कल (1 अक्टूबर 2019) 'हिंद स्वराज : नवसभ्यता विमर्श' के लेखक वीरेंद्र कुमार बरनवाल के साथ कार में कुछ देर सफ़र करने का अवसर मिला. हम दोनों को दिल्ली विश्वविद्यालय के दक्षिण परिसर (South Campus of Delhi University) जाना था, जहां उन्हें 'गांधी और साहित्य' (Gandhi and literature) विषय पर बोलना था. कई तरह की बातों के बीच चर्चा जेवर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा (Jewar International Airport) पर होने लगी.
बरनवाल जी ने कहा कि गांधी की 150वीं जयंती के मौके पर इस हवाई अड्डे का नाम गांधी जी के नाम पर किया जाना चाहिए. मुझसे उन्होंने इस बारे में कुछ प्रयास करने को कहा. इस तरह के मामलों में कुछ करने की मेरी हैसियत नहीं है. इसलिए इस प्रस्ताव को चर्चा और विचार के लिए पब्लिक डोमेन में रख रहा हूं.
2001 में उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की राजनाथ सिंह सरकार के प्रस्ताव के समय से विवादों में रहने वाला यह अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा पहले चरण में दो रनवे और उसके बाद के चरण में छह रनवे तक विकसित किया जाएगा.
अभी तक दुनिया में आठ रनवे का हवाई अड्डा (Eight runway airport) केवल अमेरिका के शिकागो शहर में है. दुनिया में छः रनवे के हवाई अड्डे केवल पांच हैं, जिनमें से चार अमेरिका में हैं. एक नीदरलेंड्स की राजधानी अम्स्टरडम में है.
जेवर हवाई अड्डे के शुरुआती प्रस्ताव के समय ही इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण की कंपनी जीएमआर ग्रुप ने यह आपत्ति दर्ज की थी कि इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे, जो तीन रनवे का है, के 150 किलोमीटर के भीतर दूसरा हवाई अड्डा नहीं हो सकता.
कंपनी का तर्क था कि यह यातायात और राजस्व - दोनों के लिए सही नहीं होगा. इस पूरी परियोजना को लेकर पर्यावरण संबंधी आपत्तियां भी उठाई गई थीं.
2012 में समाजवादी पार्टी की अखिलेश यादव सरकार ने जेवर में अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा बनाने के प्रस्ताव को ख़ारिज
सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप) के तहत निर्माणाधीन इस विशाल परियोजना के लिए किसानों की ज़मीन के अधिग्रहण का काम आनन-फानन में पूरा कर लिया गया.
भारत सहित दुनिया भर के अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय हवाई अड्डे उड़ानों के अलावा मुख्यत: विश्व-प्रसिद्ध शराबों और लग्जरी उपभोक्ता वस्तुओं की बिक्री के लिए जाने जाते हैं.
जिस तरह से भारत के शासक वर्ग पर भव्यता और शानो-शौकत का भूत सवार है, वह इस हवाई अड्डे को शराबों और उपभोक्ता वस्तुओं का अभी तक का सबसे बड़ा बाज़ार बना देने में कोई कोर कसर नहीं उठा रखेगा.
गांधी शराब को शरीर और आत्मा दोनों का नाश करने वाली मानते थे. उन्होंने अपने जीवन और चिंतन में ग्राम-स्वराज और उसके मुताबिक सादा व किफायती जीवन जीने की वकालत की है. वे हवाई जहाज में सफ़र नहीं करते थे. इसलिए कुछ लोग यह कह सकते हैं कि ऐसी जगह का नाम गांधी के नाम पर रखना उचित नहीं होगा. उनकी भावना अपनी जगह ठीक है. लेकिन उन्हें भावनाओं से बाहर आकर यह देखना चाहिए कि यह सरकारी गांधीवाद की ऊंची उछाल का दौर है.
आरएसएस/भाजपा के राज में सरकारी गांधीवाद अभूतपूर्व रूप से एक नए चरण में प्रवेश कर गया है. मठी गांधीवाद ज्यादातर सरकारी गांधीवाद के पीछे घिसटता नज़र आता है. कुजात गांधीवाद इस परिघटना को निर्णायक चुनौती देने की स्थिति में नहीं है. (गांधीवाद की ये तीन कोटियां डॉ. राममनोहर लोहिया ने बनाई थीं, जो अपने को कुजात गांधीवादी मानते थे.)
ऐसे में सरकारी गांधीवाद को ही फलना-फूलना है. सरकारी गांधीवाद का लक्ष्य गांधी को जल्द से जल्द उपभोक्तावादी पूंजीवादी व्यवस्था का अंग बना लेना है, ताकि इस व्यवस्था के शिकार भी जल्द से जल्द स्वीकार कर लें कि गांधी उनका नहीं, शासक वर्ग का आदमी है. जेवर अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे का नाम गांधी के नाम पर रखने से उस लक्ष्य-प्राप्ति में तेजी आएगी. इसके साथ शासक वर्ग के लिए अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर गांधी को बेचने का यह एक प्रभावी और स्थायी जरिया बन जाएगा.
शासक वर्ग चाहे तो इस हवाई अड्डे को गांधी का नाम देकर दुनिया के सामने उनके चिंतन, संघर्ष और सादगी की खिड़की बना कर पेश कर सकता है. यह दुनिया का ऐसा हवाई अड्डा बनाया जा सकता है जहां लोगों को शराब और उपभोक्ता सामान की जगह सम्पूर्ण गांधी से रूबरू कराया जाए. इस नूतन उद्यम के लिए एक सुचिंतित योजना बनाई जा सकती है. हालांकि शासक वर्ग का वह उद्यम सरकारी गांधीवाद के दायरे में ही आएगा, लेकिन इस दिशा में वह शायद ही विचार करे!
प्रेम सिंह
(लेखक भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला के पूर्व फेलो और दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी के शिक्षक हैं)
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