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Scientists developed a new method of sheath blight disease control in crops

India is the second-largest producer and consumer of rice globally.

नई दिल्ली, 15 अक्तूबर (उमाशंकर मिश्र ): चावल दुनियाभर में प्रचलित एक मुख्य भोजन है और भारत वैश्विक स्तर पर चावल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक एवं उपभोक्ता है। चावल का उत्पादन कई जैविक और अजैविक कारकों पर निर्भर करता है।

क्या है शीथ ब्लाइट रोग | धान को बचाएं शीथ ब्लाइट (Sheath blight) से,

नेक्रोट्रॉफिक फंगल रोगजनक (राइजोक्टोनिया सोलानी) बैक्टीरिया (Necrotrophic Fungal Plant Pathogens) के कारण होने वाला शीथ ब्लाइट रोग चावल (Rice Crop) और अन्य कई फसलों के लिए एक बड़ा खतरा है। नई दिल्ली स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ प्लांट जीनोम रिसर्च (एनआईपीजीआर) के शोधकर्ताओं के एक ताजा अध्ययन में पता चला है कि राइजोक्टोनिया सोलानी की कार्यप्रणाली में संशोधन, शीथ ब्लाइट के विरुद्ध प्रभावी रणनीति विकसित करने में महत्वपूर्ण हो सकता है।

इस अध्ययन से जुड़े एनआईपीजीआर के प्रमुख शोधकर्ता डॉ गोपालजी झा ने इंडिया साइंस वायर को बताया कि

टमाटर की फसल में सी2एच2 जिंक ट्रांसक्रिप्शन फैक्टर आरएस_सीआरजेड1 को निष्क्रिय करना राइजोक्टोनिया सोलानी के कारण उभरने वाले रोग को प्रभावित करता है। सामान्य पौधों से तुलना करने पर पाया गया है कि  आरएस_सीआरजेड1 को निष्क्रिय करने पर रोग की दर में महत्वपूर्ण रूप से गिरावट आती है। हमने पाया कि आरएस_सीआरजेड1 रोगजनक बैक्टीरिया को रोग की विकास प्रक्रिया के दौरान प्रतिरोधी वातावरण से निपटने के लिए सक्षम बनाता है।

Transcription Factors in Molecular Biology

आणविक जीव विज्ञान में ट्रास्क्रिप्शन फैक्टर ऐसे प्रोटीन को कहते हैं, जो डीएनए से मैसेंजर आरएनए में आनुवंशिक सूचनाओं

के ट्रांस्क्रिप्शन की दर को नियंत्रित करता है।

डॉ. गोपालजी झा ने बताया कि

“सूक्ष्मजीवों के रोगजनन तंत्र को समझना और यह पता लगाना बेहद महत्वपूर्ण होता है कि वे पौधों को कैसे नुकसान पहुँचाते हैं। ऐसा करके ही रोगों के लिए जिम्मेदार बैक्टीरिया की रोकथाम के लिए प्रभावी रणनीतियां विकसित की जा सकती हैं। हालांकि, राइजोक्टोनिया सोलानी की जीन कार्यप्रणाली के विश्लेषण के लिए कोई पद्धति उपलब्ध नहीं थी। हमने अपने अध्ययन में राइजोक्टोनिया सोलानी के जीन्स के प्रभाव को कम करने की पद्धति विकसित की है और टमाटर की फसल में शीथ ब्लाइट रोग विकसित होने में इसकी भूमिका का अध्ययन किया है। यह पद्धति अवांछनीय जीन्स को निष्क्रिय करने की जीन साइलेंसिंग विधि पर आधारित है, जिसमें संक्रमण प्रक्रिया के दौरान आरएनए हस्तक्षेप (RNAi) से फंगल जीन्स को निष्क्रिय किया गया है।”

शोधकर्ताओं का कहना है कि शीथ ब्लाइट के लिए जिम्मेदार राइजोक्टोनिया सोलानी के तंत्र को समझने और इस रोग को नियंत्रित करने के लिए रणनीति विकसित करने में यह अध्ययन एक अहम कड़ी साबित हो सकता है।

उनका कहना है कि इस अध्ययन में राइजोक्टोनिया सोलानी के संक्रमण के दौरान इसकी रोगजनन क्षमता को निष्क्रिय करने की रणनीति विकसित की गई है, जो रोगजनक बैक्टीरिया को पौधों में रोग फैलाने से रोक सकती है। अध्ययन से यह भी पता चला है कि चावल में शीथ ब्लाइट के नियंत्रण के साथ-साथ अन्य फसलों में भी राइजोक्टोनिया सोलानी जनित रोगों से बचाव में इस पद्धति का उपयोग हो सकता है।   

आमतौर पर शीथ ब्लाइट रोग का नियंत्रण फफूंदनाशी रसायनों के छिड़काव से किया जाता है, जिससे फसल उत्पादन की लागत बढ़ जाती है।

इसके साथ ही, निर्धारित सीमा से अधिक रसायन अवशेषों के कारण फसल उत्पादों का व्यवसायिक मूल्य कम हो जाता है, जो खाद्य उत्पादों के निर्यात से जुड़ी एक प्रमुख बाधा है। चावल के साथ-साथ राइजोक्टोनिया सोलानी को टमाटर सहित अन्य महत्वपूर्ण फसलों में रोगों का कारण माना जाता है। इसलिए, वैज्ञानिकों का कहना है कि इस संदर्भ में पर्यावरण के अनुकूल और रोग-नियंत्रण के स्थायी उपायों का विकास आवश्यक है।

यह अध्ययन शोध पत्रिका मॉलिक्यूलर प्लांट माइक्रोब इन्ट्रैक्शन्स में प्रकाशित किया गया है। शोधकर्ताओं में डॉ गोपालजी झा के अलावा श्रेयान घोष, रविकांत और अमृता प्रधान शामिल थे।

इंडिया साइंस वायर

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