तरह, 256 प्रतिरक्षा कोशिका उपसमूहों की उपस्थिति की जाँच करने के लिए लगातार साइटोमेट्री परीक्षण किए गए।
बिना बीसीजी वैक्सीन के शेष प्रतिभागियों की तुलना में जिन वयस्कों को बीसीजी टीके लगाए गए थे, उनमें प्रतिरक्षा कोशिकाएं अधिक संख्या में पायी गई हैं। ये कोशिकाएं सीडी4 और सीडी8 टी-सेल्स नामक कोशिका उपसमूहों से संबंधित हैं। ये कोशिकाएँ साइटोकिन्स नामक सिग्नलिंग प्रोटीन का उत्पादन करती हैं, जो टीबी के खिलाफ शरीर की प्रतिरक्षा प्रतिक्रियाओं में सुधार करता है।
“टीबी से निपटने के लिए बीसीजी एक जांचा-परखा हुआ टीका है। वैज्ञानिकों की रुचि अब यह देखने में अधिक है कि 18-22 वर्ष की आयु के वयस्कों का टीकाकरण टीबी के खिलाफ उनकी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में कितना सक्षम हो सकता है। हमारे अध्ययन से यह भी पता चला है कि दोबारा टीकाकरण माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस बैक्टीरिया से संक्रमित टीबी के सुप्त रूप से ग्रस्त लोगों को इस बीमारी से बचाने का एक सुरक्षित तरीका हो सकता है।”
शोधकर्ताओं का कहना यह भी है कि दोबारा टीकाकरण से जन्मजात प्रतिरक्षा कोशिकाओं की संख्या को बढ़ाने में भी मदद मिलती है, जो टीबी के खिलाफ रक्षा की पहली पंक्ति बनाने के लिए जानी जाती हैं। हालांकि, दोबारा टीकाकरण वयस्कों को टीबी के सुप्त संक्रमण को बीमारी में परिवर्तित होने से बचाने या फिर उनके शरीर से बैक्टीरिया को पूरी तरह से खत्म करने में कितना मददगार हो सकता है, यह निर्धारित करने के लिए अधिक अध्ययन किए जाने की जरूरत है।
उमाशंकर मिश्र
(इंडिया साइंस वायर)