Hastakshep.com-आपकी नज़र-Dr. Lohia-dr-lohia-Rashtriya Swayamsevak Sangh-rashtriya-swayamsevak-sangh-गैर-कांग्रेस वाद-gair-kaangres-vaad-राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ-raassttriiy-svynsevk-sngh

यह तस्वीर, वह तस्वीर है जिसने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का अछूतोद्धार किया। 1966-67 में समाजवादी चिंतक डॉ. राममनोहर लोहिया देश में कांग्रेस के एकछत्र साम्राज्य को समाप्त करने के लिये एक थीसिस लेकर आये थे। उन्होंने सबसे पहले यह बताया कि कांग्रेस की जीत का सबसे बड़ा कारण (The biggest reason for the victory of Congress) यह है कि कांग्रेस विरोधी वोट बिखरे हुए हैं और यदि उन्हें एकजुट कर दिया जाए तो कांग्रेस को हराया जा सकता है, क्योंकि कांग्रेस को कभी भी 40-45 फीसदी से ज्यादा वोट नहीं मिलते हैं।

कांग्रेस को हराने के लिये उन्होंने 'ग़ैरकांग्रेसवाद' की रणनीति बनाई और यहां तक कहा कि कांग्रेस को हराने के लिये मुझे यदि #शैतान से भी हाथ मिलाना पड़ेगा तो मैं हाथ मिलाऊंगा। और उन्होंने हाथ मिला लिया। उनके मधु लिमये जैसे घनिष्ठ सहयोगी ने शैतान से हाथ मिलाने का प्रारम्भ में विरोध किया, लेकिन डॉ. लोहिया ने उन्हें भी मना लिया। मधु लिमये ने भी ज्यादा विरोध न करते हुए अपने 'नेता' की बात मान ली और तात्कालिक राजनीतिक जरूरत को समझते हुए 'ग़ैरकांग्रेसवाद' की रणनीति को स्वीकार कर लिया।

डॉ. लोहिया से दो हाथ आगे निकले जेपी

डॉ. लोहिया ने तो 'शैतान' से हाथ ही मिलाया था। उनके वरिष्ठ सहयोगी 'लोकनायक' जयप्रकाश नारायण एक कदम और आगे चले गए। उन्होंने यहां तक कह दिया कि 'राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यदि फासिस्ट संगठन है तो जयप्रकाश भी फासिस्ट है'। उन्होंने कांग्रेस को हराने तथा इंदिरागांधी को इमरजेंसी की 'भूल' का सबक सिखाने के लिये समाजवादी आंदोलन का मर्सिया पढ़ दिया और दक्षिणपंथी-साम्प्रदायिक एवं हिंदुत्ववादी संघ/जनसंघ, दक्षिणपंथी-पूंजीवादी पार्टी संगठन कांग्रेस एवं स्वतंत्र पार्टी तथा बड़े किसानों, जिन्हें मधु लिमये कुलक कहते थे, की पार्टी लोकदल के साथ समाजवादियों को जोड़कर #जनता_पार्टी नाम का 'भानुमति का पिटारा' देश की जनता के सामने पेश कर दिया।

इस तरह भारत के समाजवादी आंदोलन के दो महान पुरोधाओं

ने ही संघ/जनसंघ को न सिर्फ संजीवनी दी बल्कि आज यदि यह सर्वाधिकारवादी पार्टी सत्ता में है और देश की बहुलतावादी और सर्वसमावेशी समाज व्यवस्था को नष्ट-भ्रष्ट करने पर तुली हुई है तो इसके लिये समाजवादी भी कम दोषी नहीं हैं। 1980 में जनसंघ के पुनर्वअवतार भारतीय जनता पार्टी के साथ सहयोग में भी समाजवादी कभी पीछे नहीं रहे और एक समय के चिरविद्रोही जॉर्ज फर्नांडिस ने भी अपने अंध काँग्रेस विरोध में भाजपा को विपक्ष की मुख्य धुरी बना दिया। आज उसके दुष्परिणाम देश की लोकतांत्रिक प्रणाली, संविधान, समता, न्याय, भाईचारे और सर्वधर्म समभाव की अवधारणा को झेलना पड़ रहे हैं। क्या समाजवादी कभी अपनी इन ऐतिहासिक भूलों को स्वीकार करेंगे?

प्रवीण मल्होत्रा

(प्रवीण मल्होत्रा (Praveen Malhotra) लेखक समाजवादी चिंतक हैं। उनकी एफबी टिप्पणी का संपादित अंश साभार)

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