<किश्वर नाहीद पाकिस्तान ही नहीं, भारतीय उपमहाद्वीप की एक प्रसिद्ध एक्टिविस्ट लेखक, कवि, नाटककार, आलोचक हैं। किश्वर नाहीद का परिवार मूल रूप से बुलंदशहर (दिल्ली से लगभग 100 किलोमीटर) का रहने वाला था और 1949 में पाकिस्तान जाने का फैसला किया था। किश्वर नाहीद का साक्षात्कार, जो यहाँ पेश है, वह उन से मई 4, 1995 के दिन नई दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में लिया गया था जिस की ज़बान उर्दू थी, जबकि कुछ terms का ज़िक्र अंग्रेज़ी में भी किया गया था । उस समय इस के कुछ अंश हिंदी और अंग्रेज़ी में छपे थे लेकिन सम्पूर्ण साक्षात्कार टेप में सुरक्षित था जिसे अब पाठकों
सवाल : कुछ ख़ानदान सम्बन्धी तफ़सीलात जानना चाहूँगा।
जवाब : मेरा ख़ानदान बुलंदशहर से पाकिस्तान गया था। मेरी पैदाइश की असली तारीख़ 18 जून, है जबकि दस्तावेज़ों में 3 फ़रवरी दर्ज हो गयी है। मैं सात साल की थी जब पार्टीशन हुआ। हम अप्पर-कोट मुहल्ला क़ानूनगो इलाक़े में रहते थे। और बचपन की धुँधली यादें लिए जब 1984 मैं में आई तो काली नदी पर उतर गई और इस घर और गली तक इन ही धुँधली यादों के तवस्सुत से पहुंच गई। बस ख़राबी यह हो गई कि जब मैंने अपने पुराने घर के दरवाज़े पर दस्तक दी तो उन लोगों ने भी बस इस लिए पहचान लिया कि एक रात पहले मेरा इंटरव्यू टीवी पर आ गया था। मैं बग़ैर शनाख़्त के वहाँ जाना चाहती थी, लेकिन शनाख़्त हो गई तो मज़ा किरकिरा गया। बहरहाल, जैसा दोनों मुल्कों में हाल है कि कुछ भी नहीं तबदील हुआ।
पार्टीशन के बाद 1984 मैं पहली बार हिंदुस्तान आयी थी। पार्टीशन से पहले वालिद साहिब की बसें चलती थीं बुलंदशहर और दिल्ली के दरमियान। हमारी अम्मां ने जो सय्यद ख़ानदान की पहली औरत थीं, जिन्होंने अपनी लड़कियों को पढ़ाना शुरू किया। हमारे नाना और कोई भी उनसे नहीं मिलता था। 1947 में अब्बा को मुस्लिम लीग का लीडर होने की वजह से जेल में रखा गया। 1949 तक जेल में रहे और जब जेल से बाहर आए तो जाने का फ़ैसला हुआ। यह सब मैंने अपनी सवानिह उमरी
सारी पढ़ाई लाहौर में लड़कियों के कॉलेज, गवर्नमेंट कॉलेज लाहौर में (अर्थ-शस्त्र में एमए) हुई। एमए के दरमियान ही शादी की। उसे ख़ुशी या मजबूरी जो भी कहें, यूसुफ़ कामरान जो मेरे क्लास फ़ेलो थे, शायर थे। मशाइरों में आना जाना था, यह रिवायती (परम्परागत) ख़ानदान को पसंद नहीं था और हमने अपने इन्क़िलाबी अंदाज़ में उन्हें बताया कि जब मास्टर्ज़ कर लेंगे तो शादी करेंगे और मुलाज़मत करेंगे, अपना घर ख़ुद बनाएँगे। दहेज़ नहीं लेंगे। शादी में जो लेकर गई, एक बोरी में इनामात थे जो मुझे मिले थे और दूसरी बोरी में मेरी किताबें थीं।
सवाल : औरत और मर्द के रिश्तों की बुनियाद के बारे में क्या सोचती हैं?
जवाब : मैंने बचपन से देखा अपने पूरे ख़ानदान में और ख़ानदान से भी आगे कि औरत के सामने मर्द अपनी हर कोताही या अपनी ग़लती की पशेमानी दूर करने को किसी ज़ेवर, किसी लत्ते, किसी कपड़े के बहाने माज़रत (माफ़ी मांगना) कर देता था। मैंने भी तय किया कि लत्ता मैं नहीं पहनूँगी, ज़ेवर नहीं पहनूँगी, चूड़ियाँ भी नहीं, गोटे के कपड़े नहीं पहनूँगी। यह उस वक़्त तय किया जब मैं बस 7-8 साल की थी। तब मैंने ज़ाहिर है मार्क्स वग़ैरा को नहीं पढ़ा था। यह सब घर का माहौल देखकर ही नहीं हुआ था, बल्कि पार्टीशन में जिस तरह से औरतों के अग़वा (अपहरण) हुए, उन पर मज़ालिम (अत्याचार) हुए, इस ने मेरे बचपन के ज़ेहन को बहुत मुतास्सिर (प्रभावित) किया। औरतों का बुरी तरह मजरूह (ज़ख़्मी) होना देखा, घर में दो भाइयों के बीच की बहन थी। मार मुझे पड़ती थी, कहा मुझे जाता था भाइयों को नहीं, मसाला पीसने को मुझे कहा जाता था, बर्तन धोने को मुझे कहा जाता था। मैं कहती थी उन इन भाईयों को क्यों नहीं कहती हो जो मेरे साथ के हैं। इस पर मुझे मार पड़ती थी तो यह सारे Retaliations (प्रतिशोध) हुए।
सवाल : लेकिन क्या शादी करके आपको बराबर के हुक़ूक़ मिले?
जवाब : यह अलग कहानी है। आप एक ही क़दम में पूरी सीढ़ी चढ़ लेना चाहते हैं। (हँसती हैं)
सवाल : आपको नहीं लगता कि शादी का Institution (संस्था) औरत के ख़िलाफ़ है?
जवाब : Institution of marriage is against both woman and man (शादी की संस्था औरतों और मर्दों दोनों के ख़िलाफ़ है।). मुसावात (समानता) किसी के लिए नहीं है, लेकिन औरत को ज़्यादा भुगतना पड़ता है। यह सच है कि मुझे 35 बरस नौकरी करते हो गए। गुज़िश्ता (बीते) 30 बरस से High position (उच्च-पदों) पर काम कर रही हूँ और Decision Making सतह (निर्णय लेने वाली जगहों) पर काम कर रही हूँ, लेकिन आज भी मज़ाक़ उड़ाते हुए बात करने वाले मेरे सामने आ जाते हैं। आज भी इस बात का मज़ाक़ उड़ाने वाले लोग होते हैं कि औरत ने क्या काम करना है। हाँ, आपके तो आगे पीछे कोई नहीं है इसलिए आप काम कर लेती हैं।
सवाल : क्या आपको यह लगता है कि कितने भी बराबरी के दावों के साथ शादी की जाए, कितने भी Idealism (आदर्शवाद) के साथ ब्याह हो, औरत को नंबर दो का ही शख़्स हो कर रहना पड़ता है?
जवाब : यह तो रहना पड़ता है। वह तो इसलिए रहना पड़ता है कि हमारी माओं ने और हम माओं ने बेटों को कम से कम बरेसग़ीर (उपमहाद्वीप ) में यह कह के परवरिश नहीं किया कि तुम इस तरह के मर्द हो जैसी कि औरत है। मैंने तो लिखा भी है कि जब बेटा 8-9 साल का था और मैं बातें करती थी तो वह मेरे रवैये को देखकर कहा करता था कि अम्मां, क्या बात करती हो, इस घर में तो कुत्ता भी मर्द है। यह बातें किसी एक शख़्स के बदलने से नहीं बदला करतीं। एक बात जिसमें मैं यक़ीन रखती हूँ, एक मुकम्मल दीवार में से एक ईंट निकालने की कोशिश करें तो दीवार कमज़ोर हो जाती है और ईंटें निकालना आसान हो जाता है, लेकिन वह जो पहली ईंट निकालना है, वह मुश्किल होता है। जैसे एक बूँद के पीछे बहुत सी बूँदें आ जाती हैं, लेकिन पहली बूँद कहाँ से आती है, यह बहुत अहम है।
सवाल : किया मुस्लमानों के नाम पर हुकूमत मिल जाने पर मुस्लमान औरत को हुक़ूक़ हासिल हुए?
जवाब : औरत को ही किया 85 फ़ीसद मुआशरे
सवाल : क्या यह सच नहीं है कि पाकिस्तान में Fundamentalism
जवाब :
सवाल : क्या सिर्फ़ Imperialism
जवाब : यह कुछ फ़ोर्सिज़
लेकिन हम तारीख़ पर बात न करें, बुत तो टूटा ही करते हैं>
सवाल: मार्क्सइज़्म के मुस्तक़बिल
जवाब : जो लोग बहुत गुल मचा रहे हैं ख़ुशी से ढोल बजा रहे हैं कि मार्क्सइज़्म ख़त्म हो गया है, वह बेवक़ूफ़ हैं। नज़रिए
सवाल : पाकिस्तान में उर्दू का मुस्तक़बिल क्या होगा?
जवाब : देखिए, पहली बात तो यह है कि एक वक़्त में यह कोशिश की गई कि हमारे मुल्क में जो इलाक़ाई ज़बानें हैं इनको क़ौमी धारे से निकाल दिया जाए। तो जब भी आप ऐसी कोशिश करोगे तो रद्दे-अमल
सवाल : आपने पहला शेअर कब कहा होगा?
जवाब : मैंने 15 साल की उम्र में पहला शेअर
सवाल : आपके उस्ताद कौन थे?
जवाब : मैंने किसी उस्ताद से शागिर्दी का राबता
सवाल : इन महफ़िलों में जाने की इजाज़त थी?
जवाब : नहीं! छुप कर जाती थी, कोई बहाना बनाकर जाती थी।
सवाल : पुरानी पीढ़ी की उर्दू शायरी में आपके सबसे पसंदीदा शायर कौन हैं?
जवाब : इस सवाल का जवाब बड़ा मुश्किल है। पसंदीदा शायर का होना तो मुश्किल होता है, लेकिन अशआर
सवाल : आप उर्दू शायरी की अज़ीम विरासत में से किस के क़रीब अपने आपको महसूस करती हैं?
जवाब : असल में आज भी अगर मैं ग़ज़ल लिखती हूँ तो तीन चीज़ों पर ग़ौर करती हूँ। मेरी ग़ज़ल क़तई क्लासिकी होती है क़तई। और ऐसी ग़ज़ल कहना मुझे पसंद है।
सवाल : लोग कहते हैं कि आप ग़ज़ल के ख़िलाफ़ कोई तहरीक चलाए हुए हैं?
जवाब : यह बिलकुल ग़लत है। मैं ग़ज़ल के ख़िलाफ़ किसी तहरीक में शामिल नहीं हूँ। यह तो हो भी नहीं सकता। मैं तो आपको ख़ुद बता रही हूँ कि मैं क्लासिकी ग़ज़ल ही लिखती हूँ, लेकिन अंदाज़ मेरा अपना ही होता है। मसलन अगर में यह कहती हूँ कि
“'बर्फ़ की मानिंद जीना उम्र-भर
रेत की सूरत मगर तपना बहुत”
तो मेरा अपना अंदाज़ है या
“'घर के धंधे निपटते ही नहीं नाहीद
मैं निकलना भी अगर शाम को घर से चाहूँ”।
जब मैं आज़ाद नज़्म पर आती हूँ तो इसमें मेरे साथ दो बड़े लोग हैं जो हमेशा मेरी रहनुमाई करते हैं और मेरे क़रीब हैं। मीम सिद्दीक़ी और नून मीम राशिद। दोनों के लिखने का अंदाज़ मुझे पसंद है, बल्कि मेरी पहली किताब ‘बेनाम मुसाफ़त’ जो नज़्मों का मजमूआ है, इसमें आपको बहुत जगह महसूस होगा कि कहाँ से पढ़ी चल रही हूँ।
इस के बाद जब मैं आती हूँ अपने तीसरे पड़ाव नस्री
सवाल : आज़ाद नज़्म को आप तकनीकी तौर पर नस्री नज़्म से कैसे अलग करती हैं?
जवाब : वहाँ वज़न होता है, लेकिन नस्री नज़्म में वज़न नहीं होता।
सवाल : Feminism
जवाब : कुछ लोग Feminism से मुराद यह लेते हैं कि जो काम मर्द करता रहा है, जो ज़ुल्म मर्द करता रहा है, वह सब औरत करने लगे। कुछ यह समझते हैं कि औरत का जो रिवायती रोल है उसे ख़त्म कर दिया जाए, तो वह Feminism है। कुछ लोग यह समझते हैं कि सारे इक़्तिदार
सवाल : पाकिस्तान में औरतों के हुक़ूक़ को लेकर जो तहरीकें चल रही हैं, उनका कुछ नतीजा निकला है या कुछ नया करना पड़ेगा?
जवाब : वैसे तो जो तहरीकें चल रही हैं उन्होंने पहली मंज़िल पूरी की है, Consciousness
सवाल : क्या आपको लगता है कि किसी भी धार्मिक राष्ट्र में औरत को उसके हुक़ूक़ मिल सकते हैं? भारत को लोग धार्मिक राष्ट्र बनाना चाह रहे हैं और पाकिस्तान तो है ही।
जवाब : यह Fallacy
सवाल : क्या पाकिस्तान एक Theocratic State < धर्मशासित राज्य> है?
जवाब : नहीं, पाकिस्तान एक Theocratic State नहीं है। पाकिस्तान एक इस्लामी जम्हूरी
सवाल : कैसी जम्हूरी रियासत है? दो औरतें मिलकर एक मर्द नौकर के बराबर होती हैं।
जवाब : यह सारे क़वानीन ख़त्म करने की तहरीक जारी है और मुसलसल है। आठवीं तरमीम
सवाल : पाकिस्तानी उर्दू शायरी और हिन्दुस्तानी उर्दू शायरी में कुछ फ़र्क़ है या एक जैसी ही है?
जवाब : काफ़ी फ़र्क़ है। एक तो यह है कि पाकिस्तान में दो Distinct
सवाल : क्या आपका यह कहना है कि पाकिस्तानी उर्दू शायरी ज़िंदगी के ज़्यादा रूबरू खड़ी रही?
जवाब : खड़ी रही, लेकिन इस का बेहतर तजज़िया
इस तरह पाकिस्तानी उर्दू शायरी और तन्क़ीद का यह एक Stream
अगर शायरी अपनी ज़मीन से नहीं जुड़ी होगी तो इसका कोई असर नहीं होगा। हमारा एक शायर है सलीम शाहिद, उसने एक शेर लिखा “पर जो घर से निकाले तो मैं बाज़ार में था”। हमारे जो छोटे-छोटे घर हैं और इसका जो मंज़र है इससे बेहतर किसी मिसरे में नहीं आ सकता। या फिर “बाहर जो मैं निकलूँ तो बरहना ”। इनसानी ग़ुर्बत का इस से शानदार अंदाज़े-बयाँ क्या हो सकता है? मीर की ग़ज़ल का अंदाज़, यह शायर लाहौर का ठेठ पंजाबी बोली वाला बंदा है। या एक शायर है जिसने कहा “दीवार क्या गिरी मिरे कच्चे मकान की---लोगों ने मेरे सेहन में रस्ते बना लिए”। या फिर जमाल एहसानी ने कहा : “चिराग़ सामने वाले मकान में भी न था”।
कैफ़ी साहब पाकिस्तानी उर्दू शायरी की जो कैफ़ीयत बयान करते हैं वह ठीक नहीं है, क्योंकि उन्होंने पुराने शायरों को पढ़ा है और आज की शायरी से वाक़िफ़ नहीं । उन्हें मौक़ा ही नहीं मिला है। किताबें भी नहीं जातीं । दोनों मुल्कों के हालात ही कुछ ऐसे हैं।
सवाल : आपके यहाँ मुशायरे नहीं होते?
जवाब : होते हैं। मेला मवेशियान
सवाल : ऐसा क्यों हो रहा है?
जवाब : जब दस-दस और पच्चास-पच्चास हज़ार लोग मुशायरे में आएँगे तो वो कलाम थोड़ी सुनने आएँगे, वो तो तमाशा देखने आएँगे। उनको शेअर और शायरी से क्या लेना है।
सवाल : पाकिस्तानी शायरों और गुलूकारों
जवाब : इस का ज़्यादातर क्रेडिट पाकिस्तान के गाने वालों को जाता है। असल बात यह है कि हिन्दुस्तान में बेगम अख़्तर के बाद ग़ज़ल गायकी पर किसी ने Touch
सवाल : फ़ैज़ पंजाबी थे, इक़बाल पंजाबी थे। इन्होंने पंजाबी में शायरी क्यों नहीं की?
जवाब : फ़ैज़ ने तो पंजाबी में भी शायरी की है, लेकिन यह कोई ज़रूरी नहीं होती है। एक बात तो यह थी कि पंजाबी ज़बान लिखने और निसाब
सवाल : क्या इस्लामी शायरी भी होती है आपके यहाँ?
जवाब : ऐसी कोई चीज़ नहीं होती है। नअत
सवाल : हिन्दुस्तान कितनी बार आ चुकी हैं?
जवाब : चार-पाँच बार।
सवाल : और मुशायरों में भी रही हैं?
जवाब : सिर्फ़ एक मर्तबा।
सवाल : भारत के Literary और Cultural
जवाब : जैसा कि मैंने कहा था कि आपके यहाँ उर्दू शायरी ने जो Gain
सवाल : क्या इसकी वजह उर्दू में लिखने वालों का Superiority complex
जवाब : शायद, या उर्दू वाले पढ़ते ही नहीं हैं इन सब अदब को। वो सोचते हैं कि कहीं इससे उन की Originality
सवाल : ग़ैर-मुल्की अदब की भरमार से आप परेशान हैं क्या?
जवाब : मुझे लगता है कि दरवाज़े और खिड़कियाँ खुली रखने से अच्छा ही होता है। कहीं के भी अदब से सीखा जा सकता है। यूरोप से आने वाली चीज़ों से भी कोई हरज नहीं। नेरुडा को को पढ़कर फ़ैज़ साहब ने ‘तेरी समुन्दर आँखें’ लिखा। Originality
आपके यहाँ बहुत अच्छी कहानियां लिखी गईं। बहुत अच्छी तन्क़ीद
सवाल : उर्दू का मुस्तक़बिल
जवाब : किसी भी ज़बान का मुस्तक़बिल तब तक महफ़ूज़ होता है जब तक उसमें अच्छा लिखने वाले मौजूद हों, उसे पढ़ने वाले मौजूद हों, उसके अंदर हालात को बयान करने की सलाहियत हो। जो इलाक़ाई रुजहान चल रहे हैं उनसे उर्दू को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ेगा। किसी भी मुल्क में एक से ज़्यादा ज़बानें हों तो एक-दूसरे को क़ुव्वत देती हैं।
सवाल : और कौन सी शायरा हैं पाकिस्तान में?
जवाब : फ़हमीदा रियाज़, इशरत आफ़रीन, परवीन शाकिर और सारा शगुफ़्ता का तो इंतिक़ाल हो गया। नसीर अंजुम भट्टी। नए लिखने वालों में फ़ातिमा हसन हैं, शाहिदा हसन हैं, अज़्रा अब्बास हैं। लिखने वाले तो उस वक़्त तक आते रहेंगे जब तक ज़बान है और मसाइल
सवाल : बर्रे-सग़ीर
जवाब : कोई नुक़्सान नहीं हुआ, बल्कि फ़ायदा हुआ, वह इस तरह कि जो अदीब सिर्फ़ बुनियादी तौर पर रोमानियात तक महदूद रहते थे, उनके सामने दूसरे मसाइल
सवाल : उर्दू अदब को मग़रिबी
जवाब : जी हाँ, फ़िलस्तीनी मुज़ाहमती
सवाल : आपका तस्लीमा नसरीन के बारे में क्या ख़याल है?
जवाब : असल में सहाफ़ीयों
सवाल : हमारे यहाँ एक बहुत मज़बूत Stream
जवाब : जी हाँ यक़ीनन आपके यहाँ ऐसा है, लेकिन हमारे यहाँ ऐसा कुछ नहीं है, क्यों कि आपके यहाँ Caste System
सवाल : पाकिस्तान में उर्दू अदीब
जवाब : जी हाँ, बग़ैर तंज़ीम
सवाल : पाकिस्तान की नुक्कड़ नाटक तहरीक पर जिस तरह NGO's हावी हो रही हैं, आपकी इस बारे में क्या राय है?
जवाब : नुक्कड़ नाटक की दिक्कत यह है कि हर Adventure
सवाल : आपकी किताबें?
जवाब : 8-9 मजमूए
सवाल : Top
जवाब : होती है तभी तो शायरी करती हूँ और इसके बाद औरतों के लिए काम करती हूँ, इसलिए घुटन को साफ़ करने के लिए रोज़ झाड़ू साथ रखती हूँ और साफ़ किए जाती हूँ। अपने हिस्से का रास्ता साफ़ कर लेती हूँ। तो जो पीछे आ रहे होते हैं उनको भी कुछ सहूलियात मिल जाती हैं।
सवाल : हिन्दुस्तान में आकर अपनी अदीबी बिरादरी से मुलाक़ात हुई?
जवाब : यक़ीनन। उर्दू, हिन्दी और दूसरी ज़बानों के तमाम अदीबों से ख़ूब मुलाक़ातें, नशिस्तें
शम्सुल इस्लाम