Hastakshep.com-समाचार-Environmental violation-environmental-violation-Paris Climate Agreement-paris-climate-agreement-आत्मनिर्भर भारत-aatmnirbhr-bhaart-पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय-prthvii-vijnyaan-mntraaly-पर्यावरणीय उल्लंघन-pryaavrnniiy-ullnghn-पेरिस जलवायु समझौता-peris-jlvaayu-smjhautaa

पर्यावरण मूल्यांकन नियमों में ढील नहीं देने का अनुरोध

ईआईए के प्रावधानों का Building Back Better प्रति उदासीनता, पर्यायवरणीय 'आत्मनिर्भरता' को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा किया गया नजरअंदाज।  

नई दिल्ली, 25 जून : जलवायु व पर्यावरण क्षेत्र में काम कर रहे कई दर्जन संगठनो ने वन एवम् पर्यावरण मंत्रालय द्वारा हाल ही में जारी पर्यावरँ प्रभा मूल्यांकन को वापस लेने की मांग की है। पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा प्रस्तावित ईआईए ड्राफ्ट भारत की जैविक विविधता के लिए हानिकारक सिद्ध होता है, इसके अतिरिक्त यह पेरिस जलवायु समझौते (Paris Climate Agreement) के विरुद्ध भी जाता है, क्योंकि पर्यावरणीय उल्लंघनों को बढ़ावा देगा। इसके कारण कारखानों से कई जहरीली और ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन काफी अधिक मात्रा में होगा।

यह ड्राफ्ट भारत के मौजूदा पर्यावरणीय कानूनों और नियमों का उलटा है जैसे कि परियोजनाओं का पर्यावरणीय मूल्याँकन और जन भागीदारी को उपेक्षित करता है, जिसके द्वारा यह पर्यावरण संबंधी क़ानूनी प्रावधानों का हनन है। इसके विरोध में कई विशेषज्ञों, प्रबुद्ध मंडल और पर्यावरणीय कार्यकर्ताओं द्वारा मंत्रालय को अपनी आपत्तियां और सिफारिशें भेजी गई हैं।

आपत्ति और टिप्पणी दर्ज कराने की समयसीमा 30 जून 2020 को समाप्त हो रही है

इस ड्राफ्ट के अनुसार चल रही परियोजनाओ और 191 अन्य परियोजनाओं जिन्हें आने वाले समय में अनुमोदन मिलना था, के लिए नियम और प्रावधानों में ढील दी गई है। जिस समय विश्व भर में जलवायु संकट बढ़ रहा है, पर्यायवरणीय आपातकाल और इससे सामाजिक-आर्थिक संकट बढ़ रहा है, भारत को जीवाश्म ईंधन के प्रसार को रोकने के प्रयास करने चाहिए। इसके विपरीत मंत्रालय द्वारा परियोजनाओं को मंजूरी देने के लिए नियमों में ढील दी जा रही है, केंद्र सरकार द्वारा 'उन्मुक्त कोयला' के अधीन 50 कोयला खदानों की नीलामी की जाती है।

यह खदानें जैविक विविधता और आदिवासी समाज के जीवन पर खतरा पैदा कर उड़ीसा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र में

निजी फायदे के लिए दिए गए।

इस द्वारा मात्र जंगल ही नहीं, हमारे समंदर, झीलों और समुद्री जीवन पर भी खतरा उतपन हो गया है, जैसे कि 20 हजार प्रकार के समुद्री जीव, मत्स्य पालक समुदायों और तटीय क्षेत्रों पर भी इसका प्रभाव पड़ेगा और खतरे से घिरे रहेंगे। अगर ईआईए 2020 ड्रॉफ्ट को लागू किया जाता है तो तटीय क्षेत्रों में समुंद्री जल के स्तर में वृद्धि होगी, यहां बाढ़ और अन्य प्रकार के संकट पैदा होंगे जिससे यहां भूमि का कटाव होगा और संसांधनों का उपयोग निजी हित के लिए उद्योगों, रियल इस्टेट और बंदरगाहों के लिए किया जायेगा। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की रिपोर्ट ने जलवायु परिवर्तन के भारत पर होने वाले प्रभावों से अवगत कराया गया है।

यह ड्राफ्ट इसके द्वारा होने वाली गतिविधियों और उनके पड़ने वाले दुष्प्रभावों से अनजान प्रतीत होता है जैसे कि पर्यावरणीय-सवेदनशील क्षेत्रों की समस्या, खनन, पूँजी का निकर्षण, आदिवासी समाज के जीवन पर पड़ने वाला दुष्प्र्भाव इत्याति।

यह ड्रॉफ्ट वर्तमान के भारत की जलवायु एवं पर्यावरणीय समस्याओं को नजरअंदाज करता है। भारत को हाल ही में कई पर्यावरणीय समस्याओं का सामना करा है जैसे- टिड्डियों का हमला, चक्रवातों में बढ़ावा, मानवीय लापरवाही से हुई विज़ाग गैस रिसाव, असम गैस रिसाव जिनसे मजबूत ईआईए होने से बचा जा सकता था। भारत भर से नागरिकों द्वारा ईआईए के ड्राफ्ट का पूर्ण विरोध किया जा रहा है।

अर्चना सोरोंग जो कि उड़ीसा के खड़िया समुदाय से हैं और उड़ीसा के वसुंधरा में रिसर्च अधिकारी हैं, का कहना है, "पर्यायवरणीय मंजूरी का वनजीवन पर काफी क्षतिपूर्ण प्रभाव पड़ने वाला हल और अनेक आदिवासी और अन्य समुदायों के वन और भूमि अधिकारों पर खतरा उतपन हो गया है। यह समुदाय अन्य लोगो से भिन्न है क्योंकि यह जंगलों और प्रकृतिक संसाधनों को व्यापारिक नजरिये से नहीं देखते हैं"।

आशीष बिरुली, जो एक फोटो पत्रकार, एक्टिविस्ट और Adivasi Lives Matter के संस्थापक सदस्य हैं, के अनुसार, "ईआईए आदिवासी समुदाय को बुरी तरह प्रभावित करेगा क्योंकि सारी परियोजना आदिवासी समुदायों को विस्थापित कर क्रियान्वित करी जाएगी जो कि भारत सरकार की स्थापना से पहले के इन स्थानों पर रहा रही है। आदिवासी समुदाय मुख्य तौर पर वनों से मिलने वाले संसाधानों पर निर्भर रहता है, फल, सब्जियां, दवाई, जलाऊ लकड़ी इत्यादि। इनके स्व: निर्भर जीविका बुरी तरह प्रभावित होगी"।

डॉ. मैहर अबादिअण, पशुचिकित्सक के अनुसार "मैं उलझन में हूं कि सरकार इस तुच्छ ड्रॉफ्ट के द्वारा क्या संदेश देना चाहती है, जो कि जीव विविधता को नुकसान के साथ हमारे जलवायुतंत्र को बर्बाद करेगा, इसके अतिरिक्त यह मानव-जंतु के संघर्ष को भी बढ़ावा देगा और हमारे वनजीवन को विलुप्ति के कगार पर ले जायेगा।”

शीतल भान, मुंबई की शिक्षिका के अनुसार,

"लगता है सरकार ने महामारी और जीव विविधता हानि के संबंध को समझ नहीं पाई है. क्या मंत्रालय का काम हमारे वनो की रक्षा करना नहीं है? मेरा एक दस साल का बेटा है इस बच्चों साफ हवा और पानी के बिना क्या भविष्य है? इस ड्रॉफ्ट को तुरन्त प्रभाव से वापस लिया जाना चाहिए"

हजारों नागरिकों द्वारा इस ड्रॉफ्ट और नीति का विरोध किया गया है. नागरिकों, नागरिक समाज संगठन और भारतभर से संगठनों द्वारा एक साझा मंच के अधीन इस ड्राफ्ट के विरोध के लिए आये है। इसके साथ यह मंच सतत, स्वस्थ और साफ भविष्य के लिए पारदर्शी प्रक्रिया के लिए भी कार्य करेगा। Build India Back Better मांग करता है एक नया ड्राफ्ट बनाया जाये जिसे एक जन भागीदारी के साथ बनाया जाये जो कोरोना के बाद आम जीवन के सामान्य होने के बाद हो।

  1. यह ड्राफ्ट उन परियोजना और उद्योगों को नियमित मंजूरी देता है, जिन्होंने पर्यावरणीय मंजूरी प्राप्त नहीं की है, इस उनसे मामूली जुर्माना लेता है। इससे कोई निवारण प्रक्रिया नहीं होगी।
  2. यह ड्राफ्ट परियोजना के लिए सार्वजनिक और जन सुनवाई को अनदेखा करता है, जैसे कि सिचाई परियोजना, इमारत निर्माण और अन्य विकास परियोजना। इसके अतिरिक्त सभी राष्ट्रीय सुरक्षा, अपतटीय और सीमाओं से संबंधित परियोजना पर भी यही रवैया रखता है।
  3. ड्राफ्ट 35 उच्च प्रदूषण उत्पन्न करने वाले रसायनों और उद्योगों को भी जन-सुनवाई से छूट दी गई है। यह पूर्ण रूप से ग्रामीण इलाकों में समस्या उत्पन्न करेगा क्योंकि इसका प्रभाव घरेलू और अन्य उपयोग के जल पर पड़ेगा।
  4. औद्योगिक परियोजनाओं को अब साल में एक बार पर्यावरण अनुपालन रिपोर्ट देनी होगी जो पहले साल में दो बार देनी होती थी। पिछले अनुभव बताते हैं रिपोर्टो में अधिकतर झूठे और गलत डेटा दिया जाता रहा है। साल एक बार रिपोर्ट देने का प्रावधान इन परियोजनाओ को मदद करेगा और यह कई समाजिक और पर्यायवरणीय उलंघन करेंगे।
  5. अगर कोई औद्योगिक परियोजन पर्यायवरणीय नियमों की अवहेलना करता है तो उसके पर्यायवरणीय मंजूरी को भंग करने का कोई प्रावधान नहीं है।
  6. यह ड्राफ्ट पर्यारवरणीय वैधता को खनन के लिए 30 की जगह 50 सालों तक बड़ा देता है। इस तरह यह प्रावधान पर्यावरण को काफी हानि करते हैं।
  7. जन सुनवाई को आवश्यक किया जाना चाहिए क्योंकि भारत में तटीय क्षेत्र में काफी आबादी रहती है, जिनमे काफी संख्या में मछवारे और किसान है जो सीधे रूप से तट से जुड़े है। इसके अतिरिक्त यह जन सुनवाई के लिए आम नागरिकों के जवाब देंने के समय को 30 से 20 दिनों तक करता है।

Build India Back Better Coalition is :

Let India Breathe, Fridays For Future India, XR in India, Save Earth Save Future, IIPC, Environment Ministry of Ashoka University Student Government, Muse Foundation, Karvaan Foundation (Udgir), Youth for Swaraj, There Is No Earth B, Climate Save Movement, Aarey Conservation Group, The Project Amara, Save Mollem, Naturalis T Foundation, Millennials for Environment, Vanashakti, Adivasi Lives Matter, Citizens For Hyderabad, Hyderabad Rising, National Alliance for Peoples’ Movement (NAPM), Forest Rights COVID-19 Response Odisha, Chhattisgarh Bachao Andolan, Save Mangroves of Andhra Pradesh, Green-Tech Foundation – Meghalaya, SAPCC Youth, ASA TISS, Delhi Trees SoS, Let’s Save Delhi

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