नई दिल्ली, 27 जनवरी 2020. केंद्र की मौजूदा सरकार द्वारा शाहीन बाग आंदोलन में जेएनयू छात्र शरजील इमाम को दूसरा कन्हैया कुमार तैयार किए जाने के प्रयास के बीच सर्वोच्च न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश जस्टिस मार्कंडेय काटजू (Justice Markandey Katju, retired judge of the Supreme Court) ने संविधान व शीर्ष अदालत के पूर्व के आदेशों का हवाला देते हुए स्पष्ट कहा है कि शरजील इमाम ने कोई अपराध नहीं किया, और उसके खिलाफ एफआईआर को संविधान के अनुच्छेद 226 या धारा 482 Cr.P.C के तहत उच्च न्यायालय को खारिज कर देना चाहिए।
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क्या शारजील इमाम का भाषण अपराध था?
जेएनयू के एक छात्र शारजील इमाम ने 16 जनवरी, 2020 को अलीगढ़ में एक सीएए विरोधी प्रदर्शन बैठक के दौरान भाषण दिया, जिसमें लोगों को असम और उत्तर पूर्व को शेष भारत से काटने के लिए कहा। नतीजतन, दिल्ली, यूपी और असम की पुलिस ने उसके खिलाफ राजद्रोह के आरोप में एफआईआर दर्ज की है, और उसकी तलाश कर रही है। लेकिन क्या उसने कोई अपराध किया है?
ब्रांडेनबर्ग बनाम ओहियो 395 यूएस 444 (1969) में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि "स्वतंत्र भाषण की संवैधानिक गारंटी किसी राज्य को किसी व्यक्ति द्वारा बल प्रयोग या कानून के उल्लंघन की वकालत करने पर भी मुकदमा चलाने की अनुमति नहीं देती है, जब तक कि उसका भाषण तुरंत हिंसा करने को नहीं भड़काता है या आसन्न अराजक कार्रवाई का उत्पादन और इस तरह की कार्रवाई को उकसाने या उत्पन्न करने की आशंका है”।
यह निर्णय समय की कसौटी पर खरा उतरा है, और अमेरिका में तब से देश का सर्वोच्च कानून है। इसके बाद इसका भारत के सर्वोच्च न्यायालय के दो फैसलों अरूप भुयान बनाम असम राज्य 2011 व श्री इंद्र दास
इसलिए भड़काऊ भाषण भी भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) द्वारा गारंटीकृत बोलने की स्वतंत्रता द्वारा संरक्षित है, जब तक कि यह आसन्न अराजक कार्रवाई को प्रवृत्त या पैदा नहीं करता है।
मैं शारजील इमाम के भाषण को अस्वीकार करता हूं, और मैं असम या भारत से उत्तर पूर्व के बाकी हिस्सों को काटने के खिलाफ हूं। फिर भी, मैं यह नहीं देख पाता कि उसका भाषण आसन्न अराजक कार्रवाई को कैसे उकसाएगा या पैदा करेगा। ब्रैंडनबर्ग परीक्षण में 'आसन्न' शब्द बेहद महत्वपूर्ण है। यह समय तत्व पर जोर देता है, और शेंक बनाम यूएस (1919) में निर्धारित जस्टिस होल्म्स के 'स्पष्ट वर्तमान खतरा' को और अधिक स्पष्ट करता है।
इसलिए मेरा विचार है कि शारजील इमाम ने कोई अपराध नहीं किया, और उसके खिलाफ एफआईआर को संविधान के अनुच्छेद 226 या धारा 482 Cr.P.C के तहत उच्च न्यायालय को खारिज कर देना चाहिए।“
बता दें, यह मुकदमा उस कथित वीडियो के सामने आने के बाद दर्ज किया गया है जिसमें इमाम उत्तर-पूर्व भारत को शेष भारत से काटने की बात करते हैं। उनका यह वीडियो पिछले कुछ दिनों में तेजी से सोशल मीडिया पर वायरल हुआ है और इसके बाद ही असम पुलिस ने इमाम पर केस दर्ज किया है।
ताजा मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक शरजील इमाम के बिहार स्थित पैतृक आवास पर छापेमारी कर उसके चचेरे भाई समेत तीन लोगों को हिरासत में ले लिया गया है। केन्द्रीय एजेंसियों ने जहानाबाद पुलिस के साथ बीते देर रात शरजील के घर पर छापेमारी की है।