20 जनवरी 2020. सीएए, एनआरसी, और एनपीआर की नीयत गलत है, बुनियाद गलत है, और तरीका भी गलत है। यह बात जानी मानी और साहसी मानवाधिकार कार्यकर्ता तीस्ता सेतलवाद जो गुजरात में हुई साम्प्रदायिक हिंसा के पीड़ितों के लिए संघर्षरत हैं, ने 20 जनवरी को सामाजिक विकास केंद्र (रांची) में झारखंड नागरिक प्रयास द्वारा आयोजित एक सेमीनार को संबोधित करते हुए कहा।
उन्होंने असम की एनआरसी प्रक्रिया के बारे में लोगों को बताया कि राज्य की 3.2 करोड़ आबादी में से 19 लाख लोग एनआरसी से छूट गए। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, असम में एनआरसी प्रक्रिया में 1220 करोड़ रुपए और 52,000 सरकारी कर्मियों का समय खर्च हुआ। इसके अतिरिक्त, लोगों को अपनी नागरिकता साबित करने के लिए लगभग कुल 22,400 करोड़ रूपए खर्च करने पड़े। असम की एनआरसी प्रक्रिया में लोगों को अत्यंत आर्थिक और मानसिक पीड़ा झेलनी पड़ी, जिससे करीब 100 लोगों की मौत आत्महत्या से, दिल का दौरा पड़ने के कारण, या नजरबंदी केन्द्रों में बंद होने की वजह से हुई।
तीस्ता सेतलवाद ने आगे कहा कि भारत आज़ाद होने के बाद देश के संविधान पर गहन विचार विमर्श हुआ था, जिसमें धर्म-आधारित राष्ट्रवाद को नकारा गया था। पर सीएए में धर्म के आधार पर शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता दी जाएगी। जहां सीएए स्पष्ट रूप से गैर-संविधानिक है, एनआरसी और एनपीआर देश के कुछ समुदायों को प्रताड़ित करने का एक तरीका है।
रांची विश्वविद्यालय के विसिटिंग प्रोफ़ेसर ज्यां द्रेज़ ने सेमीनार को संबोधित करते हुए समझाया कि एनआरसी एक नागरिकता परीक्षा के समान है। परीक्षा का पहला पड़ाव है एनआरसी की प्रक्रिया
उन्होंने लोगों को याद दिलाया कि जैसे आधार बनवाने में कितना समय और संसाधन खर्च हुआ था, उसी प्रकार अगर झारखंड में एनपीआर लागू होता है, तो पूरा सरकारी तंत्र उसी में लग जाएगा और अगले पांच वर्षों में विकास का कोई काम नहीं होगा।
उनके बाद शशिकांत सेंथिल ने अपनी बात रखी।
उन्होंने लोकतांत्रिक मूल्यों पर बढ़ते प्रहारों के विरुद्ध सितम्बर 2019 में भारतीय प्रशासनिक सेवा को छोड़ा है। उन्होंने देश की इन विकट परिस्थियों में खुद को एक सरकारी अफसर होना अनैतिक समझा। उनकी राय में सीएए-एनआरसी-एनपीआर भारत में बढ़ते फासीवाद की ओर बढ़ता एक कदम है। इन नीतियों द्वारा मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है और उन्हें देश की सब समस्याओं की जड़ बताया जा रहा है।
उन्होंने यह भी कहा कि वर्त्तमान केंद्र सरकार मूल मुद्दों से लोगों का ध्यान बांटने के लिए ऐसी नीतियाँ लागू कर रही है। सेंथिल ने प्रतिभागियों को एनपीआर प्रकिया के दौरान अपने दस्तावेज़ न दिखाने के लिए आग्रह किया, जिससे वैसे लोगों के साथ एकजुटता बन पाए, जिनके पास आवश्यक दस्तावेज़ नहीं हैं।
सेमीनार का दूसरा सत्र मोदी सरकार की कश्मीर पर नीतियों से सम्बंधित था। ज्यां द्रेज़ ने, जो अनुच्छेद 370 के निराकरण के बाद कश्मीर का जायजा लेने वाले सबसे पहले कार्यकर्ताओं में से थे, मुद्दे पर अपनी टिप्पणी रखी।
(1) सीएए को रद्द करना और एनआरसी व एनपीआर को लागू नहीं करना, चूंकि वे संविधान की अवधारणा के विरुद्ध हैं।
(2) झारखंड सरकार सीएए के विरुद्ध प्रस्ताव पारित करे और राज्य में एनआरसी व एनपीआर लागू नहीं करने का निर्णय ले।
(3) एनपीआर-एनआरसी प्रक्रिया के दौरान नागरिकता साबित करने वाले कोई दस्तावेज़ नहीं दिखाएं।
(4) जम्मू और कश्मीर में संवैधानिक अधिकारों का हनन तुरंत बंद हो, संचार के सब साधन वापस चालू किए जाएं, सब राजनैतिक कैदियों को रिहा किया जाए, जम्मू और कश्मीर को पुनः पूरे राज्य का दर्जा मिले और उसमें विधान सभा चुनाव हो।
सेमीनार में लगभग 300 लोगों ने साथ आकर देश में नागरिकता अधिकारों और संविधानिक मूल्यों पर हो रहे प्रहारों पर चर्चा की। चर्चा नागरिकता संशोधन कानून (सीएए), राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी), राष्ट्रीय जनसँख्या रजिस्टर (एनपीआर), अनुच्छेद 370 पर केन्द्रित थी। सेमीनार को ज्यां द्रेज़, शशिकांत सेंथिल, तीस्ता सेतलवाद सहित अन्य वक्ताओं में अलोका कुजूर, भारत भूषन चौधरी, प्रवीर पीटर, शंभू महतो, व ज़ियाउद्दीन ने भी संबोधित किया।