मैं जब स्कूल में था और डीएनए यानी डी ऑक्सी राइबो न्यूक्लिक एसिड की संरचना कैसी होती है (What is the structure of DNA ie D oxy ribo nucleic acid?) ये हमें जीव विज्ञान में पढ़ाया जाता था। तब हमने यह जाना कि डीएनए की संरचना (DNA structure) डबल हेलिक्स के आकार की होती है, मतलब दोहरी घुमावदार सीढ़ी जैसी संरचना होती है जिसमें पॉलीन्यूक्लियोटाइड की चेन होती है। पॉली यानि बहुत सारे और न्यूक्लियोटाइड एक जैविक यौगिक है जिसमें न्यूक्लियो बेस (थायमीन, गुआनीन, ऐडिनीन और साइटोसिन), फॉस्फ़ेट समूह और पेंटोस शुगर होते हैं।
तो तब इनके बारे में पढ़ते समय हमने ये ही पढ़ा कि डीएनए की आणविक संरचना का पता जेम्स वॉट्सन और फ्रांसिस क्रिक (james watson and francis crick,) ने लगाया जिसके लिए उन्हें मॉरिस विल्किंस (maurice wilkins) के साथ 1962 में नोबेल प्राइज़ मिला। हालाँकि उस वक्त मॉरिस का नाम भी कम ही सुना था और वॉट्सन व क्रिक ही मुख्य नाम थे।
कॉलेज में भी मैंने ये ही पढ़ा और इसी तरह के जवाब के वैकल्पिक सवालों को भी परीक्षाओं में पाया। जैसे कि डीएनए की डबल हेलिकल संरचना की खोज किसने की? और उत्तर होता था वॉट्सन और क्रिक। यहाँ विल्किंस भी नहीं होते थे। ये सिलसिला चलता रहा। पर क्या किसी भी वैज्ञानिक खोज में एक-दो व्यक्ति के द्वारा ही काम किया जाता है? पर ख़ैर हमारे वैकल्पिक सवाल तो ये ही ढर्रा चलाते हैं। ख़ैर अब
इसके बाद फिर जब मैं एक जॉब में एक साइंस सेंटर में गया तो वहाँ मुझे रोज़ालिंड फ़्रैंकलिन का पोर्ट्रेट एक हॉल के बड़े डिस्प्ले होर्डिंग में दिखा और वहाँ उनके काम के बारे में पता चला। उस लैब में जेंडर और साइंस के मुद्दों पर भी काम होता था।
फिर एक बार किसी रोज़ नोबेल पुरस्कारों की चर्चा में, उसकी पॉलिटिक्स पर एक महिला साथी ने विचार रखे और रोज़ालिंड के मामले की भी बात रखी। मैने रोज़ालिंड पर फिर कुछ ढूँढा, पढ़ा और देखा। फिर अभी चार पाँच साल पहले कुछ और अच्छे स्रोतों से उनकी डिस्कवरी के लेख सर्च किए, ब्रेंडा मैड्डॉक्स की किताब द डार्क लेडी ऑफ़ डीएनए और फोटोग्राफ़ 51 डॉक्यूमेंट्री देखी। साथ ही रोज़ालिंड पर एक जीवनी थी "रोज़ालिंड फ़्रैंकलिन ऐंड डीएनए" जो उनकी दोस्त एने सायरे (Anne Sayre) ने लिखी थी, उसे देखा।
इन सब से मुझे पता चला कि रोज़ालिंड ही असल में वह वैज्ञानिक हैं जिन्होंने सबसे पहले डीएनए के डबल हेलिकल होने की पिक्चर प्राप्त की। वह फोटो थी फोटोग्राफ 51। वह फोटो जब वॉट्सन ने देखी तो ने तुरंत समझ गए कि यह फोटो ज़रूर डीएनए की एक डबल हेलिकल संरचना की ओर इशारा कर रही है। पर उन्होंने रोज़ालिंड को इस खोज में साथ सहयोगी नहीं माना। वे हमेशा कहते कि वह एक क्रिस्टलोग्राफ़र है जीवविज्ञानी नहीं। वे उन्हें रोज़ी कहते थे और अपनी किताब द डबल हेलिक्स में उन्होंने कई जगह रोज़ालिंड का मज़ाक सा बनाने का प्रयास किया।
उन्हें, फ़्रैंसिस क्रिक और मॉरिस विल्किंस को इस फोटो से काफी मदद मिली। विल्किंस के ही साथ में रोज़ालिंड काम करती थीं। अब वॉट्सन और क्रिक डीएनए की संरचना का मॉडल बखूबी बना सकते थे। फिर क्या था उन तीनों को डीएनए की डबल हेलिकल संरचना वाला मॉडल बताने के लिए सामूहिक रूप से नोबेल प्राइज़ मिला। पर इस सब में रोज़ालिंड गायब थीं। इस खोज में उनका कोई योगदान वैज्ञानिक समुदाय के लोगों ने उस तरह नहीं माना जिसकी वे हक़दार थीं।
रोज़ालिंड खुद ही इन सब खोज में लगने के कारण कैंसर बीमारी से ग्रसित हुईं। फिर काफ़ी कम उम्र, महज़ 38 सालों में 16 अप्रैल 1958 में वे दुनिया छोड़ गईं। वॉट्सन, क्रिक और विल्किंस को उसके चार साल बाद नोबेल प्राइज़ मिला। रोज़ालिंड शायद जीवित होतीं तो भी विल्किंस का ही नाम प्राइज़ के लिए जाता।
ख़ैर प्राइज़ मिलने ना मिलने से ज़्यादा उनके काम का ज़िक्र और उनके योगदान को माना ही जाता तो भी उनका सम्मान होता। पर मॉरिस के रोज़ालिंड के महत्व को मानने के अलावा वॉट्सन ने तो उनके काम को एक एक्स रे क्रिस्टलोग्राफ़र के पिक्चर देने तक सीमित कर दिया। यह सही है कि डीएनए की आणविक संरचना की व्याख्या और वे कैसे सूचना के स्थानांतरण का काम करते हैं, यह वॉट्सन और क्रिक जैसे जीवविज्ञानियों का काम था। पर रोज़ालिंड के काम से ही उन्हें वह पिक्चर मिली जिससे वे डीएनए की संरचना की पहेली को सुलझा सके। तो उनका सम्मान ज़रूर होना चाहिए था।
आज लोगों ने उनके किए काम के महत्व को समझा है और उनके ज़रिए विज्ञान, प्रौद्योगिकी, गणित और शिक्षा में महिलाओं के योगदान को सामने लाने, पक्षपात और पूर्वाग्रह के बिना आगे लाने के प्रयास और मुद्दे भी वैज्ञानिक समुदाय और अन्य क्षेत्रों में मुखर हुए हैं।
रोज़ालिंड फ़्रैंकलिन पर ब्रेंडा मैड्डॉक्स की किताब द डार्क लेडी आफ़ डीएनए है और निकोल किडमैन अभिनीत फ़ोटोग्राफ़ 51 नाटक और साथ ही इसी नाम की डॉक्यूमेंट्री भी। इन सब में हमें यह जानने को मिलेगा कि कैसे रोज़ालिंड की फोटो 51 को वॉट्सन ने इस्तेमाल किया। वहाँ कैसे पितृसत्ता और पुरुषवाद ने एक क़ाबिल महिला वैज्ञानिक के बेहतरीन काम और सहयोग को अनदेखा किया। और यह अनदेखी डीएनए की संरचना पर दिए गए नोबेल पुरस्कार में भी दिखी। पर रोज़ालिंड की चुपचाप की गई मेहनत को आज दुनिया समझती है।
मोहम्मद ज़फ़र
(यह पोस्ट लेखक ने अपने ब्लॉग https://othervoices.in में लिखी थी और अब उसका संपादित रूप हस्तक्षेप में साझा किया है।)