'मेवात' वेब सीरीज की समीक्षा
मेवात हरियाणा का एक गाँव जो बदनाम है अपनी करनी के चलते। मार-पीट, गुंडागर्दी तक तो ठीक लेकिन अब यहाँ बड़ी-बड़ी चोरी और डकैती को अंजाम मिलने लगा। पुलिस तो शामिल है ही ये सब करवाने में साथ ही गाँव के चेयरमैन का घर भी इसमें शामिल हैं। धीरे-धीरे गैंग सिस्टम और गैंगवार बढ़ने लगता है। हर गैंग के लोग अपना रुतबा कायम करना चाहते हैं। अपनी मूंछे ऊँची रखना चाहते हैं। लेकिन क्यों? किसलिए? इसकी कोई पुरानी पृष्ठभूमि भी तो नहीं। हल्की सी झलक है भी तो वो प्यार की। लेकिन जनाब सवाल फिर भी खड़ा है कि ये सब हो क्यों रहा है? आखिर ये ऐसा करके हासिल क्या करना चाहते हैं?
एक गैंग के लड़के को दूसरे गैंग की बहन से प्यार हो गया। तो दूसरी तरफ चोरी-डकैती का धन्धा चल गया। दरअसल यह 'मेवात' सीरीज मेवात की छवि को ना तो पूरी तरह ठीक दिखाती है और ना ही किसी एक निर्णय पर आपको ले जाकर छोड़ती है। मात्र पांच एपिसोड इसके इसलिए भी अखरते हैं कि ये बहुत कम है भाई! एक आध एपिसोड और बनाकर या एपिसोड थोड़े से लंबे बनाकर आप कुछ और ज्यादा दिखा पाते तो दर्शकों को इतना दिमाग न लगाना पड़ता न ही उन्हें सवाल उठाने पड़ते।
अब बात करें सीरीज के तकनीकी पक्ष की तो अभिनय तो सबका पूरे नम्बर पाने वाला रहा। हाँ कुछ एक किरदार को छोड़ दिया जाए तो बाकी की टीम उनके द्वारा किये गए अभिनय को ढक लेती है। एक्शन कुछ जगह दहलाता है तो कुछ जगह रोमांच पैदा करता है। कायदे से यह सीरीज थोड़ा सा दम और लगाती तो स्टेज एप की सबसे बेहतरीन सीरीज में अव्वल रहती अब तक के कंटेंट के मुकाबले। लेकिन अफसोस
हर प्रोजेक्ट एक अल्हदा प्रोजेक्ट होता है इस लिहाज से भी आप चाहें तो इसे स्वतंत्र रूप से लीजिए। मन्नू पहाड़ी, हर्ष गहलोत, सिक्का कुरैशी, ऋतु कंवत, इखलास अहमद मोर, बृज भारद्वाज, रूपेश यादव, मुबारक ताहिर, अल्ताफ हुसैन बिलावत, तोशब बागरी, शोएब इकबाल, रकीब खान, चेतना सरसेर आदि अपने काम से सुकून दिलाते हैं और एक बड़ी उम्मीद भी कि सिनेमा के मामले में मेवाती अब सचमुच चलते हुए दर्शकों की आँखों से भी सुरमा निकाल सकते हैं। कुछ समय के लिए दिखे आर जे भारद्वाज अपनी स्वाभाविक छवि छोड़ते हैं।
अंजलि जगलान का मेकअप, साहिल लोहन का वी एफ एक्स, मोहित मोर की एडिटिंग, जय अहलावत का किया गया डी ओ पी और वारिस आई बी एन फारूक़ी का निर्देशन और लेखन भले सीरीज में पूरे नम्बर पाने में चूक गए हों या कहीं-कहीं दमदार हो सकने वाले बैकग्राउंड स्कोर और अभिनय करते हुए कहीं-कहीं ऊँची और दमदार हो सकने वाली पिच तक न पहुंचे पाए हों फिर भी यह स्टेज और इसके क्रियेटर हरिओम कौशिक का सफल प्रयास जरूर कहा जाना चाहिए।
लेकिन उन्हें यह इसके अगले सीजन में ध्यान रखना होगा कि जो कमियां रह गई हैं उन्हें पार करके 99 के फेर से उन्हें बचना होगा। अन्यथा स्टेज और इस सीरीज या आगे आने वाले कोई भी प्रोजेक्ट पूरे भारत में भाषा का जो डँका बजाने के इरादे रखते हैं वे उन्हें पूरा कर पाने में उतना ही देर करते जाएंगे।
हाँ इस सीरीज में इस्तेमाल लोक गीत 'चमक तेरा' और इसके टाइटल ट्रैक को खूबसूरत बनाया गया है। लेकिन खास तौर से आखिरी एपिसोड में इसे कुछ और जगह भी इस्तेमाल किया जाता तो यह भी इस सीरीज को और मजबूत सहारा ही प्रदान करता। स्क्रिप्ट अच्छी चुनी गई इसमें कोई दोराय नहीं लेकिन जब दमदार स्क्रिप्ट पर कहीं-कहीं कुछ छूट जाए तो निराशा हाथ लगती है।
अपनी रेटिंग - 4.5 स्टार
तेजस पूनियां